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विहारी-वीर स्थान; भिक्षुओंका मठ; कंधा; इंद्रका प्रासाद या ध्वजा; किया हुआ; स्वीकृत; जो युद्ध में काम आने योग्य न हो; प्रासादा फैलाव । -गृह-पु. क्रीड़ा-भवन। -भूमि- शांत; पालतू रहित, निवृत्त; इच्छित । -कल्मष-वि० स्त्री० मनोरंजनका स्थान; चरागाह । -वन-पु. क्रीडो. पापसे मुक्त ।-काम-वि० इच्छासे रहित ।-घृण-वि० द्यान । -वापी-स्त्री० क्रीड़ाके लिए बना हुआ तालाब । निर्दय, निष्ठुर । -चिंत-वि. चिंतामुक्त। -जन्म. -स्थली-स्त्री०,-स्थान-पु० क्रीड़ास्थान ।
जरस-वि. जन्म और बुढ़ापेसे मुक्त।-तृष्ण-वि०जिसमें विहारी(रिन्)-वि० [सं०] मनोरंजनके लिए घूमने- वासनाएँ न रह गयी हों। -दंभ-वि. निरभिमान, वाला; आनंद लेनेवाला; सुंदर । पु० कृष्ण ।
विनम्र । -भय-वि० निभीक । पु० विष्णु, शिव । - विहास-पु० [सं०] मुसकान ।
भीति-वि.निीक । -मसर-वि० मत्सररहित, द्वेषाविहित-वि० [सं०] किया हुआ, कृत; आदिष्ट; रखा। दिसे रहित। -मल-वि० स्वच्छ, निष्पाप । -मोहहुआ; करने योग्य; जिसका विधान किया गया हो। वि० मोहसे रहित । -राग-वि० वासनारहित; इच्छा-निषिद्ध कर्म-पु० (एक्टस ऑफ कमीशन एंड ओमि- हीन; शांत बिना रंगका । पु. वह व्यक्ति जिसने आसक्ति शन) वे कर्म जिन्हें करनेका शास्त्र आदेश देता है तथा आदिका परित्याग कर दिया है। बौद्ध या जैन महात्मा । वे जिन्हें न करनेका शास्त्रीय विधान हो; वे कर्म जिन्हें -बीड-वि० निर्लज्ज । -शंक-वि०निःशंक, निर्भय । करना चाहिये तथा चे जिन्हें न करना चाहिये।
-शोक-वि० शोकरहित, गतशोक । पु० अशोक वृक्ष । विहीन-वि० [सं०] पूर्णतः त्यक्ता नीच; वंचित, रहित। वीथि, वीथी-स्त्री० [सं०] पंक्ति, कतार, दौड़का चक्र, -जाति,-योनि,-वर्ण-वि० नीच जातिका ।
घुड़दौड़का रास्ता बाजार, दुकान; चित्रोंकी कतार; विहून*-वि० रहित ।
नक्षत्रोंके अवस्थानका एक भाग; सूर्यका मार्ग मकानमें विहृत-पु० [सं०] स्त्रियोंके दस हावोंमें से एक (सा०)। सामनेका छज्जा; मार्ग, सड़क दृश्य काव्यका एक भेद विह्वल-वि० [सं०] क्षुब्ध, अशांत; व्याकुल; भयाभिभूत; जिसमें एक ही अंक, एक-दो पात्र और विषय शृंगारप्रधान हतबुद्धि।
होता है और पात्र आकाश-भाषितके रूप में बोलता है। विह्वलता-स्त्री०, विह्वलत्व-पु०[सं०] व्याकुलता,चिंता। वीथिका-स्त्री० [सं०] पंक्ति सड़क; चित्रोंकी पंक्ति चित्रां वीक्ष-पु० [सं०] दृष्टि; दृश्य वस्तु; (लेस) किरणोंको केंद्री- कित दीवार या पट्ट, छज्जा; दृश्य काव्यका एक भेद भूत करनेवाला शीशेका ताल ।
(दे० 'बीथी')। वीक्षण-पु० [सं०] विशेष रूपसे देखना, निरीक्षण; जाँचवीप्सा-स्त्री० [सं०] व्याप्ति कार्यका नरंतर्य सूचित करनेके दृष्टि, नजर आँख ।
