________________
७६
प्रज्ञापनासूत्र एवं यावत्-वनस्पतिकायिकानाम् , द्वीन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! नो संवृतयोनिः, विवृत्तयोनिः, नो संवृतविवृतयोनिः, एवं यावत्-चतुरिन्द्रियाणाम् , समूच्छिमपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां संमूच्छिममनुष्याणाञ्च एवश्चैव, गर्भव्युत्क्रान्तिक पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां गर्मव्युत्क्रान्तिकमनुष्याणाञ्च नो संवृता योनिः, नो विवृता योनिः, संवृतविवृता योनिः, वानव्यन्तरज्योतिष्क. वैमानिकानां यथा नैरयिकाणाम् , एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां संवृतयोनीनां विवृतयोनीनां विवृत होती है ? (गोयमा ! संवुड जोणी) गौतम ! संवृतयोनि होती है (नो वियडजोणी) विवृतयोनि नहीं होती (नो संवुडवियडजोणी) संवृतविवृतयोनि
भी नहीं होती (एवं जाव वणस्लइकाइयाणं) इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक ' (वेईदियाणं पुच्छा ?) हीन्द्रियों संबंधी प्रश्न (गोयमा ! नो संवुडजोणी) गौतम ! संवृतयोनि नहीं होती (वियड जोणी) विवृतयोनि होती है (नो संवुडवियडजोणी) संवृतविवृतयोनि नहीं होती (एवं जाव चरिंदिया णं) इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियों तक (संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं समुच्छिममणु. स्साणय एवं चेव) समूर्छिमपंचेन्द्रियतिर्यचों और संमृछिम मनुष्यों की भी इसी प्रकार (गन्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) गर्भज पंचेन्द्रिय तियचों की (गम्भवक्कंतिय मणुस्साण य) और गर्भज मनुष्यों की (नो सवुडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी) न संवृतयोनि होती है, न विवृत योनि होती हैं, किन्तु संवृतविवृतयोनि होती है (वाणमंतर जोइसियवेमाणियाणं) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की (जहा नेरइयाणं) नारकों के समान । ___ (एतेसि णं भंते ! जीवाणं संवुडजोणियाणं, वियडजोणियाणं संवुडवियड(गोयमा । (संवुडजोणी) 8 गौतम ! सवृत्त योनि डाय छे (ना विवडजोणी) विवृत्त योनि नयी खाता (नो संवुडा वियडजोणी) संवृत्त विवृत्त योनि ५Y नथी छाती (एवं जाव वणस्सइकाइयाणं) से प्रारे वनस्पतिथि:। सुधी
__ (वइंदियाणं पुच्छा ?) हीन्द्रियो सम्मन्धी प्रश्न (गोयमा ! नो संवुडजोगी) गौतम! स वृत्त योनि नथी छाती (वियडजोणी) विवृत्त योनि डाय छे (नो संवुडवियडजोणी) सवृत्त वित्त योनि नथी खाती (एवं जाव चउरिदियाणं) से प्रारं यतुरिदिये। सुधी (संमुच्छिमपंचिंदियतिरिवखजोणियाण, संमुच्छिममणुस्साण य एवं चेव) सभूछिम ५येन्द्रिय तिय यो मन सभूछिभ मनुष्याना पशु से प्रारे (गम्भव तियपंचिंदियतिरिक्खजोणियाण) गल पथेन्द्रिय तिय यानी (गम्भवक्क तिय मणुस्साण य) भने । मनुष्योनी (नो संयुडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडविवडा जोणी) - सवृत्त योनि हाय छ न वित्त योनि खाय छ, ५ स वृत्त विवृत्त योनि डाय छे (वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं) पान०य-तर, योति५४ भने पैमानि वानी वतव्यता (जहा नेरइयाणं) नाना समान
(ए रसिंग भो ! जीवाणं संवुड जोणियाणं, वियडजोणियाणं संवुडवियहाजोणियाण अजो