Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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जीवन्धर, महावीर के पश्चात् मोक्ष गये शंका-जीवन्धर और श्री महावीर स्वामी समकालीन थे। इन दोनों में पहले मोक्ष कौन गया है ? समाधान-श्री महावीर स्वामी पहले मोक्ष गये हैं और श्री जीवन्धर स्वामी बाद में मोक्ष गये हैं ।
भवता परिपृष्टोऽयं जीवन्धर मुनीश्वरः । महीयान सुतपा राजन् सम्प्रति श्रु तकेवली ॥६८५॥ घातिकर्माणि विध्वंस्य जनित्वा ग्रहकेवली। सार्ध विहृत्य तीर्थेशा तस्मिन्मुक्तिमधिष्ठिते ॥६८६॥ विपुलाद्रौ हताशेषकर्मा शर्माग्रमेष्यति । इष्टाष्टगुणसम्पूर्णो निष्ठितात्मा निरंजनः ॥६८७॥
--उत्तरपुराण पर्व ७५ श्री सुधर्माचार्य राजा श्रेणिक से कहते हैं कि हे राजन् ! तुमने जिनके विषय में पूछा था वे यही जीवन्धर मुनिराज हैं, ये बड़े तपस्वी हैं और इस समय श्रुतकेवली हैं। घातिया कर्मों को नष्ट कर ये केवलज्ञानी होंगे और श्री महावीर भगवान के साथ विहार कर उनके मोक्ष चले जाने के बाद विपुलाचल पर्वत पर समस्त कर्मों को नष्ट कर मोक्ष का उत्कृष्ट सुख प्राप्त करेंगे।
-जें. ग. 11-5-72/VII/ ....... तीर्थंकरों के लिये स्वर्ग से भोजन शंका-क्या तीर्थंकरों के वास्ते इन्द्र स्वर्ग से भोजन भेजते हैं जब, वस्त्र तो आते सुना है ?
समाधान-तीर्थंकरों के लिये दूध, भोजन आदि की सब व्यवस्था इन्द्र द्वारा की जाती है, वे माता का भी दूध नहीं पीते। कहा भी है -'इन्द्र ने आदर सहित भगवान् को स्नान कराने, वस्त्राभूषण पहनाने, दूध पिलाने, शरीर के संस्कार ( तेल, कज्जल आदि लगाना ) करने और खिलाने के कार्य के लिये अनेक देवियों को धाय बनाकर नियुक्त किया ।। १६५ ॥ वे भगवान् पुण्य कर्म के उदय से प्रतिदिन इन्द्र के द्वारा भेजे हुए सुगन्धित पुष्पों की माला, अनेक प्रकार के वस्त्र तथा प्राभूषण आदि श्रेष्ठ भोगों का-अपना अभिप्राय जानने वाले सुन्दर देवकुमारों के साथ प्रसन्न होकर अनुभव करते थे ।। २११॥' महापुराण सर्ग १४ । पुण्य के उदय से इन्द्र भी सेवा में खड़ा रहता है। पापोदय से मित्र भी शत्र हो जाता है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न द्रव्यों में परस्पर निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है।
-जें. ग. 26-9-63/IX/अ. प. ला. शंका-तीर्थकर गृहस्थ युवा अवस्था में क्या अंगूठा ही चूसते हैं ? यदि आहार करते हैं तो कैसा आहार करते हैं ? क्या माता-पिता द्वारा तैयार किया हुआ आहार करते हैं ?
समाधान-युवा अवस्था को प्राप्त होने पर तीर्थंकर आहार करते हैं किन्तु वह आहार माता-पिता के द्वारा तैयार नहीं किया जाता अपितु इन्द्र से प्राप्त होता है। कहा भी है
आसनं शयनं यानं भोजनं वसनानि च । चारणादिकमन्यच्च सकलं तस्य शक्रजम् ॥३/२२॥ पद्मपुराण
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