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चुपचाप खड़ा रहना; अवस्था; सामाजिक, आर्थिक आदि दृष्टियोंसे देखी जानेवाली किसी व्यक्ति, संस्था, देश आदिकी दशा; अभियोग, वक्तव्य आदिपर प्रकाश डालनेवाली वे बातें जो कोई व्यक्ति अपनी ओरसे उपस्थित करे; स्वभाव, प्रकृति; स्थायित्व; पद, ओहदा; निर्वाह; जीवनका बना रहना; मर्यादा; किसी स्थानपर लगातार बने रहना; जड़ता, निश्चलता । - प्रद- वि० ढ़ता या स्थायित्व प्रदान करनेवाला । -स्थापक - वि० पूर्व अवस्था प्रदान करनेवाला; लचीला | -स्थापकत्व - स्त्री० ( इलैस्टिसिटी) (मोड़े या खींचे जाने के बाद) पुनः पूर्व अवस्था प्राप्त कर लेनेकी शक्ति या गुण, लचीलापन । स्थिर - वि० [सं०] द; गतिहीन; अचल; स्थायी; शांत; धीर; नियत; विश्वस्त; निश्चित । -चित्त- चेता (तस् ) - जि० अपने विचारों, मतादिपर पढ़ रहनेवाला, स्थिरबुद्धि । - बुद्धि-वि० जिसकी बुद्धि संकटादिके कारण विचलित न हो, चित्त । -मति - स्त्री० स्थिर बुद्धि । वि० स्थिर बुद्धिवाला | - मना ( नस् ) - वि० स्थिरचित्त । स्थिरक - पु० [सं०] सागौन । स्थिरता - स्त्री०, स्थिरत्व - पु० [सं०] स्थिर होनेका भाव, ढ़ता; अचलता; कठोरता; स्थायित्व; धीरता, शांति । स्थिरा - स्त्री० [सं०] स्थैर्ययुक्त स्त्री; पृथ्वी; शालपर्णी । स्थिरात्मा ( मनू ) - वि० [सं०] चित्त |
स्थिरानुराग - पु० [सं०] सच्चा प्रेम । वि० जिसका प्रेम स्थिर हो ।
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स्थिरीकरण - पु० [सं०] स्थिर करना; अस्थिर रहनेवाली, घटने-बढ़नेवाली वस्तुओं, उनके स्वरूप, भावादिको स्थिरता प्रदान करना; ध्द करना; समर्थन । स्थूल - वि० [सं०] बड़ा; पीन, मोटा घना; बली; विषम; अपरिपक्व; मोटे हिसाब से अनुमान किया गया; सुस्त; ( व्याख्या या विवरण ) जो बारीकी या व्योरेके साथ न देकर मोटे तौरपर दिया गया हो । - बुद्धि - वि० मंदबुद्ध, मूर्ख । स्थूलता - स्त्री०, स्थूलत्व-पु० [सं०] मोटापन; मूर्खता । स्थैर्य - पु० [सं०] स्थिरता; बढ़ता; धैर्य; शांति; स्थायित्व । स्थौल्य - पु० [सं०] स्थूलता; भारीपन; बुद्धिकी मंदता । स्वपित - वि० [सं०] नहाया हुआ, स्नात । स्नात - वि० [सं०] नहाया हुआ । पु० वह जिसका वेदा ध्ययन पूरा हो गया हो; स्नातक । स्नातक - पु० [सं०] वह जो वेदाध्ययन समाप्त करनेके अनंतर स्नान कर गृहस्थाश्रममें प्रवेश करे; वह ब्राह्मण जो किसी धार्मिक उद्देश्य से भिक्षु बन गया हो; किसी विश्वविद्यालयकी शिक्षा समाप्त कर उपाधि प्राप्त करनेवाला व्यक्ति । - व्रत- पु० स्नातकके कर्तव्य । वि० दे० 'स्नातकव्रती' । - व्रती ( तिनू ) -- वि० स्नातक के कर्तव्यों का पालन करनेवाला | स्नातकोत्तर अध्ययन-पु० [सं०] (पोस्ट ग्रेजुएट स्टडी) स्नातक ( ग्रेजुएट) हो जानेके बाद किया जाने, जारी रखा जानेवाला अध्ययन ।
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स्थिर - स्पंद
