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अठारह पुराणोंसे भिन्न, अन्य मुनियोंके रचे पुराण । उपप्रश्न - पु० [सं०] प्रश्न के अंदर पैदा होनेवाला प्रश्न । उपप्लव - पु० [सं०] उत्पात, उपद्रव, भौतिक दुर्घटना; पीड़न; विघ्न; (इनसरेक्शन) राजसत्ता या सरकार के प्रति छोटे पैमानेपर किया गया या आरंभिक अवस्थाका विद्रोह |
उपबंध - पु० [सं०] संबंध; संयोग; (प्रोविजन) किसी विधि, अधिनियम आदिके वे खंड या उपखंड जिनमें किसी बातकी संभावना आदिको ध्यान में रखते हुए पहले से कोई प्रबंध या गुंजाइश रख दी जाय; इस तरह रखी गयी गुंजाइश या गुंजाइश रखनेकी क्रिया ।
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उपबंधित - वि० [सं०] ( प्रोवाइडेड ) उपबंधके अनुरूप, उपबंध में निर्दिष्ट |
उपबरहन* - पु० दे० 'उपबर्हण' ।
उपबर्ह, उपबर्हण - पु० [सं०] दबाना; तकिया | उपबाहु - पु० [सं०] हाथका बाहुसे नीचे (कुहनीसे कलाईतक) का भाग, पहुँचा |
उपभुक्त - वि० [सं०] भोगा, काममें लाया हुआ; जूठा । उपभूमि- स्त्री० [सं०] (सब-सॉइल) भूमिके ऊपरी भाग या तलके नीचेका स्तर |
उपभेद - पु० [सं०] गौण भेद, उपविभाग | उपभोक्ता (क्त)-वि० [सं०] उपभोग करनेवाला; बरतनेवाला; काबिज ।
उपभोग - पु० [सं०] भोगना; सुख, स्वाद लेना; बरतना; विषय-सुख ।
उपभोग्य - वि० [सं०] भोगने, व्यवहार करने योग्य | पु० भोगकी वस्तु । - वस्तुएँ - स्त्री० (कंज्यूमर्स गुड्स) मनुष्यके उपभोग या काममें आनेवाली आवश्यक वस्तुएँ - जैसे गल्ला, कपड़ा आदि ।
उपभोज्य - वि० [सं०] खाने योग्य | उपमंत्री (त्रिन्) - पु० [सं०] सहायक मंत्री | उपमा-स्त्री० [सं०] समता, तुलना; अर्थालंकारका एक भेद जिसमें दो वस्तुओं में भेद होते हुए भी धर्भगत समता दिखायी जाती है।
उपमाता (तृ) - वि० [सं०] उपमा देनेवाला स्त्री० घाय; मातृतुल्य संबंधिनी - मौसी, चाची आदि । उपमान - पु० [सं०] वह वस्तु जिससे किसीकी तुलना की जाय । - लुप्ता - स्त्री० उपमा अलंकारका एक भेद । उपमाना* - स० क्रि० तुलना करना ।
उपमित- वि० [सं०] जिसकी किसीसे उपमा दी गयी हो ।
५० कर्मधारय समासका एक भेद ।
वाला ज्ञान (न्या० ) ।
उपमेय - वि० [सं०] उपमा देने योग्य | पु० वह वस्तु जिसकी किसीसे तुलना की जाय, वर्ण्य । उपमेयोपमा स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद जिसमें उपमेयकी उपमा उपमानसे और उपमानकी उपमेयसे दी गयी हो ।
उपयंत्र - ५० [सं०] छोटा यंत्र या औजार । उपयाचित- वि० [सं०] प्रार्थित, निवेदित ।
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उपप्रश्न - उपराष्ट्रपति
