Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited
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हृष्ट-हैंडबैग विष्णुः कृष्ण, एक तीर्थ जो हरिद्वारके निकट है। हेमंत-पु० [सं०] छः ऋतुओं में से एक जो मार्गशीर्ष और हृष्ट-वि० [सं०] प्रसन्न रोमांचित विस्मित। -चित्त,- पौषमें पड़ती है। -समय-पु० जाडेका मौसिम । चेतन,-चेता (तस्)-वि० प्रसन्नचित्त । -पुष्ट-वि० हेम-पु० [सं०] सुवर्ण; धतूरा; काले या भूरे रंगका घोड़ा। तगड़ा, हट्टाकट्टा । -मना (नस),-मानस-वि० हेम(न)-पु० [सं०] सोना; जल; पाला, हिम; धतूरा। प्रसन्नचित्त । -रोमा (मन्)-वि० रोमांचयुक्त । -कार-कारक-पु० सुनार । -कूट-पु० हिमालयके -वदन-वि० प्रसन्न मुद्रावाला।
उत्तरका एक पर्वत । -तरु-पु० धतूरा । -प्रतिमाहृष्टि-स्त्री० [सं०] हर्ष, प्रसन्नता रोमांच दर्प।
स्त्री० सोनेकी मूर्ति । -माली(लिन्)-वि० सोनेका हँगा-पु० जोती हुई जमीन बराबर करनेका पटरा, पटेला । हार धारण करनेवाला सोनेसे अलंकृत । पु० सूर्य । है है-अ० धीरे-धीरे इसनेकी ध्वनि गिड़गिड़ानेके वक्त हेमान्य-वि० [सं०] सोनेसे भरा-पूरा। निकलनेवाला शब्द । मु०-करना-गिड़गिड़ाना। हेमाद्रि-पु० [सं०] मेरु । हे-अ० [सं०] संबोधन, आह्वानके लिए प्रयुक्त शब्द; हेय-वि० [सं०] त्याज्य; बुरा, खराब; जाने योग्य; तुच्छ ।
अवज्ञा, घृणा-सूचक शब्द । * अ० क्रि० थे। | हेरंब-पु० [सं०] गणेश; भैसा । हेकड़-वि० बलवान् (बुरे अर्थमें), जबरदस्त; अशिष्ट, हेर*-स्त्री० खोज, तलाश । जाहिल, उजड्डः मजबूत शरीरवाला, तंदुरुस्त ।
हेरना*-सक्रि० किसी चीजको हूँढ़ना, तलाश करना, हेकड़ी-स्त्री. जबरदस्ती, बलात् कुछ करनेकी प्रवृत्ति खोजना; देखना, निहारना; किसी वस्तुको विवेकपूर्वक अशिष्टता, उजड्डपन।
देखना, परीक्षा करना, जाँच-पड़ताल करना, परखना। हेच-वि० [फा०] निकम्मा; बेकार, अकिंचन, क्षुद्र, तुच्छ; मु०-फेरना-एक जगहकी चीज दूसरी जगह करना, निस्तत्त्व, सारहीन । -पोच-वि० अदना, घटिया उलट-पलट करना; अदल-बदल करना, परिवर्तन करना । निकम्मा।
हेरफेर-पु० परिवर्तन, उलट-पलटकी क्रिया; अदल-बदल हेट-वि० कमः नीचा हीन । अ० नीचे-'हेठ दाबि करनेका काम, विनिमय; भेद, अंतर, दूरी; टेढ़ी-सीधी कपि भालु निसाचर'-रामा० ।
बात, साफ-साफ बात न करनेकी क्रिया चालबाजी। हेठा-वि० दे० 'हे'।
हेरवाना -स० क्रि० पता लगवाना, खोजवाना: खोना । हेठी-स्त्री० अप्रतिष्ठा, मानहानि, हीनता ।
हेराना*-स० क्रि० दे० 'हेरवाना' । अ० कि० गायब हो हेडिंग-स्त्री० [अं०] शीर्षक ।
जाना, खो जाना; एकदम न रह जाना,अभाव हो जाना; हेत*-पु० हेतु: प्रीति, प्रेम ।