आदिका सेवन; जलकी सहायतासे धोकर शुद्ध करना; मूर्तिको नहलाना। -गृह-पु० नहानेका कमरा । - तीर्थ- पु० वह स्थान जहाँ धार्मिक स्नान किया जाय । - वेश्म (न्) - पु० स्नानगृह । - शाला - स्त्री० स्नाना
गार ।
स्नानांबु पु० [सं०] स्नान करनेका जल । स्नानागार - पु० [सं०] दे० 'स्नानगृह' । स्नानी ( निन् ) - वि० [सं०] स्नान करनेवाला । स्नानोदक - पु० [सं०] दे० 'स्नानांबु' । स्नापक - पु० [सं०] स्नान करानेवाला सेवक । स्नापित - वि० [सं०] नहलाया हुआ । स्नायविक - वि० [सं०] स्नायु-संबंधी । स्नायी (यिन् ) - वि० [सं०] स्नान करनेवाला । स्नायु- स्त्री० [सं०] रग, नाही; पेशी; धनुष्की डोरी । पु० एक रोग जिसमें अंगों के छोरपर चर्मस्फोट होता है । - मंडल, - संस्थान - पु० (नर्व्हस सिस्टम) सुषुम्ना तथा उससे संबद्ध मस्तिष्ककी और शरीर के अन्य भागोंकी नाड़ियों का समूह, नाड़ी संस्थान । -रोग-पु० नहरुआ रोग । - शूल - पु० स्नायुओंमें होनेवाली वेदना । स्निग्ध - वि० [सं०] तेल लगा हुआ; चिपकनेवाला; चिकना; आर्द्र; ठंढा करनेवाला; अनुरक्त; दयालुः मृदुल; सुंदर, प्रिय; धना । -जन-पु० प्रिय व्यक्ति ।
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स्नुषा - स्त्री० [सं०] पुत्रवधू; थूहड़ । स्नुहास्नुहि, स्नुही - स्त्री० [सं०] थूहड़ । स्नेह - पु० [सं०] [प्रेम, मुहब्बत कोमलता; दयालुता; तेल, मलाई आदि चिकने पदार्थ; वसा, भेजा आदि शरीर के रसवाले पदार्थ; आर्द्रता; एक राग । -कुंभ, - घट - पु० तेल रखनेका भाँड़ा आदि । - गर्भ-पु० तिल । - पक्क - वि० तेलमें तला हुआ। -पान - पु० प्रेमका पात्र, प्यारा व्यक्ति; तेलका बरतन । -पान-पु० दवाके रूप में तेल पीना । - प्रिय-पु० दीपक । वि० जिसे तेल अधिक प्रिय हो । - बद्ध - वि० प्रेमसूत्र में बँधा हुआ । - भांड - पु० तेल रखनेका बरतन । -सम्मेलन- पु० ( सोशल गैदरिंग ) दे० 'प्रीति सम्मेलन' । -सार- पु० मज्जा | वि० जिसका मुख्य अंग तेल हो । स्नेहक - वि० [सं०] प्रेम करनेवाला, प्रेमी; दयालु । स्नेहन-पु० [सं०] तैलमर्दन; तैलयुक्त होना; उबटन । स्नेहाकुल- वि० [सं०] प्रेमसे विह्वल । स्नेहाश, स्नेहाशय - पु० [सं०] दीपक । स्नेहित- वि० [सं०] जिससे प्रेम किया गया हो; दयालु; प्रेमी; तेल लगाया हुआ । पु० मित्र ।
स्नेही ( हिन्) - वि० [सं०] प्रेमयुक्त; तैलयुक्त | पु० प्रेम करनेवाला; मित्र; तेल मलनेवाला । स्नेहोत्तम पु० [सं०] तिलका तेल |
स्नेझ - वि० [सं०] स्नेह करने योग्य; तेल लगाने, चिकनाने योग्य ।
स्पंज - पु० [अ०] बहुतसे छेदों और रेशोंवाला एक मुलायम पदार्थ जो पानी ग्रहण कर लेता और दबानेपर निकाल देता है, मुरदाबादल ।
स्नातव्य - वि० [सं०] स्नान कराने योग्य ।
स्नान - पु० [सं०] जलसे सारे शरीरको धोना; धूप, वायु स्पंद-पु० [सं०] कंपन; प्रस्फुरण, फड़कना; गति ।
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