Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
प्रश्न-६ : विश्व में जीव में आनन्त्य कैसा? उत्तर : अनन्तज्ञ अनन्त ईश्वरों ने फरमाया है कि
(१) विचित्र विश्व में अनन्त वस्तुएँ हैं। (२) उनमें जीव रूप वस्तु भी अनन्त है । (३) प्रत्येक जीव के प्रत्येक प्रदेश पर अनन्तानन्त कर्म परमाणु हैं । (४) प्रत्येक कर्मपरमाणु पर अनन्तानन्त नो कर्म परमाणु हैं । (५) प्रत्येक नोकर्म परमाणु पर अनन्तानन्त विस्रसोपचय हैं। (६) प्रत्येक विस्रसोपचय भी द्रव्य है यानी वस्तु है अतः उसमें भी अनन्त गुण हैं। (७) प्रत्येक गुण अनन्त पर्यायों से युक्त है।
(८) प्रत्येक पर्याय की अनन्त (अमिट) सामर्थ्य है । प्रश्न----७: क्या अकृत्रिम चैत्यालय भी सचित्त हैं? उत्तर : अकृत्रिम चैत्य एवं चैत्यालय तो सजीव हैं लेकिन कृत्रिम चैत्य चैत्यालय निर्जीव हैं। क्योंकि मूर्ति, फर्श
आदि पर हाथ पाँवों का घर्षण लगता रहता है परन्तु पण्डित माणिकचन्दजी फिरोजाबाद वालों का कहना था कि कृत्रिम चैत्य और चैत्यालयों में ऊपर का तल ही निर्जीव है, नीचे व भीतर का तो
सजीव है। अस्तु, एतद् विषयक आगम वाक्य सम्प्राप्त होने पर ही ग्राह्य हैं। प्रश्न-८ : क्या मैं जहाँ बैठा हूँ, वहाँ भी अग्निकायिक जीव हैं ? उत्तर : क्यों नहीं ? अवश्य हैं । पर हैं सूक्ष्म । ( धवला ग्रन्थ पुस्तक सं० ४ )
___ अन्त में, मैं पूज्य स्वर्गीय पण्डितजी सा० को परम विनीत भाव से अपने श्रद्धा सुमन सादर समर्पित करता हूँ।
निस्पृह आत्मार्थी * श्री महावीरप्रसाद जैन, सर्राफ, चांदनी चौक, दिल्ली
श्रीमान् सिद्धान्तसूरि रतनचन्दजी मुख्तार सा० से लगभग ३० वर्षों से हमारा घनिष्ठ सम्बन्ध था । लगभग १०-१२ वर्षों से तो दशलक्षण पर्व में उनके प्रवचन निरन्तर सुनता रहा हूँ। उन्हें जिनागम पर अटूट श्रद्धा थी, जिनवाणी ही उनका चरम मानदण्ड थी। सफल मुख्तार होते हुए भी अन्तरङ्ग में वीतराग भावों की जागति होते ही आपने तथा आपके लघुभ्राता श्री मान्यवर बाबू नेमिचन्दजी जैन वकील ने संसार की असारता को जाना और आत्मकल्याणार्थ तन, मन व धन से जिनवाणी की साधना में रत हो गए।
इन्हें आज के युग के उत्कृष्ट विद्वान् कहूँ या त्यागी ...." शब्दों का अभाव है।
जब कभी दशलक्षण पर्व के शुभावसर पर पूज्य पण्डित रतनचन्दजी का अभिनन्दन करना चाहा तो आपने किसी भी प्रकार से कुछ भी न करने का स्पष्ट आदेश व प्रार्थना की।
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