उपयुक्त - वि० [सं०] उपयोग में लाया हुआ; प्रयुक्त; उचित, ठीक, मौजू; योग्य; अनुकूल |
उपयोग- पु० [सं०] व्यवहार, काम लेना; लाभ; उपयुक्तता; प्रयोग; दवा देना या तैयार करना । उपयोगिता - स्त्री० [सं०] उपयोगी होना, उपयुक्तता ।
- वाद-पु० अधिक से अधिक लोगोंका अधिक से अधिक हितसाधन धर्म है - यह मत ( यूटिलिटेरियनिज्म ) । - वादी (दिन) - पु० उपयोगितावादका अनुयायी । उपयोगी (गिन्) - वि० [सं०] काममें आनेवाला, कारामद; लाभजनक; काममें आनेवाला ।
उपरंजक - वि० [सं०] रँगनेवाला; प्रभाव डालनेवाला । उपरंजन - पु० [सं०] रँगना; पासकी चीजपर अपना रंग या असर डालना ।
उपरक्त - वि० [सं०] विषयासक्त; पीड़ित; जिसे ग्रहण लगा हो; रंजित; जिसमें उपाधिके सान्निध्य से उसके गुणकी प्रतीति होती हो ।
उपरत - वि० [सं०] विरक्त, रागरहित; निवृत्त । उपरति - स्त्री० [सं०] विषय-भोगसे विरक्ति; उदासीनता । उपरत्न- पु० [सं०] घटिया किस्मके रत्न (सीप, स्फटिक इ० ) | उपरना - पु० दुपट्टा, उत्तरीय । * अ० क्रि० उखड़ना । उपरफट, उबरफट्ट - वि० ऊपरी; बाहरी; निष्प्रयोजन, बेकार; नियमितके अलावा ।
उपरस - पु० [सं०] पारेके सदृश गुणवाले पदार्थ- गंधक, अभ्रक, मैनसिल, गेरू आदि; गौण भाव । उपरांत - अ० [सं०] अनंतर, बाद ।
उपराग - पु० [सं०] रंग; लाली; चंद्र-सूर्य ग्रहण; विषयासक्तिः निकटस्थ वस्तु के प्रभावसे रंग रूप बदलना (सांख्य० ) । उपर चढ़ी - स्त्री० एक दूसरेसे बढ़ जानेकी कोशिश, प्रतिस्पर्धा, लाग-डाट ।
उपराजना* - स० क्रि० उत्पन्न करना, उपजाना; बनाना; उपार्जन करना ।
उपराजसंरक्षक - पु० [सं०] (वाइस रीजेंट) राजसंरक्षक की अनुपस्थिति में उसका काम सम्हालनेवाला ।
उपमिति - स्त्री० [सं०] सादृश्य, पटतर; साध्यसे होने- उपराना* - अ० क्रि० ऊपर आना; उतराना । स० क्रि०
उपराज - पु० [सं०] राजाका नायब, राजप्रतिनिधि ( वाइसराय) । * स्त्री० उपज, पैदावार । उपराजदूत, उपराजप्रतिनिधि - पु० [सं०] (लिगेट) अन्य देशमें रहनेवाला किसी राज्य या राष्ट्रका वह कूटनीतिक मंत्री या प्रतिनिधि जिसे अभी मुख्य राजदूतका पद प्राप्त न हुआ हो ।
उपराजदूतावास - ५० [सं०] ( लिगेशन) उपर राजदूतका निवासस्थान |
ऊपर करना, उठाना ।
उपराम - पु० [सं०] उपरति; निवृत्तिः त्याग । उपराला* - पु० सहायता; बचाव पक्षग्रहण | उपरावटा* - वि० जो सिर ऊपर किये हुए हो, अकड़ता हुआ ।
उपराष्ट्रपति - पु० [सं०] ( वाइस प्रेसीडेंट ) गणतंत्रका वह निर्वाचित पदाधिकारी जो राष्ट्रपतिकी अनुपस्थिति, बीमारी आदिके समय उसके कार्योंका निर्वाहन करता है ( भारत में
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