Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
भावं तिविहपयारं सुहासुहं, सुद्धमेव णायव्वं ।
असुहं च अट्टरुद्दसुह धम्मं जिगरिदेहि ॥७६॥ [भावपाहुड] अर्थ-जिनेन्द्रदेव भाव तीन प्रकार कह्या है-शुभ, अशुभ, शुद्ध ऐसे । तहाँ अशुभ तो आर्त्त-रौद्र ये ध्यान हैं और धर्म ध्यान सो शुभ भाव है।
श्री कुन्दकुन्द आचार्य की इस गाथा से सिद्ध है कि श्री १००८ आदिनाथ भगवान के एक हजार वर्ष तक छठे व सातवें गुणस्थान में शुभ भाव रहे।
-जै.ग. 4-1-68/VII/शा. कु. ब.
युगादि में इन्द्र द्वारा नवीन जिनमन्दिर स्थापन शंका-युग के आदि में जब आदिनाथ भगवान का जन्म हुआ तब इन्द्र ने नवीन जिन-मन्दिरों की स्थापना की; उनमें श्री अहंत भगवान की प्रतिमा की स्थापना की। उन जिन-मन्दिरों में श्री सीमंधर भगवान की प्रतिमा क्यों नहीं स्थापित की ? क्या श्री सीमंधर भगवान उस समय अहंत अवस्था में नहीं थे?
समाधान-युग के आदि में जब श्री आदिनाथ भगवान का जन्म हुआ उस समय भरत क्षेत्र में कोई भी तीर्थकर अहंत अवस्था में नहीं थे और न अवसर्पिणीकाल में कोई तीर्थकर हुए थे, अत: जिन-मन्दिरों में सामान्य रूप से श्री १००८ अहंत देव की प्रतिमा स्थापन कर दी।
विदेह क्षेत्र में श्री सीमंधर नाम के तीर्थंकर हमेशा अहंत अवस्था में विद्यमान रहते हैं क्योंकि श्री १००८ सीमंधर आदिक २० तीर्थंकर विदेह क्षेत्र में शाश्वत विद्यमान रहते हैं। श्री १००८ सीमंधर विदेह क्षेत्र से सम्बन्धित हैं, अत: इन्द्र ने भरत क्षेत्र के जिन-मन्दिरों में श्री १००८ सीमंधर भगवान की प्रतिमा स्थापित करना उचित नहीं समझा। यदि इसमें अन्य कोई कारण हो तो विद्वत्मंडल आर्ष वाक्य प्रमाण सहित इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें।
-जं. ग. 23-5-66/IX/हे. च. इमली के पत्तों प्रमाण अवशिष्ट भव वाले मुनि कैसे थे ? शंका-इमली के पत्ते जितने भव धारने के पश्चात् मुक्ति हो जावेगी। भगवान के ऐसे वचनों पर श्रद्धा करके प्रसन्न होने वाले वे मुनि क्या सम्यग्दृष्टि थे या मिथ्याष्टि?
समाधान-उक्त मुनि के यदि दर्शन मोहनीयकर्म का उपशम या क्षयोपशम था तो वे मुनि सम्यग्दृष्टि थे अन्यथा करणानुयोग की अपेक्षा वे मिथ्यादृष्टि थे।
-जे.सं. 8-8-57
कृष्ण ने कौनसी पर्याय में सम्यक्त्व प्राप्त किया ? शंका-सम्यक्त्व को धारण करने से पहले जिस जीव के नरकायु का बन्ध हो चुका है तो वह जीव मरकर पहले नरक से नीचे नहीं जाता है। इस बारे में शंका यह है कि श्रीकृष्ण का जीव मरकर तीसरे नरक में गया है, ऐसा 'हरिवंश पुराण' में कहा है। श्रीकृष्ण का जीव नरक से आकर भावी तीर्थकर होकर मोक्ष चला जावेगा। सो श्रीकृष्ण के जीव ने सम्यक्त्व कौनसी पर्याय में धारण किया?
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