Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1013
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंहर्ता-साथरह १००४ जिंदगी। करि मुकाम नृपराज । सथ्य सयन सामंत भर, सूर जु संहर्ता(त)-पु० [सं०] लगान वसूल करनेवाला कर्मचारी- आये सान'-रासो। 'राज्यकी उगाहीके लिए संहर्ता आये'-मृग० । सयल*-वि० सकल, सब । संहिता-स्त्री० [सं०] (कोड) अधिनियमों, विधियों आदिका सरक-स्त्री० वेदना-'प्रेम सरक सबके उर सलै' धन% क्रमबद्ध संग्रह। दे० मूलमें। सकती*-स्त्री० दे० मूल में; जबरदस्ती-'कवि किंचित सरकद, सरफूंदा-स्त्री० एक तरहका सरकनेवाला औसर जो अकती सकती नहीं हाँ पर कीजिये जू'- | फंदा, जिसे किसी चीज पर डालकर खींचनेसे वह उसे कवि० को। जकड़ ले (बुंदेल०, सरकवाँसी, भोजपुरी)। सख्त-स्त्री० कठिनाई, विपत्ति-'मुझ पै परी अब सख्त' सरबरना*-स० क्रि० उपमा देना। -सुजान । सरलीकरण-पु० [सं०] कठिन विषयको आसान बना सग*-वि० सगा, अपना । देना; किसी जटिल या कठिन भिन्नको सरल रूपमें परिसगरी-पु० सागर तालाब-'काहे क बाबुल सगर खोदा- | णत कर देना (ग)। येउ'-गीत । सरहंग-पु० सेनापति; कोतवाल । सघली*-वि० स्त्री० सब, सारी । सरित्त*-स्त्री० सरिता, नदी। सछंद-वि० सपरिकर । सरोतर-वि० साफ, स्पष्ट । सजावार-वि० [फा०] दंड पाने योग्य, दंडनीब-'फकत | सरौट*-स्त्री० सिलवट, शिकन-'मुरझे बिन ढंग अनंग इस सजाके सजावार हैं हम'। सरोटनि'-धन। सठ*-स्त्री० दे० 'साँठि'-'किहि गौं हठ कैसठ-हानि सर्वेसर्वा-वि० प्रधान कर्ताधर्ताः दे० मूल में । लई'-धन। सल्लना*-स० क्रि० सालना, दुःख देना । सतपत्र-पु. कमल । सवाती*-स्त्री. स्वाती नक्षत्र-सूरदास प्रभु प्रानहिं सतर्वासा-पु. गर्भस्थितिके सातवें मासमें होनेवाला राखहु है कै बूंद-सवाती'-सू० । उत्सवः दे० मूलमें। सशस्त्र-वि० [सं०] जिसमें शस्त्रोंका प्रयोग हुआ हो; दे० सतिमा-स्त्री० सौतेली माँ । मूलमें। सतेस*-स्त्री० फुरती, शीघ्रता । ससक*-स्त्री० सिसक। सत्तमी*-स्त्री० सप्तमी। ससिरिपु-पु० दिन-'ससिरिपु बरष सूर-रिपु युगवर, सत्ति*-स्त्री० शक्ति। हर-रिपु किये फिरै घात'-सू० । सनिया-पु० रेशमी पटका या छोटी धोती-'सनिया | ससिहर*-स्त्री. शिशिर ऋतु-'कहि नारि पीय बिन पहरकर ही चीकेमें जाता था' -गुनाहोंका देवता । कामिनी रिति ससिहर किम जीजियइ'-रासो। सपरस*-वि० स्पृश्य, छूतसे युक्त-'अपरस ठौर तहाँ | ससील*-वि० सुशील, शीलसंपन्न ।। सपरस जाइ कैसें'-धन। सह अस्तित्वका सिद्धांत-पु. (प्रिंसिपल ऑफ कोसबार, सबारा*-पु० दे० 'सबेरा'। एग्जिस्टेंस) वह राजनीतिक सिद्धांत जो यह स्वीकार सबी*-ली० शबीह, छबि, चित्र-'चतुर चितेरे तुव सबी करता है कि विभिन्न प्रकारकी प्रणालियोंसे शासित और लिखत न हिय ठहराय'-रसनिधि । विभिन्न प्रकारके सिद्धांतोंसे अनुप्राणित राज एक दूसरेके समग्ग-वि० समग्र, पूरा, सब । साथ शांतिपूर्वक रह सकते हैं, सहभावका सिद्धांत । समताई-स्त्री० समता, बरावरी । सहभाव-पु० [सं०] (को-एग्जिस्टैस) दे० 'सहअस्तित्वका समथ*-वि० समर्थ । सिद्धांत'। समप्पन*-पु० दे० 'समर्पण' । सहभोज-पु० [सं०] (विभिन्न जातियों, श्रेणियों के) बहुतसे समाचार-प्रसारण-पु० [सं०] भाकाशवाणी द्वारा समा. आदमियोंका एक साथ बैठकर भोजन करना। चारोंका प्रसारित किया जाना। सहसकर*-पु० सूर्य-'दुहीं करसों सहसकर मानियतु समानांतर सरकार-स्त्री. साथ-साथ काम करनेवाली | | तोहि, दुही बाहुसो सहसबाहु जानियतु है'-भू०। सरकार, एक सरकार के रहते हुए भी उसके विरुद्ध स्थापित सहस्राब्द-पु०, -स्त्री० [सं०] हजार वर्षोंका समय । प्रति पक्षियोंकी अन्य सरकार जो उसकी बराबरीसे काम सहिंदोली*-स्त्री० सखी। करे। सहटी*-वि० स्त्री० अभिसारिणी-'दीठि भयी मिलि ईठि समुही*-अ० दे० 'समुहै। सुजान न देहि क्यों पीठि जो दीठि सहेटी'-घन० [सहेट समोना -सक्रि० समन्वय करना, पटरी या मेल बैठाना - 'ऊपरके खंडसे दूसरे खंडको समोनेके लिए'-मृग०% सहोणी*-स्त्री०सखी। दे० मूलमें । * अ० क्रि० मिलना, अनुरक्त होना । साकसि-स्त्री० शक्ति। समोय*-अ० अनुरक्त होकर-'बनमाली कहाँ धौ समोय साता-स्त्री. शांति-'रूम रूम साता भइ उरमें मिटि चले'-धन। गयी फेरा-फेरी'-मीरा। सयम*-स्त्री० सैन्य, सेना-'तट कालिंदी तहँ विमल, | साथर-पु० स्रस्तर, कुशासन । For Private and Personal Use Only

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