Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1014
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००५ साधा-स्कंदन साधा*-पु० साध, उत्कंठा-'साधा सन हेरिय'-घन। सिलाम*-पु० सलाम, प्रणाम (मीरा)। साधिकार-अ० अधिकार सहित, अधिकारपूर्वक । वि० सीनातोड़-पु० कुश्तीका एक पेंच । अधिकारसे युक्त, जिसके पीछे कोई अधिकार हो। सीमंतनी*-स्त्री० दे० 'सीमंतिनी' । सापना*-पु० स्वप्न-'सापने में बिछुरे हरि हेरि हरैइ हरै सीरक*-वि० ठंडा-'सोइ करौ ज्यों मिटै हृदयको दाह' हरिनीग रोवै'-भाववि० । परै उर सीरक'-सू० । सापेक्षतावाद-पु० (प्यूरी ऑफ रिलेटिविटी) आइन्स्टाइन-सीवनी-स्त्री० शिश्नके नीचेकी रेखा । का यह सिद्धांत कि प्रकाशको छोड़कर अन्य सब वस्तुओं- सुकना-अ० कि० सूखना, सूख जाना-'सुकत सरोवर की गति सापेक्ष है और उसी तरह दिक् , काल तथा | मचत कीच तलफंत मीन तन'-रासो० । पदार्थकी मात्रा भी सापेक्ष होती है। [गति बढ़नेपर सुधारशाला-स्त्री० (रिफार्मेटरी) दे० 'सुधारालय'। मात्रा भी बढ़ती है और दिक तथा कालका मापन वे सुबर*-पु० सुभट । जिस प्रणालीमें धूम रहे है, उस प्रणालीकी गतिपर निर्भर सभंत*-वि० शोभित । रहता है। सुरसुरी*-स्त्री० सुरमरी, गंगा। साबुत-वि० दे० 'साबूत' । सुरहरी -स्त्री० पानी, भात आदिका खाद्य-नलिकाके साबूत-वि० समूचा, पूरा, अखंड; दुरुस्त । बजाय श्वासनलिकामें चढ़ जाना या उससे होनेवाली साभार-अ० [सं०] आभारके साथ, एहसान प्रकट करते | संवेदना।। सुरी*-स्त्री० छुरी। सामरिकवाद-पु० सामरिक तैयारी-सैन्य संख्या बढ़ाने, | सुलभ गणक-पु० (रेडीरेकनर) वह पुस्तक जिसमें दी शास्त्रादिकी वृद्धि करने पर जोर देनेवाला सिद्धांत । हुई विभिन्न सारणियोंकी सहायतासे व्याज, वेतन, आदिसामानघर-पु. (लगेज आफिस) रेल-स्टेशन, बस-स्टेशन का हिसाब लगाने में आसानी हो। आदिका वह कमरा जहाँ मुसाफिरोंका सामान तौलकर सलिप-वि० स्वल्प । महसूल लेने, सुरक्षित रखने आदिकी व्यवस्था होती है। सवर्णकोष, सुवर्णनिचय--पु० [सं०] (गोल्ड रिजर्व) कागजी सामानदान-पु० [फा०] (मोटर इत्यादिमें पीछेकी ओर । मुद्राके समुचित अनुपातमें सरकारी खजाने में रखा जाने. बनी) सामान रखने की जगह । वाला सुवर्णभंडार। सामान्या-स्त्री० [सं०] वारांगणा, वेश्या । सवर्णिम-वि० [सं०] दे० 'स्वर्णिम । सामिष भोजनालय-पु० (नॉन-वेजिटेरियन रिफ्रेशमेंट सविधाधिकार-पु० (राइट ऑफ ईजमेंट) दे० 'सुखा. रूम) वह भोजनालय जहाँ मांस या मांसके बने पदार्थ धिकारवाद'। भी भोजनार्थ उपलब्ध हों। सुसारना*-म० क्रि० समझाना, समझाकर कहना-'दीजो सामुद्रिक विमान-पु. (मी प्लेन) जलपरसे उड़कर जल- उनहिं सुसारि उरहनों संधि-संधि समझाय'-सू० । पर ही उतर सकनेवाला हवाई जहाज । सही*-वि० स्त्री० लाल-'सुही माल हाल रूप गुन न सामुद्रिक शक्ति-स्त्री० (सी पावर) किसी देशकी नौ परै गनै'-धनः।। सेना-युद्धपोतादि-की शक्ति । सुई-वि० पूरा, ठीक, शुद्ध-'कहियै तौ समै लहियै न सायमाश-पु. (डिनर) (श्वेतांग जातियों में) संध्याको | सह-घनः । किया जानेवाला मुख्य भोजन । सूचना-पह-पु० [सं०] (नोटिस बोर्ड) लकड़ी लोहे आदिका सारंगहर*-पु० शा ईधर, विष्णु । वह पटल जिसपर आवश्यक सूचनाएँ लिख दी जायें सास-स्त्री० शाला; पशुशाला, ढोर बाँधनेकी जगह- या लिखकर चिपका दी जायँ । 'पशुओंको सारमें बाँधनेके बाद उन्होंने सारा वृत्तांत सुचा*-स्त्री० छेदनेवाली वस्तु । सुनाया' -मृग०।-पु० वस्त्र । सूर-रिपु*-स्त्री० रात्रि (सू०)। सावधानी-स्त्री० मावधानता, सतर्कता, होशियारी। सवार*-पु० शैवाल । सिंधुनंदन-पु० चंद्रमा। सैनी-स्त्री० श्रेणी, पंक्ति । सिज्या*-स्त्री० शय्या। साँझ-स्त्री० जमीनकी साझेदारीकी व्यवस्था; साझेदारी। सिट्टी-स्त्री० दे० मूल में । मु० -भूल जाना-घबराहटके सोहन*-अ० दे० 'सौंह' । मारे कुछ बोल न सकना, सिटापिटा जाना। सौतना*-स० क्रि० संचित करना। सितक्षार-पु० एक तरहका सोहागा। सौडि*-स्त्री० शय्या-'दरसन भया दयालका मूलि भई सितून-पु० [फा०] खभा, मीनार, थूनी । सुख सौडि'-साखी। सिराँह-स्त्री० शीतलता-'आनंद घन दुखताप मेंटियै सौनि*-स्त्री० स्वर्णकांति-'आनन समान छबि-छाँहपै कीजै कृपा-सिराँह'-धन । छिपैयै सौनि'-धन। सिरायना*-स० कि० दे० 'सिरावना' । सौबर* --पु० सुवर्ण-रावरको छवि घरनौं कैसे। सौबरसिरावन-वि० ठंडा या दूर करनेवाला-'जीव-जिवावन को घर सोहत जैसे।'-धन। ताप-सिरावन है, रसमय धन आनँद छायौ'-धन। पु० | स्कंदन-पु० (कोग्यूलेशन) द्रव-पदार्थका जम जाना, ठोस दे० मूलमें। रूप ग्रहण कर लेना। For Private and Personal Use Only

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