Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1012
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००३ बोदना-संसारयात्रा वोढ़ना-सक्रि० दे० 'औदना'-'वो काला कापड़ा काटनेके बाद होनेवाला लाभ । नाँव धरावै सेत'-साखी। शृंगारना*-स० क्रि० सजाना, भूषित करना, सँवारना । वोहथ्थ*-पु० वोहित्थ, जहाज । शेल*-पु० शल्य, बरछी (कविप्रि०)। व्यंजनतालिका-स्त्री० [सं०] (मेनू) (होटल इत्यादिमें) शोध्यशोधक-पु० [सं०] (प्रफरीटर) शोध्यपत्र (प्रफ) पढ़परोसे जा सकने योग्य व्यंजनोंकी सूची, व्यजिनी, कर उसकी अशुद्धियाँ दूर करनेवाला कर्मचारी, 'ईक्ष्यव्यंजनिका। वाचक'। व्यंजना-स्त्री० [सं०] व्यक्त करनेकी क्रिया; दे० मूलमें। श्यामपट्ट-पु० [सं०] विद्यालयोंकी प्रत्येक कक्षामें रहनेव्यंजनिका-स्त्री० (मेनू) दे० 'व्यंजनतालिका'। वाला वह काला तख्ता जिसपर खरिया मिट्टीसे लिखकर व्यंजिनी-स्त्री० [सं०] (मेन) (होटल में तैयार) व्यंजनोंका। अध्यापक गणित आदिके प्रश्न विद्यार्थियों को समझाता है। ना=कमलसमूह); दे० 'व्यंजन• श्रमप्रमुख-पु० [सं०] दे० 'फोरमैन' । तालिका। श्रमिकसंघ-पु० दे० श्रमसंध । व्याघ्रमुख-वि० [सं०] बाघ जैसे मुखवाला; (मकान) श्रावना*-सक्रि० बहाना, टपकाना । जिसका सामनेका भाग चौड़ा और पीछेका सकरा हो, गोमुखका उलटा (ऐसा मकान अमंगलकारी माना जाता है)। षटदस*-पु० सोलहोशृंगार । व्यापक-स्त्री० व्यापकता-'मधुकरके पठये ते तुम्हरी व्यापक न्यून परी'-सूर । | संकीर*-वि० संकीर्ण ।। व्यावहारिक-वि० [सं०] व्यवहार में आने लायक; दे० संक्रमण-पु० [सं०] एक स्थिति या अवस्थासे दसरीमें मूलमें। प्रवेशः हस्तांतरण; दे० मूलमें । बात जाति-स्त्री० [सं०] झुंड बनाकर चलनेवाली जाति । संख्या-स्त्री० [सं०] लिखे गये पत्रों या सामयिक पत्रादिव्हल-पु० [अं॰] दे० 'हेल' । पर दिया गया क्रमांक; किसी सामयिक पत्रादिकी विशिष्ट संख्या या क्रमांकवाली प्रति दे० मूल में। संख्याविभाग-पु० [सं०] (स्टैटिक्स डिपार्टमेंट) जननशंक*-स्त्री० शंका, संदेह । मरण, उत्पादन आदि-संबंधी प्रामाणिक आँकड़े तैयार शय्या-स्त्री० [सं०] वीरगतिप्राप्त योद्धाके लिए निर्मित करनेवाला विभाग ।। बाणोंकी शय्या। संग-स्त्री० दे० 'साँग'-'वियै संग सौ फोरि डाकरेजा' शहना-पु. लगान वसूल करनेवाला सरकारी कर्मचारी। -सुजा० । -'राज्यका शहना आया, छटवाँ अंश ले गया'-मृग० संघात*-अ० संग या साथमें-'धुआँ उठे मुख साँस कोतवाल । संघाता'-१० पु० दे० मूलमें। शाखाकार्यालय-पु० [सं०] किसी व्यापारिक संस्था या संजमना*-स० कि. एकत्र करना, बटोरना-'पलटि पट अन्य संस्थाका वह छोटा कार्यालय जो प्रधान कार्यालय के संजमत केसनि मृदुल अंग अंगोछि'-घन । मातहत या उसके नियत्रणमें हो। संडास*-स्त्री० सँडसी (प०)। शानीला-वि० शानदार, रोबवाला। संद*-पु. सनंदन-'महा आधार सनक सुक संदके' शाल-स्त्री० शय, एक तरहकी बरछी (कविप्रि०)। -धन। शिंजित-पु० [सं०] झंकार, ध्वनि ('साकेत'); वि० दे० संधि-स्त्री० [सं०] दो शब्दोंके साथ-साथ आनेपर एकके मूलमें। अतिम और दूसरेके प्रथम वर्णके मिलनेसे होनेवाला शिकरम-स्त्री० एक तरहकी घोड़ागाड़ी। विकार; ये तीन तरहकी होती हैं-स्वर संधि, व्यंजन संधि शिकारा-पु० कश्मीरी ढंगकी लंबी नाव जिसके बीच में | तथा विसर्ग संधिः दे० मूलमें । -तटी-स्त्री० संधिस्थल सायादार बैठनेका स्थान होता है (शेखर०)। -'सोभासुमेरुकी संधितटी किधौं'-धन। शिक्षाशास्त्र-पु० [सं०] शिक्षाविधिका विवेचन करनेवाला । सं -स्त्री० शंपा, बिजली; दे० मूल में । शास्त्र। संभरवै, संभरेस-पु. पृथ्वीराज । शिरमौर-पु. सरदार, श्रेष्ठ व्यक्ति । संरक्षण-पु० [सं०] (प्रोटेक्शन) विदेशी माल पर कर आदि शिशुगृह-पु०, शिशुशाला-स्त्री० [सं०] वह कमरा, लगाकर देशी उद्योग-व्यवसायको बाहरकी अनुचित प्रति भवन या स्थान जहाँ धात्रियों की देखरेख में, छोटे बच्चे | योगितासे बचाना। रहते हों। | संविधानज्ञ-पु० [सं०] (कांस्टिट्यूशनलिस्ट) संविधानको शीर्ष स्थ-वि० [सं०] शीर्षस्थानीय, चोटीका, प्रधान । जानकारी रखनेवाला दे० 'संविधानशास्त्री'। शीलभंग-पु० [सं०] (आउटरेजिग दि मॉडेस्टी ऑफ) संविधानशास्त्री(स्त्रिन)-पु० [सं०] (कांस्टिट्यशनैलिस्ट) किसी किशोरी या युबतीके साथ अनुचित छेड़छाड़। संविधानका विशेषज्ञ, उसकी बारीकियोको समझनेवाला, शुक्रिया-अ० [फा०] धन्यवाद ! दे० मूलमें । संविधान। शुद्ध लाभ-पु० [सं०] (नेट प्रॉफिट) लागत या कुल खर्चा संसारयात्रा-स्त्री० [सं०] संसारमें रहना, जीवन बिताना, For Private and Personal Use Only

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