Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जन मुख्तार :
तम्मि कदकम्मणासे जंबूसामित्ति केवली जादो । तत्थ वि सिद्धिपवणे केवलिणो णत्थि अणुबद्धा ॥१४७७॥ कुडलगिरिम्मि चरिमो केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो ॥१४१९॥
-तिलोयपण्णत्ती अ. ४ अर्थ-जिस दिन भगवान महावीर सिद्ध हुए उसी दिन श्री गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए। पुनः श्री गौतम के सिद्ध होने पर श्री सुधर्म स्वामी केवली हुए। श्री सुधर्म स्वामी के कर्म-नाश करने अर्थात् मुक्त होने पर श्री जम्बूस्वामी केवली हुए। श्री जम्बूस्वामी के सिद्धि को प्राप्त होने पर फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं रहे। केवलज्ञानियों में अन्तिम श्री १००८ श्रीधर कुण्डलगिरि से सिद्ध हुए।
-जे.ग. 12-8-65/V/ब्र. कु. ला. भगवान महावीर के बाद के केवलियों की संख्या शंका
कुडलगिरिम्मि चरिमो, केवलणाणी सुसिरिधरो सिद्धो ।
चारणरिसीसु चरिमा, सुपासचन्दा-भिधा णो य ॥१४७९॥ ति. प. अ. ४ अर्थात् केवलज्ञानियों में अन्तिम श्रीधर मुनि कुडलगिरि से सिद्ध हुए और चारण ऋषियों में अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र नाम के ऋषि हुए। किन्तु षट्खंडागम पु० ९ पृ० १३० पर लिखा है-'अड़तीस वर्ष केवलविहार से बिहार करके श्री जम्बू भट्टारक के मुक्त हो जाने पर भरतक्षेत्र में केवलज्ञान परंपरा का व्युच्छेद हो गया इस प्रकार भगवान महावीर के निर्वाण को प्राप्त होने पर बासठ वर्ष पीछे केवलज्ञानरूपी सूर्य भरतक्षेत्र में अस्त हआ।' श्री कल्पसूत्र में इसप्रकार लिखा है-'महामुनि श्री जंबूस्वामी का अलौकिक सौभाग्य है कि जिस पति को प्राप्त करके मोक्षलक्ष्मी स्त्री अभी तक भी अन्य पति को चाहती नहीं है।' .
यहाँ प्रश्न यह है कि उपर्युक्त तीनों बातों में से कौनसी बात ग्राह्य है ?
समाधान-तिलोयपण्णत्ती अध्याय ४ गाथा १४७९ के कथन में तथा षट्खंडागम पुस्तक ९ पृष्ठ १३० के कथन में परस्पर कोई विरोध नहीं है। षटखंडागम पु० ९ पृ० १३० पर जो ये शब्द हैं 'जंबू भट्टारक के मुक्त हो जाने पर भरतक्षेत्र में केवलज्ञान परम्परा का व्युच्छेद हो गया' इसमें 'परम्परा' शब्द 'अनुबद्ध' का द्योतक है। श्री १००८ महावीर भगवान् के मुक्त होने के समय श्री गौतम गणधर को केवलज्ञान होगया, श्री गौतम गणधर के मुक्त होने पर श्री लोहाचार्य को केवलज्ञान हो गया, श्री लोहाचार्य के मुक्त होने पर श्री जंबू भट्टारक को केवलज्ञान हो गया। किन्तु श्री जम्बूस्वामी के मुक्त होते समय अन्य किसी मुनि को केवलज्ञान उत्पन्न नहीं हुआ, अतः केवलज्ञान की जो धारावाही परम्परा चली आरही थी उसका व्युच्छेद हो गया। इसका यह अर्थ नहीं कि श्री जम्ब स्वामी के पश्चात् भरतक्षेत्र में कोई केवली नहीं होगा। श्री जम्बू भट्टारक के पश्चात् अन्य पाँच केवली हए हैं जिनमें अन्तिम केवलज्ञानी श्रीधर प्रभु हए हैं जैसा कि तिलोयपण्णत्ती अध्याय ४ गाथा १४७९ में कथन है। श्री षट्प्राभूतादि संग्रह ग्रंथ के पृ० ३, दर्शनपाहुड़ गाथा २ की टीका में भी लिखा है-'वीरादनन्तरं किल केवलिनोऽष्ट जाता न तु त्रयः ।' अर्थात् श्री वीर भगवान के पश्चात् आठ केवली हए हैं तीन नहीं हए। 'कल्पसत्र' दिगम्बर जैन आगम नहीं है, अत: उसके विषय में कुछ नहीं कहा जाता।
-जे. ग. 17-5-62/VII/सो. च.
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