Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 896
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८७ www.kobatirth.org सफेद दिलानेवाला । स्फुर्तना, स्फुर्दना* - स्त्री० स्फूर्ति; किसी बातका अचा नक ज्ञान होना; स्पष्टतः देख पड़ना; प्रकाशित होना । स्फुलिंग - पु० [सं०] अग्निकण, चिनगारी । स्फुलिंगिनी - स्त्री० [सं०] अग्निकी सात जिह्वाओं में से एक । स्मारी (रिन्) - वि० [सं०] स्मरण रखनेवाला; याद स्फूर्ज - पु० [सं०] बादलों की गड़गड़ाहट; इंद्रका वज्र । स्फूर्जित - वि० [सं०] गर्जित; गरजने वाला । स्फूर्त - वि० [सं०] कंपित; जिसकी अचानक स्मृति हुई हो । स्फूर्ति - स्त्री० [सं०] कंपन, स्फुरण; उछलना; मानसिक आवेश, उत्तेजना; उत्साह; तेजी, फुरती । स्फोट - पु० [सं०] फूटकर निकलना; फैलना; (किसी बातका) प्रकट हो जाना; फोड़ा; अर्बुदः टुकड़ा । स्फोटक - पु० [सं०] फोड़ा; फुंसी; भल्लातक । स्फोटन - पु० [सं०] फाड़ना, विदारण करना; व्यक्त करना; अचानक फट पड़ना; उँगलियाँ चटकाना । स्फोटा - स्त्री० [सं०] साँपका फन; हाथ हिलाना; अनंतमूल । स्फोटित - वि० [सं०] जिसका स्फोट किया गया हो; प्रक टित । -नयन - वि० जिसकी आँखें फोड़ दी गयी हों । स्फोटिनी - स्त्री० [सं०] कर्कटी, ककड़ी । स्मयन - पु० [सं०] मंद हास, मुसकान । स्मयी (यिन् ) - वि० [सं०] मंद हासयुक्त, मुसकानेवाला । स्मर - पु० [सं०] स्मृति, स्मरण; प्रेम; कामदेव । -कथास्त्री० प्रेमवार्ता । - ज्वर-पु० कामज्वर, कामजन्य ताप । - दशा - स्त्री० शरीरकी कामजन्य अवस्था (असौछव, ताप, पांडुता, कृशता, अरुचि, अधृति, अनालंबन, तन्मयता, उन्माद और मरण) । - दहन - पु० शिव । - पीडित- वि० कामदेवका सताया हुआ । - प्रियास्त्री० रति । - शत्रु-पु० शिव । -शर- पु० कामदेव के बाण । - सख- पु० ऋतुराज; चंद्रमा । - हर- पु० शिव । स्मरण - पु० [सं०] स्मृति, याद; चिंता; स्मृतिशक्ति; स्मृतिके आधारपर हस्तांतरित होना; देवताके नामका जप (भक्तिका एक प्रकार); खेदपूर्ण स्मृति; एक अर्था लंकार जहाँ कोई सदृश वस्तु (कभी-कभी विसदृश वस्तु) देखकर, सुनकर या सोचकर किसी विशेष वस्तुका स्मरण हो आवे । - पत्र - पत्रक - पु० याद दिलाने के लिए लिखा हुआ पत्र । - शक्ति - स्त्री० याद रखनेकी शक्ति । स्मरणीय - वि० [सं०] स्मरण करने योग्य | स्मरना * - स० क्रि० याद करना । स्मरांध - वि० [सं०] कामांध | स्मराकुल- वि० [सं०] कामरोग से ग्रस्त, कामविह्वल । स्मरातुर - वि० [सं०] कामातुर । स्मर्ण * - पु० दे० 'स्मरण' । स्मर्तव्य - वि० [सं०] स्मरणके योग्य; जिसकी केवल स्मृति शेष रह गयी हो । स्मर्ता (र्तृ) - वि० [सं०] याद करने, रखनेवाला | स्मर्य - वि० [सं०] स्मरणीय । स्मशान, स्मसान - पु० दे० 'श्मशान' । स्मार - पु० [सं०] (मेमो) दे० 'ज्ञापन' । स्मारक - वि० [सं०] याद दिलानेवाला । पु० किसीकी