Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
कि हर विषय का ज्ञान उपस्थित, कोई भी विषय हो तुरन्त ग्रन्थ का नाम व पृष्ठ संख्या भी जबान पर हाजिर; मैं तो देखकर चकित था। पूछने पर बताया कि "हमारी भाषा तो उर्दू थी, संस्कृत- प्राकृत तो दूर हिन्दी की भी हमारी पढ़ाई नहीं हुई । जो कुछ अर्जित किया है वह सब स्वाध्याय से ही पाया है । १०-१२ घण्टों से लेकर १६ घण्टों तक प्रतिदिन हमारी स्वाध्याय चलती है । पहले वकालात करते थे, कानून की कौनसी किताब में कौनसा कानून कहाँ पर है, यह नजीर याद रखते थे । वकालात छोड़कर वही उपयोग इधर लगा दिया । "
पूज्य वर्णीजी के पास बड़े-बड़े विद्वान् हमेशा आते रहते थे, उनका उपदेश व शास्त्र प्रवचन होता था । जरा भी कोई बात गड़बड़ निकलती तो उसी समय रोक देते थे, ग्रन्थ निकाल कर तुरन्त समाधान करा देते थे ।
मुख्तार सा० के साथ महीनों तक ईसरी में रहने का मौका मिला और स्वाध्याय का लाभ मिला । पटना में मेरे घर पर भी आपने कई बार कई-कई दिन के लिये पधार कर रहने की कृपा की ।
कटनी में 'विद्वत्परिषद्' की मीटिंग थी। मुख्तार सा० उन दिनों 'विद्वत्परिषद्' के सदस्य थे एवं 'शङ्कासमाधान' विभाग उन्हीं के जिम्मे था । 'जैन सन्देश' में उनका 'शङ्का समाधान' नियमित रूप से हर अंक में प्रकाशित होता था । तब मेरे साथ आप भी कटनी गये थे और मेरे घर पर ही ठहरे थे। मीटिंग के पूरे काल में उनके सान्निध्य से मैंने अतिशय लाभ लिया ।
संवत् २०१६ में अजमेर में परम पूज्य आचार्य १०८ ( स्व ० ) श्री शिवसागरजी महाराज के संघ का चातुर्मास था । मैं प्रायः हर चातुर्मास में उनके दर्शनार्थ जाया करता था। एक-दो महीना रहकर लाभ उठाता था । उस चातुर्मास में मुख्तार सा० भी अजमेर श्राये थे । वहाँ पर सोनगढ़ भक्तों मुमुक्षुत्रों का एक दल था । उन लोगों की शास्त्रीय चर्चा एवं शंका समाधान कई दिनों तक मुख्तार सा० के साथ हुए । पण्डितजी की विद्वत्ता से वे लोग बहुत प्रभावित हुए। उन लोगों ने निर्णय लिया कि "आप हमारे साथ कुछ दिनों के लिए सोनगढ़ चलिए, आपके चलने से बहुत लाभ होगा। कानजी स्वामी हठग्राही नहीं है; आपके साथ चर्चा होने से निश्चय ही सैद्धान्तिक विषयों में कानजी स्वामी की जो गलत मान्यता बैठ गई है, उसका निराकरण हो जाएगा । ऐसा हम लोगों को पूर्ण विश्वास है ।" मुख्तार सा० की सोनगढ़ चलने की स्वीकृति पाकर उन लोगों ने सोनगढ़ लिखा कि हम मुख्तार सा० को लेकर सोनगढ़ आ रहे हैं पत्र पहुँचते ही सोनगढ़ से उन लोगों के पास तार आया कि " रोको, रतनचन्द सोनगढ़ नहीं आवे ।" यह तार पाकर वे सब लोग हताश हो गए। मुझे भी उनकी कमजोरी पर बहुत खेद हुआ और मुख्तार सा० का सोनगढ़ जाना नहीं हो सका ।
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मुख्तार सा० का मुनिसंघ में जाने का यह पहला ही मौका था। संघ में भी उनके साथ स्वाध्याय से बहुत लाभ हुआ । पण्डितजी भी मुनिसंघ की चर्या और चर्चा से बहुत प्रभावित हुए । संघ में आचार्य महाराज एक दिन छोड़कर दूसरे दिन आहार करते थे और भी बहुत से साधु उपवास करते थे । मुख्तार सा० भी हमेशा दिन में एक बार ही भोजन करते थे फिर शाम को (गर्मी के दिनों में भी ) पानी भी नहीं पीते थे । संघ से घर लौटने के बाद उन्होंने भी कई दिन तक एक दिन छोड़कर ( एकान्तर ) भोजन किया तथा अभ्यास रूप में केशलोंच भी किया । तब से हर चातुर्मास में वे मुनिसंघ में आते रहते थे व महीनों तक रहते थे । उनका थोड़ा सा भी समय वृथा नहीं जाता था । जब देखो तभी अध्ययन-अध्यापन में ही लगे रहते थे । षट्खण्डागम, धवल, महाघवल एवं जय धवल सरीखे करणानुयोग के रूक्ष ग्रन्थों का अध्ययन चलता रहता था। संघ से त्रिलोकसार जैसे ग्रन्थ के प्रकाशन का श्रेय इन्हीं को है । वर्तमान में प्रकाशित धवल, महाधवल व जयधवल ग्रन्थों में गम्भीर सूक्ष्म अध्ययन करके हजारों अशुद्धियाँ आपने ही पकड़ी थीं। कहां पर कितना विषय छूट गया है, कहां पर कितना ज्यादा है, यह
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