Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ८१
समाधान - श्री नेमिनाथ तीर्थंकर के समवसरण में श्रीकृष्ण ने क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त करके तीर्थंकर प्रकृति का बंध प्रारंभ किया । किन्तु मृत्यु से एक अन्तर्मुहूर्त पूर्व मिध्यात्व को प्राप्त होगये और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध भी रुक गया । नरक में पहुँचने के एक अन्तर्मुहूर्त पश्चात् पुनः क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त होकर तीर्थंकर प्रकृति का पुनः बंध होने लगा । नरक से यहाँ भरत क्षेत्र में आकर तीर्थंकर होकर मोक्ष को प्राप्त हो जायेंगे । श्रीकृष्णजी ऊपर स्वर्गलोक से मध्यलोक भरतक्षेत्र में आये, तीन खंड का राज्य किया । यहाँ से अधोलोक में गये, वहाँ से मध्यलोक में श्राकर पुनः ऊर्ध्वलोक ( सिद्धालय ) को प्राप्त हो जायेंगे। जिन जीवों को नरकायु-बंध के पश्चात् क्षायिक सम्यग्दर्शन या कृतकृत्य वेदक सम्यग्दर्शन हो जाता है वे जीव मरकर प्रथम नरक में ही जाते हैं, इससे नीचे नहीं जाते; क्योंकि सम्यग्दर्शन रूपी खड्ग से नीचे की छह पृथिवी की आयु काट दी जाती है ( धवल पु० १ पृ० ३२४ ) | किन्तु तीर्थंकर प्रकृति की सत्तावाला क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्दर्शन से च्युत होकर तीसरे नरक तक जा सकता है । वहाँ अन्तर्मुहूर्त पश्चात् पुनः सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेता है । राजा श्रेणिक को क्षायिक सम्यग्दर्शन होगया था वे प्रथम नरक में गये और वहाँ से निकलकर इसी भरत क्षेत्र में प्रथम तीर्थंकर होंगे ।
- जै. ग. 11-7-63 / IX / गो. ला. बा. ला.
कृष्ण अब सोलहवें तीर्थंकर होंगे
शंका - नारायण कृष्ण ने भगवान नेमिनाथ के पादमूल में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था । वे कब कहाँ और कौनसे तीर्थंकर होंगे ?
समाधान - श्रीकृष्णजी तीसरे नरक से निकलकर इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के प्रागामी उत्सर्पिणी काल के दुःखमा सुखमा काल में श्री निर्मल नामक सोलहवें तीर्थंकर होंगे । ( तिलोयपण्णत्तो अध्याय ४ गाथा १५८० व १५८५ ) ।
- जै. ग. 22-1-70 / VII / क. च. मा. च.
वीर निर्वाण के पश्चात् गौतम श्रादि ८ केवली हुए
शंका- श्री वीर भगवान के पश्चात् कितने केवली हुए हैं और उनकी कितनी आयु थी ?
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समाधान - श्री १००८ वीर भगवान के पश्चात् तीन तो अनुबद्ध केवली हुए हैं, किन्तु इनके अतिरिक्त पाँच केवली और हुए हैं अर्थात् वीर प्रभु के पश्चात् आठ केवलज्ञानी हुए हैं, जिनमें अन्तिम केवलज्ञानी श्रीवर थे । कहा भी है
वीरादनन्तरं किल केवलिनोऽष्ट जाता न तु श्रयः ।
अर्थ -- वीर भगवान के पश्चात् प्राठ केवलज्ञानी हुए, तीन नहीं ।
-षट्प्राभृत संग्रह पृ० ३
जादो सिद्धो वीरो, तद्दिवसे गोदमो परमणाणी । जावो तस्स सिद्ध, सुधम्मसामी तदो जादो ॥। १४७६ ॥
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