स्मृति रक्षाके अभिप्रायसे निर्मित भवन, स्तंभ आदि ५६ - क | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्फुर्तना - स्थाना ( मेमोरियल ) । - ग्रंथ - पु० (कमेमोरेशन वाल्यूम) किसी विद्वान्, दार्शनिक, नेता आदिकी स्मृति बनाये रखने के लिए रचित ग्रंथ । स्मार्त - वि० [सं०] स्मृति-संबंधी; जो स्मृति में हो; स्मृतिके आधारपर बना हुआ, स्मृतिविद्दित; वैध; स्मृतिको माननेवाला; गृह-संबंधी (जैसे अग्नि) । पु० स्मृतिविहित कर्म; स्मृतियों के अनुसार चलनेवाला एक संप्रदाय इस संप्रदायका अनुयायी । - कर्म (न्) - पु० स्मृतिविहित कर्म । स्मित- पु० [सं०] मंद हास, मुसकान । वि० खिला हुआ; मुसकाता हुआ । -मुख - वि० हँसमुख | स्मिति - स्त्री० [सं०] मंदहास; हास । स्मृत - वि० [सं०] स्मरण किया हुआ; उल्लिखित । स्मृति-स्त्री० [सं०] स्मरण, याद; चिंतन; एक संचारी भाव; धर्मशास्त्र । - उपायन - पु० ( स्वेनीर) पुरानी घटनाओं, अवसरों, स्थानों आदिकी स्मृति बनाये रखनेके लिए रखा गया या किसीको भेंट में दिया गया चित्रादिका संग्रह या अन्य कोई वस्तु । - कार - पु०स्मृतिका निर्माता - - कारक - वि० स्मरण शक्ति बढ़ानेवाला । - भ्रंश - पु० स्मृतिका नष्ट हो जाना, याद न रहना; ज्ञान न रहना । - विभ्रम- पु० स्पष्ट स्मरण न होना । विरुद्ध - वि० शास्त्रविरुद्ध । - शास्त्र - पु० धर्मशास्त्र । -शेष- वि० जिसकी केवल स्मृति रह गयी हो, गत, मृत । पु० ( रेलिक) किसी महात्मा या महापुरुषके शरीरकी अस्थि, केश, दाँत आदि अथवा उसका कोई वस्त्र, खड़ाऊँ, पात्र आदि जो उसकी मृत्युके बाद उसकी स्मृतिके रूपमें सुरक्षित रखा गया हो। - शैथिल्य - पु० स्मरणशक्तिकी दुर्बलता । - सम्मत- वि० धर्मशास्त्रविहित । - सिद्धवि० शास्त्रविहित | -हीन- वि० जो स्मरण न रख सके, विस्मरणशील | स्यंद-पु० [सं०] रिसना, चूना, टपकना, स्राव; प्रवाहित होना; पसीना निकलना; गलना, पानी होना । स्यंदन - वि० [सं०] तेजीसे जानेवाला (जैसे रथ); बहने - वाला; रिसनेवाला; गलनेवाला । पु० रथ; युद्धरथ; वायु; तीव्र गति या प्रवाह; स्राव; जल; तिनिश वृक्ष; तिंदुक वृक्ष स्पंदनारूढ - वि० [सं०] रथारूढ । स्यंदी (दि) - वि० [सं०] स्राव करनेवाला, रिसनेवाला । स्यमंतक - पु० [सं०] एक प्रसिद्ध मणि जिसे चुरानेका दोष कृष्णको लगा था । स्यात् - अ० [सं०] कदाचित्, शायद । स्याद्वाद - पु० [सं०] जैनोंका संशयवाद, अनेकांतवाद । स्थान* - वि० दे० 'स्याना' । - पन - पु० चतुरता, चालाकी । स्यानप* - पु० दे० 'स्थानपन' । स्याना - वि० चतुर, होशियार; धूर्त; बालिग, प्रौढ । पु० बड़ा-बूढ़ा; ओझा, नंबरदार, मुखिया; हकीम । -चारी - स्त्री० गाँवके मुखियाको मिलनेवाला रसूम । -पनपु० बालिग होनेकी अवस्था, युवावस्था; होशियारी, For Private and Personal Use Only

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