Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 899
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वकीय-स्वयं जिसके मन में किसी तरहका विकार न हो।-स्थित-वि० स्वपना*-पु० दे० 'स्वप्न'। स्वाधीन । -हंता(त)-पु० आत्महत्या करनेवाला । | स्वपनीय, स्वप्तव्य-वि० [सं०] सोने योग्य । -हरण-पु० संपत्तिका हरण ।-हस्त-पु. अपना हाथस्वप्न-पु० [सं०] निद्रा भर्द्ध सुप्तावस्थामें जाग्रत् मनका हस्ताक्षर ।-हस्तिका-स्त्री० कुदाल -हित-वि. अपने । व्यापार-विशेष, ख्वाब, सपना; ऊँची कल्पना, कोई महलिए लाभदायक। त्वपूर्ण कार्य करनेका विचार । -कर-वि. निद्रा लानेस्वकीय-वि० [सं०] अपना, निजी अपने परिवारका । वाला। -काम-वि. सोनेका इच्छुक । -कृत-वि. पु० मित्र, अपने लोग। निद्रा लानेवाला । -गत-वि. जो सो गया हो। - स्वकीया-स्त्री० [सं०] अपनी पत्नी; केवल अपने पतिसे गृह-पु० शयनागार । -ज्ञान-पु० स्वप्न में होनेवाली प्रेम करनेवाली नायिका । अनुभूति । -दर्शन-पु. स्वप्न देखना। -दोष-पु० स्वक्ष-* वि० दे० 'स्वच्छ' [सं०] सुंदर धुरीवाला; पूर्ण स्वप्नावस्थामें होनेवाला शुक्रपात । -प्रपंच-पु० स्वप्नअंगोंवाला सुंदर नेत्रोंवाला। में प्रकट होनेवाला संसार । -लब्ध-वि० स्वप्नमें प्राप्त, स्वच्छ-वि० [सं०] निर्मल, पवित्र; सफेद, स्पष्ट, निश्छल; स्वप्नमें दृष्ट । -विकार-पु० स्वप्नकृत परिवर्तन। - सुंदर, स्वस्थ । -मणि-पु. बिल्लौर । विचारी(रिन)-वि० स्वप्नका विचार करनेवाला । स्वच्छता-स्त्री० [सं०] सफाई, निर्मलता; विशुद्धता। - पु० स्वप्नशास्त्री। -विनश्वर-वि० स्वप्न जैसा क्षणवर्द्धक-वि० (सैनिटरी) गंदगीका निवारण कर मकान भंगुर । -शील-वि० निद्रालु । -सात्-वि० स्वप्नमें आदिके चारों तरफकी स्वच्छता बढ़ानेवाला; स्वच्छता लीन । -सृष्टि-स्त्री० स्वप्नका निर्माण | -स्थान-पु० आदिके कारण स्वास्थ्यरक्षामें सहायक । शयनागार। स्वच्छत्व-पु० [सं०] दे० 'स्वच्छता'। स्वमाना*-सक्रि० स्वप्न दिखाना । स्वच्छना*-स० क्रि० साफ करना। स्वमालु-वि० [सं०] निद्रालु । स्वच्छी*-वि० 'स्वच्छ । स्वप्नावस्था-स्त्री० [सं०] स्वप्नकी अवस्था (जीवनके लिए स्वतः(तस)-अ० [सं०] आप ही, अपनेसे । -प्रमाण, प्रयुक्त)। -सिद्ध-वि० स्वयं सिद्ध, स्वयं प्रत्यक्ष । स्वमिल-वि० [सं०] सुप्त; स्वप्नका । स्वतोविरोधी(धिन)-वि० [सं०] अपना ही विरोध | स्वप्नोपम-वि० [सं०] स्वप्नतुल्य । करनेवाला। स्वबरन*-पु० सुवर्ण, सोना। स्वत्व-पु० [सं०] अपना भाव; स्वतंत्रता; अधिकार, | स्वभाविक-वि० दे० 'स्वाभानिक' । स्वामित्व । -संलेख-पु० (टाइटिल डीड) वह संलेख