Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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अर्थ-नारद अनेक विद्याओं का ज्ञाता तथा नाना शास्त्रों में निपुण था । वह साधु के वेष में रहता था तथा साधुत्रों की सेवा से उसने संयमासंयम देशव्रत प्राप्त किया था ।
श्री तिलोयपण्णत्ती और हरिवंशपुराण के कथनों में नारद के विषय में विभिन्नता पाई जाती है । वर्तमान में केवली - श्रुतकेवली का अभाव होने से यह नहीं कहा जा सकता कि इन दोनों कथनों में से कौनसा कथन ठीक है | अतः दोनों कथनों का संग्रह करना चाहिये ।
नारायण व प्रतिनारायण के भी अनेक शरीर
शंका- जिस प्रकार चक्रवर्ती अपने अनेक शरीर बना लेता है क्या नारायण व प्रतिनारायण भी अनेक शरीर बना सकते हैं ?
- जै. ग. 24-10-66 / VI / शा. कु.
समाधान-नारायण व प्रतिनारायण को अर्धचक्री संज्ञा है । चक्रवर्ती की तरह वे भी अपने-अपने शरीर बना लेते हैं । चक्रवर्ती की अपेक्षा अर्ध चक्री के शरीरों की संख्या अल्प होती है ।
जिनके नीहार नहीं होता, उनके पसीना श्रादि भी नहीं होते
शंका- जिन मनुष्यों के आहार तो है किन्तु नीहार नहीं है उनके पसेव, कान का मैल, आँख का मैल भी होते हैं या नहीं ?
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- जै. ग. 11-7-66 / IX / क. च.
समाधान -- तीर्थंकर आदि के प्रहार तो होता है किन्तु मल-मूत्र आदि नीहार नहीं होता है । उनके पसेव, कर्ण - मल, नेत्र - मल आदि भी नहीं होते हैं ।
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- जै. ग. 26-11-70 / VII / ग. म. सोनी
नेमिनाथ के विहार के साथ-साथ लोकान्तिक देवों का गमन
शंका- हरिवंशपुराण सर्ग ५९ में लिखा है कि भगवान नेमिनाथ के विहार करते समय लोकान्तिक देव भी साथ-साथ चल रहे थे। ऐसा कैसे ? वे दीक्षा के समय ही आते हैं ?
समाधान -- वहाँ पर लोकान्तिक देव से अभिप्राय लोकपाल देवों से है ।
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पुराणों में उल्लिखित कामविषयक वर्णन भी अश्लीलता की कोटि में नहीं श्राता
शंका-सुदर्शन चरित्र में सुदर्शन मुनि पर वेश्या द्वारा उपसर्ग के प्रसंग का कथन तथा अन्य अनेक पुराणों
में काम-विषयक प्रसंगों के कथन 'अश्लीलता' की कोटि में क्यों नहीं ? ऐसे कथन बालक और किशोरों, बालिकाओं और किशोरियों के लिये पठनीय कैसे कहे जा सकते हैं ?
- जै. ग. 13-6-68 / IX / र. ला. जैन
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