Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
श्री श्रमोलकचन्द उड़ेसरीय, जॅवरी बाग, इन्दौर से लिखते हैं।
" आपके द्वारा संचालित 'शंका समाधान' जो जैनगजट में निकलता है उससे बड़ा धर्मलाभ हो रहा है।" इसके लिए हार्दिक धन्यवाद ।
[४-९-६३]
८.
६.
श्री बसन्तकुमार जैन, २७७२ डी शुभपेठ, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) लिखते हैं
" सम्माननीय महाधर्मप्रभावक, सिद्धान्तभूषरण श्री रतनचन्दजी मुख्तार, सविनय जय जिनेन्द्र । मैं जैनगजट का नूतन ग्राहक हूँ । आपके शंका-समाधान पढ़कर सचमुच में ही मुझे महान् सन्तोष मिलता 1 सकल शास्त्र - पारंगता आपने प्राप्त की है; यह जैनजगत् के लिए अभिमानास्पद और अत्यन्त गौरव की बात है।
[२७-२-६४]
१०. श्री मांगेराम जैन, अध्यक्ष, जैन विजय प्रिंटिंग प्रेस, गांधी चौक सूरत (गुजरात) लिखते हैं
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परम आदरणीय श्रद्धेय श्री पं० रतनचन्दजी मुख्तार, पं० नेमिचन्दजी मुख्तार, सादर जयजिनेन्द्र । आदरणीय भाई श्री सरावगीजी ने आपके सम्बन्ध में जो पटना से लेख भेजा था वह प्रकाशित कर दिया है । पत्र देकर प्रेम, वात्सल्य एवं आत्मीयता प्रदान करते रहें। आप मेरे लिये मेरे परिवार के बड़े सदस्य हैं । आप विद्वानों की समाज में ऐसे शोभित होते हैं जैसे "नक्षत्रमण्डल में चन्द्रमा" आपके प्राशीर्वाद से यहाँ | योग्य सेवा लिखें ।
प्रसन्न
[२०-२-६४]
[ ७३
११. श्री रेलचन्द जैन C/o श्री विशनचन्द चंपालाल, मलकापुर जि० बुलडाना (महाराष्ट्र) लिखते हैं
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श्रीमान् बाबूजी साहब ! सादर जयजिनेन्द्र । पत्र श्री रूपचन्दजी को मिला। मैंने भी पढ़ा । श्री रूपचन्दजी तीन भाई हैं । वे सुबह को मन्दिरजी में स्वाध्याय करते | रूपचन्दजी कानजी स्वामी के अनन्य भक्त हैं । एक रोज स्वाध्याय के समय उन्होंने कहा - "सहारनपुर में बाबू रतनचन्द मुख्तार हैं । उनको करणानुयोग का सारे भारत में सबसे ज्यादा ज्ञान है । स्वामीजी भी यह कहते थे कि " रतनचन्द मुख्तार को ज्ञान का बहुत क्षयोपशम है, हमारे से भी ज्यादा है ।"
[१४–१०–६४]
१२. श्री सुनहरीलाल जैन बेलनगंज, आगरा लिखते हैं :
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श्रीमान् श्रद्धेय बाबू रतनचन्दजी जैन मुख्तार, सादर इच्छामि । " शंका-समाधान" लेखावली जैनसमाज के लिए परम कल्याणकारी है । इस सन्दर्भ में यदि अन्य विद्वान् कुछ वाद-विवाद चलाते हैं तो आप उसमें मत उलझिये | कुछ स्पष्टीकरण अनिवार्य हो तो उसमें नाम का उल्लेख न रहे -यह विनम्र सुझाव है ।
[२-११-६४]
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