Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
मैंने यह भी देखा है कि दिगम्बर साधु और आर्यिकाएँ, जिनको जैन सिद्धान्त के बारे में जानने की इच्छा थी. वे उनके सान्निध्य में जैन सिद्धान्त का मनन करना चाहते थे और बाबूजी भी अपना काफी समय दे करके षट्खण्डागम आदि मूल ग्रन्थों 'का उनको स्वाध्याय कराते रहते थे । उनका ऐसा सोचना था कि शायद इन्हीं साधु और साध्वियों में से कोई ऐसा निकल आवे कि जो अपना कल्याण करते हुए संसार के दुःखी जीवों का भी ( जो मिथ्यात्व में फँसे हुए हैं ) कल्याण करदे । बाबूजी खुद में एक संस्था थे । जहाँ वे बैठ जाते थे वहीं जिज्ञासु जीवों की भीड़ लग जाती थी । कुछ लोग ऐसे भी थे जो उनका विरोध भी करते थे । परन्तु वे यही बात कह करके समाप्त कर देते थे कि “इनका कसूर नहीं है । इनके अन्दर जो मिथ्यात्व बैठा हुआ है, वह उसका ही कसूर है और उनकी हम लोगों को यही प्रेरणा रहती थी कि मनुष्य गति, जैन धर्म का समागम, यह नीरोग शरीर, यह सब तुम्हें पिछले पुण्य के उदय से ही मिला है। इस पूँजी को व्यर्थ ऐसे ही मत गँवाओ ! प्रायु तो बीत रही है । चालीस के होगये, पचास के हो गये, साठ के हो गये और कुछ व्यक्ति सत्तर के भी हो गये, क्या अब भी नहीं चेतोगे ?" परन्तु एक हम हैं कि उनकी बातों को इधर से सुनते हैं और उधर से निकाल देते हैं ।
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मैं अपनी श्रद्धा स्व० बाबूजी के चरणों में अर्पित करता हूँ । स्व० बाबूजी को पार्श्व प्रभु शान्ति प्रदान करें, यही मेरी कामना है ।
अद्वितीय विद्वान्
* श्री मोतीलालजी मिण्डा, उदयपुर
स्वर्गीय परम श्रद्धय ब्रह्मचारी पण्डित रतनचन्दजी सा० मुख्तार इस युग के महान् तत्त्वखोजी एवं अद्वितीय विद्वान् थे | आपने साधु संघों में मुनिराजों को जिनवाणी का पठन करा कर महान् सेवा की । जहाँ भी जिनवाणी में शङ्का हुई आपने निष्पक्ष समाधान कर भ्रम दूर करने में महान् योग दिया। आप सरल चित्त, सन्तोषी एवं चरित्रवान श्रेष्ठ सज्जन व्यक्तियों में से एक थे । आपकी स्मृति में ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, मुझे बड़ी प्रसन्नता है । मैं इसकी सफलता की कामना करता हूँ एवं पूज्य पण्डितजी के लिए शान्ति प्राप्ति की अभिलाषा करता हूँ ।
रतनचन्द मुख्तार, सहारनपुर वाले * श्री धूलचन्द जैन, चावण्ड जि० उदयपुर
भारतीय दिगम्बर जैन समाज में विख्यात, पूज्य आत्मा, प्रकाण्ड ज्ञानी सिद्धान्तभूषण, देशव्रती, समपरिणामी, समीचीन पंडित, निकट भव्य, साम्प्रतिक काल में उपलब्ध सिद्धान्तार्णव के ज्ञायक, धवला, जयधवला व महाधवला शास्त्रों के ज्ञाता, पञ्चम गुणस्थानवर्ती श्री रतनचन्द मुख्तार का जन्म जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, श्रार्यखण्ड, भारतवर्षं, उत्तरप्रदेश के सहारनपुर शहर में, बड़तला यादगार मोहल्ले में करीब ८३ वर्ष पूर्व हुआ । इस बालक का नाम रतनचन्द रखा गया था । पुरोहितों ने बताया कि यह बालक यथा नाम ज्ञानात्मक हीरों की खान होगा व भारत की धरती पर जिज्ञासु भव्यों को शास्त्रों के ज्ञान से संपोषित करेगा ।
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