लिए शब्दकी आवृत्ति, पुनरुक्तिः एक शब्दालंकार, जहाँ वीक्षणीय-वि० [सं०] देखने योग्य; विचार करने योग्य । आदर, आश्चर्य आदिका भाव प्रकट करनेके लिए एक वीचि, वीची-स्त्री० [सं०] तरंग, लहर, अविवेक । शब्द कई बार कहा जाय । -क्षोभ-पु० तरंगोंका उठना ।-तरंगन्याय-पु० लगा- वीर-स्त्री० दे० 'बीर' । वि० [सं०] बहादुर, जवांमर्द, तार उठनेवाली लहरोंकी तरह एकके बाद दूसरा कार्य शूर; शक्तिशाली । पु० योद्धा; एक रस (जिसके चार भेद होना। -माली (लिन)-पु. समुद्र ।
है-दानवीर, धर्मवीर, दयावीर और युद्धवीर); अभिनेता चीज-पु० [सं०] दे० 'बीज' (समास भी)।
अग्निः पुत्रः पति; जैन; विष्णु; सरकंडा; काली मिर्च वीजक-पु० [सं०] दे० 'बीजक' ।।
काँजी, खस, उशीरमूल; शृंगी विष; पुष्करमूल; एक वीजन-पु० [सं०] पंखा; चँवर, पंखा झलना; चकोर । असुर; * पु० भाई। -कर्मा(मन)-वि० वीरोवीजांकुर-न्याय-पु० [सं०] दे० 'बीजांकुर-न्याय' । चित कर्म करनेवाला । -केश(स)री(रिन्)-वि० वीजित-वि० [सं०] झला हुआ, पंखा झलकर ठंढा किया वीरोंमें सिंहके समान पराक्रमी। -गति-स्त्री० युद्ध में हुआ; जलसे सींचा हुआ।
प्राणांत होनेपर मिलनेवाली गति, स्वर्ग। -चक्र-पु० वीटक-पु० [सं०] पानका बीड़ा।
स्वतंत्र भारतके किसी सैनिकको रणक्षेत्र में विशेष वीरता वीटा-स्त्री० [सं०] प्राचीन काल में खेला जानेवाला लड़कों-/ दिखानेपर दिया जानेवाला तृतीय श्रेणीका पदक । - का एक खेल, एक तरहका गुल्ली-डंडा, गुल्ली ।
चक्रेश्वर-पु० विष्णु । -जननी-स्त्री० वीर पुत्रको जन्म वीटि, वीटी-स्त्री० [सं०] नागवाली; पानका बीड़ा। देनेवाली माता । -धन्धा(न्वन)-पु० कामदेव । वीटिका-स्त्री०[सं०] दे० 'बीटि'; कपड़ेका बंधन या गाँठ।। -पट्ट-पु. एक प्रकारका सैनिक वस्त्र (ललाटपर पहननेवीण-स्त्री० दे० 'वीणा'।
का)। -पत्नी-स्त्री० वीरकी भार्या । -पाण,-पाणक वीणा-स्त्री० [सं०] सितार जैसा एक बाजा जिसके दोनों -पु. एक पेय जो युद्ध में जाते समय या युद्ध में सैनिक सिरोंपर तुंबे लगे रहते हैं। बिजली। -दंड-पु० वीणाका पीते थे। -पान,-पानक-पु० दे० 'बीरपाण' । -पूजा लंबा दंड, तुंबोंके बीचका हिस्सा। -पाणि-पु. नारद । -स्त्री० ( हीरो वरशिप) वीरों, महान् पुरुषोंका समुचित स्त्री० सरस्वती।-रव-पु. वीणाका स्वर । वि० वीणाकी आदर-सम्मान । -प्रजायिनी,-प्रजावती-स्त्री० वीर तरह गुनगुनानेवाला ।-वादक-पु० वीणा बजानेवाला। उत्पन्न करनेवाली स्त्री, वीरमाता ।-प्रसवा-प्रसविनी, -वादन-पु० मिजराब; वीणा बजाना। -वादिनी- -प्रसू-स्खी० दे० 'वीरप्रजायिनी' ।-भट-पु० योद्धा। स्त्री० सरस्वती।
-भद्र-पु० अश्वमेधका घोड़ा; खस; शिवकी जटासे वीत-वि० [सं०] गत, लुप्त प्रस्थित छोड़ा हुआ; अपवाद | उत्पन्न एक वीर श्रेष्ठ वीर । -भद्रक-पु० उशीर, खप्त ।
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