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स्यारी-हौन स्यारी-स्त्री० कातिक-अगहन में तैयार होनेवाली फसल, जग माँझ भई तिनतें हरई'-घन । खरीफ (बुंदेल०)।
| हराहर*-स्त्री० छीना-झपटी-'दिन होरी-खेलकी हराहर सौन-पु० दे० 'श्रवण'।
भरथो हो सुतौ'-घन। स्वक्षालन-शौचालय-पु० [सं०] (फ्लश लैट्रिन) वह हरिखंड-पु० मोरपंख-'कबहुँक इत पग धारि सिधारी धरि पैखाना जिसे साफ करनेके लिए मेहतरकी आवश्यकता हरिखंड सुबेस'-सू०।। न हो, जो पानी गिरा देनेसे अपने आप साफ हो हरीछाल केला-पु. हरे छिलकेवाला एक तरहका केला जाय।
जो वश्या केला भी कहलाता है। (चिनिया केला पीला स्वर्णजयंती-स्त्री० [सं०] (गोल्डन जुबिली) किसी संस्थाकी होता है।) स्थापना या किसीके शासन, विवाहित जीवन आदिके हागति-स्त्री० दुर्दशा। पचासवें वर्षका उत्सव ।
हियैल*-स्त्री० पछेली। स्वाध्याय सदन-पु० (स्टडी रूम) दे० 'अध्ययन कक्ष' । हीडना -स. क्रि० घुघोलकर गंदा करना (भोज०); स्वावना*-स० क्रि० सुलाना-'जागि-जागि स्वावत हो' हुड़कना (बुंदेल०)। -घन०।
हुतात्मा(स्मन्)-वि०, पु० [सं०] (मार्टर) किसी अच्छे स्वेच्छोपहार-पु० [सं०] (फ्री गिफ्ट) स्वेच्छासे दानमें या | कार्यमें अपनेको बलि कर देनेवाला, शहीद । उपहारमें दी गयी वस्तु ।
हरकनी -स्त्री० वेश्या ।
हरिहाई-स्त्री० होली खेलनेवाली। हँकनी-स्त्री० बैलोंको हाँकनेका एक तरहका डंडा जिसमें हेट*-पु० सहेट, संकेतस्थल । एक कील लगी रहती है, पैना।
होतर-वि० होने योग्य । टता*-स्त्री० सिलसिला; टकटकी-'वह रूपकी रासि होमर-पु० ग्रीक भाषाका प्राचीन कवि, जिसने 'इलियड' लखी तबतें सखी आँखिनकै हटतार भई'-धन । तथा 'ओडिसी' नामक महाकाव्योंकी रचना की थी हथिों -पु. हाथी।
(८५० ईसवी पूर्व)। हमरकाब-वि० [फा०] साथ-साथ सवारी करनेवाला-'साथ होर*-पु० ओर, मार्ग ।
भी होता वीर रक्षक शरीरका, हमरकाब'-निराला। होहल्ला-पु. शोरगुल, हुल्लड़ । हरई*-स्त्री० हल्कापन-'जिहिके परिभार पहार दबै,ौन*-पु० अपनापन ।
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