स्वभावोक्ति-स्त्री० [सं०] एक काव्यालंकार, जहाँ जो या आधिकारिक लिखित पत्र जिसमें किसी मकान, खेत जिसका स्वभाव हो, जैसा जिसका रूप, गुण आदि हो, आदिपर किसीके पूर्ण और निद्व स्वत्वकी बात स्वीकार ठीक उसी तरह वर्णित किया जाय । की गयी हो। -स्व-पु० ( रायल्टी) दे० 'स्वामिस्व' ।। स्वयं-अ० [सं०] दे० 'स्वयम्'। -कृत-वि० आत्मकृत, -हस्तांतरण-पु० ( एलियनेट) किसी संपत्ति आदिका __ अपना किया हुआ; प्राकृतिक; गोद लिया हुआ।-कृष्टअधिकार (स्वत्व) दूसरेको देना या उसके नाम लिखना। विखुद जोता हुआ ।-ज्योति (स)-वि० जो आप ही -हानि-पु० अधिकारका न रहना। आप प्रकाशित हो । पु० परमेश्वर । -दत्त-वि० जिसने स्वत्वाधिकारी(रिन)-पु० [सं०] स्वामी, मालिक । अपनेको स्वयं दे दिया है। पु. वह लड़का जो दूसरेका स्वदन-पु० [सं०] आस्वादन, खाना; लेह, चाटना । दत्तक पुत्र बन गया हो। दूत-पु० स्वयं अपना दूतत्व स्वदित-वि० [सं०] चखा हुआ, खाथा हुआ। करनेवाला नायक । -दूती-स्त्री० अपना दूतत्व आप ही स्वधा-अ० [सं०] पितरोंके उद्देश्यसे हवि देते समय करनेवाली नायिका । -पतित-वि० जो भाप ही आप उच्चारण करनेका एक शब्द । स्त्री अपनी प्रकृति, स्वभाव गिरा हो। -पाकी (किन)-वि० स्वयं अपना भोजन पितरोंको दी जानेवाली हवि। -भक (ज),-भोजी- बनानेवाला । -प्रकाश-वि० जो खुद प्रकाशित हो। (जिन्)-पु० पितरः देवता । -प्रकाशमान-वि० दे० 'स्वयंप्रकाश' । -प्रज्वलितस्वधाधिप-पु० [सं०] अग्नि । वि० जो आप ही आप जल रहा हो। -प्रम-वि० जो स्वधाशन-पु० [सं०] पितर । आप ही आप चमक रहा हो। -प्रभा-स्त्री० एक स्वधीत-वि० [सं०] जिसका अच्छी तरह पाठ किया गया अप्सरा; मयकी एक कन्या। -प्रभु-वि० जो स्वयं हो; अच्छी तरह अध्ययन किया हुआ। शक्तिशाली हो; जो खुद अपना मालिक हो ।-प्रमाणस्वनंदा-स्त्री० [सं०] दुर्गा । वि. जो स्वयं प्रमाणित हो, जिसके लिए प्रमाणकी आवस्वन-पु० [सं०] ध्वनि, शब्द; एक अग्नि । श्यकता न हो। -भू-वि० जो स्वयं उत्पन्न हुआ हो; स्वनि-पु० [सं०] ध्वनि, शब्द, अग्नि । बुद्ध-संबंधी। पु० ब्रह्मा, विष्णु; शिव; बुद्ध कामदेव; स्वनित-वि० [सं०] शब्दित, ध्वनित । पु० शब्द बादलों- * स्वायंभुव । -भूत-वि० जो आप ही आप उत्पन्न की गर्जना गर्जन । हुआ हो। -मृत-वि. जिसकी प्राकृतिक मृत्यु हुई हो; स्वपच*-पु० दे० 'श्वपच'। जो स्वेच्छासे मरा हो। -पर-पु० उपस्थित विवाहास्वपन-पु० [सं०] नींद स्वप्न संशाहीनता (त्वचाकी)।। थियों में से कन्या द्वारा स्वयं पतिका वरण या चुनाव; ऐसे For Private and Personal Use Only

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