Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1011
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राँत-वैशेषिक संगीत आदि सुना जा सके । राँत* - स्त्री० ठकुराई । रोचना- स्त्री० टीका, तिलक । रोडवेज - पु० [अ०] सरकारी मोटर गाड़ियों द्वारा यात्रियोंके गमनागमनकी नियमित व्यवस्था । रोहिणीकांत-पु० [सं०] चंद्रमा । ल लगान-स्त्री० जंगलमें शिकारको टोह में बैठने के लिए ठीक किया गया स्थान - 'जंगल में लगान कहाँ-कहाँ है, किसको कहाँ बैठना है, निश्चित हो गया' - मृग० । लगुवा*-पु० प्रेमी, लागू - 'लटुवा भयो फिरत दिन वह * - सर्व वह ही, वही । रजनी लगुवा गोरी भोरीके' - घन० । लाइ * - स्त्री० प्रेमकी लगन; दे० मूल में । लागू* - पु० प्रेमी - 'साँवलिया मेरे मनको लागू नित इत आवै'-घन० । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००२ लोध्ररेणु - पु० [सं०] लोभ वृक्षके फूलकी बुकनी जिसका प्रयोग अंगरागकी तरह किया जाता था । लौहपुरुष - पु० [सं०] ढ़ निश्चयवाला व्यक्ति, जो कठिनाइयों, बाधाओं या किसीकी धमकियोंसे विचलित न हो । व वयोत्तर - वि० (ओव्हर-एज ) जिसकी उम्र अधिक हो गयी हो, जो निर्धारित वयसे अधिकका हो । वर्चस्व - पु० शक्ति, तेज, (संस्कृत वर्चस् ); प्राबल्य, प्राधान्य - 'राघवनका उत्साह उसके शारीरिक बल और मानसिक वर्चस्व से सीमित था' - अमर० । लज्जी* - स्त्री० प्रियतमा (रासो) । लड़कना* - अ० क्रि० ललकना - 'जुगल कुँवरकों लड़कि लड़ावै । परम प्रेमरस पारस पावै । - धन० । लड़ेया + - पु० सियार ( बुंदेल०) । [ हाथ भर- नौ गज पूँछ - आवश्यकता से बड़े वस्त्रादि धारण करना, अपने वित्त या सामर्थ्य से बाहर कोई काम करना । इससे मिलती-जुलती कहावत है 'वित्तेभर के वित्तनमियाँ सवा हाथकी डाढ़ी' ।] वातजात-पु० [सं०] वायुपुत्र, हनुमान् । वापी - स्त्री० [सं०] बावली; दे० मूलमें | वायुपति-पु० (एयर वाइस मार्शल) वायुसेनाका उच्चाधिकारी जो महावायुपति से छोटा होता है। वारिचरकेतु-पु० [सं०] मीनकेतन, कामदेव - 'कोपेउ तब वारिचरकेतू' - रामा० । वाल्हा * - पु० प्रियतम, वल्लभ - 'मीरा कहे गोपिनको dies, हम भयो ब्रह्मचारी' - मीरा । लपटीला* - वि० रपटीला, पिच्छल, फिसलनवाला - "ऊँची नीची राह लपटीली, पाँव नहीं ठहराइ' - मीरा । लपेटा - पु० पगड़ी - 'केसरी लपेटा छैल विधिसों लपेटे' वासुकि सुता स्त्री० [सं०] सुलोचना (तुमल) । विखंडीकरण- पु० [सं०] ( गमेटेशन) खेतोंका टुकड़ों में विभाजित किया जाना । - घन० दे० मूल में | लवदना* - अ० क्रि० लिपट जाना - 'ज्यों मैं खोले किवार त्यही आनि लवदि गौ गरें' - घन० । लूँ ' - साखी । लेखन - हड़ताल - बी० ( पेन डाउन स्ट्राइक) दे० 'लेखनी कर्मरोधन' । लेखांश, लेख्यांश - पु० [सं०] (पैसेज ) किसी लेखादिका अंश । लोखरिया - स्त्री० लोखड़ी, लोमड़ी (बुंदैल०) । वाक्यखंड - पु० [सं०] दे० 'उपवाक्य' । वाट- पु० [अ०] बिजली के प्रकाश या चालक शक्तिको एकाई | वितन* - वि० दे० 'वितनु' । लवना* - अ० क्रि० चमकना - 'चटक चोप चपला हिय वित्थार - पु० विस्तार, फैलाव । लवै' - घन० । लहाछेह* - स्त्री० शीघ्रता - 'लहाछेह कहा धौं मचाय रहे ब्रजमोहन हौ उखनींद भरे हौ' - घन० । वि० मूसलधार, द्रुतगतिवाली (वर्षा) | पु० दे० मूलगें । लाँझ * - स्त्री० लंघन, बाधा । विपरिधान - पु० [सं०] विशेष प्रकारका परिधान, वरदी, गणवेश | विलयन - पु० [सं०] विलीन होनेकी क्रिया, विलय; दे० मूल विलुलितकेशा - वि० स्त्री० [सं०] जिसके सिरके बाल बिखरे हों (स्त्री) । लाल कुरतीवाला दल - पु० भारतके असहयोग आंदोलन के समय सीमाप्रांत का वह राष्ट्रीय दल जिसके नेता सीमांत गांधी खाँ अब्दुल गफ्फार खाँ थे और जिसके सदस्य लाल कुरते पहना करते थे । विवदिषा - स्त्री० [सं०] बोलने की इच्छा । विवदिषु - वि० [सं०] बोलनेका इच्छुक । विशेषांक - पु० [सं०] किसी सामयिक पत्रादिका वह अंक जो किसी विशिष्ट अवसर पर, विशेष प्रकारकी उपयोगी सामग्री के साथ प्रकाशित किया गया हो । वेधक - वि० [सं०] घाव करनेवाला (वि०) । दे० मूलमें | वैतसी वृत्ति - स्त्री० [सं०] बेंतकी तरह झुक जानेकी आदत, नम्रताकी प्रवृत्ति । लावारा - वि० आवारा । लुखरो + - स्त्री० लोखड़ी, लोमड़ी (बुंदेल०) 1 लुथि* - स्त्री० लोथ । वैभिन्न्य- पु० [सं०] विभिन्नता । लूँण-पु० नमक- 'खूब खाँड़ है खीचड़ी माँहि पड़े टुक वैया-प्र० एक प्रत्यय वाला (कोई काम करनेवाला) । वैलती* - स्त्री० ओलती, ओरी- 'आनंद घन कितहूँ किनि वरसौ ये बरुनी वैलतियाँ' । वैशाखी - स्त्री० [सं० वरसाक्षी ] बरातके आगमन तथा कन्यादान की रस्म शुरू होनेके बीच जनवासेमें जाकर वरको देखने और उसे सम्मानित करनेकी रीति । वैशेषिक - वि० [सं०] विशेष विषय संबंधी; दे० मूलमें । For Private and Personal Use Only

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