अपनेको भूल जाना, अपनी सुध-बुध खोना। हेति-स्त्री० [सं०] अस्त्र; सूर्यकिरण; आगकी कपट, लौ हेरा-फेरी-स्त्री० हेर-फेर; उलट-पलट, वस्तुओंका यथास्थान प्रकाश, तेज; आघात, चोट; जख्म ।
न रह जाना, चीजोंका इधर-उधर होना । हेती-पु. प्रेमी, हित-मित्र संबंधी।
हेरी*-स्त्री० आह्वान, पुकार, गुहार । मु०-देना-गुहार हेतु-पु० [सं०] कारण लक्ष्य, मकसद प्रेम; ऐसी घटना, लगाना, आह्वान करना। काम आदि जिसके बिना हुए दूसरी घटना, दूसरा काम हेलन-पु० [सं०] अवहेलना; रस-क्रीड़ा, किलोल। न हो, मूल कारण, एकमात्र कारण; एक अर्थालंकार जहाँ हेलना-स्त्री० [सं०] दे० 'हेलन' । * अ०क्रि० राग-रंग कारणको ही कार्यरूप वर्णन करते हैं। तर्क, दलील; तर्क- मनाना, क्रीड़ा करना; निश्चित रहना, परवाह न करना; शास्त्र; व्यापक ज्ञापक कारण, ऐसा कारण जो व्याप्ति, खेलना (जानपर); प्रवेश करना (जलमें); हँसी-मजाक अव्याप्ति और अतिव्याप्ति नामक दोषोंसे दूषित न हो; करना । स० कि० अवहेलना, उपेक्षा करना, तुच्छ सम* प्रेम । अ० वास्ते,"के लिए। -युक्त-वि० सकारण, झना तैरना, हलकर पार करना। साधार । -वादी(दिन)-पु० तर्क करनेवाला, तार्किक हेलनीय-वि० [सं०] उपेक्षाके योग्य । नास्तिक । -विद्या-स्त्री०, -शास्त्र-पु० तर्कशास्त्र । हेलमेल-पु. मेल-जोल, घनिष्ठता। -शून्य- वि० हेतुरहित, निराधार । -हेतुमगाव- हेलया-अ० [सं०] खेल ही खेलमें, आसानीसे । पु० कारण और कार्यका संबंध । -हेतुमद्भत-पु० हेला-पु० मेहतर आह्वान, पुकार; उतारा-'और घाट भूतकालका एक भेद जिसमें कारणरूप क्रिया न होनेपर ह कीजे हेला'-छत्र; आक्रमण, धावा; ठेलनेकी क्रिया, कार्यरूप क्रियाका न होना दिखलाया जाता है। धक्का खेवा, खेप । स्त्री० [सं०] तिरस्कार, अवशा; अपहेतुता-स्त्री०, हेतुत्व-पु० [सं०] कारणका होना। मान; केलि, क्रीड़ा चंद्रिका; आनंद, प्रसन्नता; स्त्रियोंका हेतुमान् (मत्)-वि० [सं०] जो सकारण हो; तर्कयुक्त श्रृंगार-सूचक व्यक्त हाव जो अनुभावोंका एक उपभेद है। साधार । पु० कार्य।
हेली-स्त्री० सखी, सहेली।। हेतूत्प्रेक्षा-सी० [सं०] उत्प्रेक्षा अलंकारका एक भेद जहाँ। हेलीमेली-वि० जिससे हेल-मेल हो। अहेतुको हेतु मानकर उत्प्रेक्षा की जाय ।
हेवंत*-पु० दे० 'हेमंत'। हेवपहनुति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जिसमें प्रकृतके हैं-अ० क्रि० 'है'का बहुवचन रूप। अ० आश्चर्यसूचक निषेधका हेतु व्यक्त रहता है।
| शब्दा अस्वीकृति, निषेधसूचक शब्द । हेत्वाभास-पु० [सं०] वह हेतु जो किसी कार्यका कारण डबैग-पु० [अं०] हाथमें लेने योग्य चमड़े आदिका छोटा तो न हो परंतु हेतुसा आभासित हो, कुतर्क, हेतुदोष। बक्स ।
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