Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1006
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रपत्र-बना प्रपन्न-पु० [सं०] (बाई) वह व्यक्ति जो नाबालिग होनेके फेनिल-पु. रीठा । कारण अपने अभिभावकके अधीन हो, अभिरक्ष्य । फैक्टरी-स्त्री० कारखाना । प्रबंधसंचालक-पु० [सं०] किसी संस्थाके प्रबंधादिकी देख- फैयाज-वि० उदार । रेख करनेवाला संचालक । फौतीनामा-पु. मृत व्यक्तियोंके नाम पता आदिकी वह प्रब्बत*-पु० पर्वत । मूची जो नगरपालिकाकी चौकीपर तैयार की जाती है। प्रम-वि० परम। फ्रेम-पु. शीशे या तसवीर आदिके चारो तरफ लगाया प्रमोधना*-स० क्रि० प्रबोधना, समझाना । जानेवाला चौखटा। प्रयत्नशील-वि० [सं०] प्रयत्नमें लगा हुआ, जो प्रयत्न कर रहा हो। प्रयोगवाद-पु० [सं०] (एक्सपेरिमेंटलिज्म) भाषा, विषय, | बंकनाल-स्त्री० सुनारोंकी महीन फुकनी जिसे मुँहसे फूकभाव, छंद, आदि संबंधी पुरानी परंपराके विरोधी नये- | कर दीयेकी लौसे बारीक टुकड़ों की जुड़ाई की जाती है। नये प्रयोग करते रहनेकी साहित्यिकों, कवियोंकी प्रवृत्ति | बंदर भबकी-स्त्री० दे० 'बदरघुड़की'। जिसकी तहमें पाठकोंको चौंका देनेकी लालसा भी, अज्ञात बध छुड़ाई-स्त्री० विवाहके अंतमें बंदनवारके पत्तेकी रूपसे, विद्यमान रहती है। गाँठ खोलनेकी रस्म । इसे वधूकी रुखसतके पूर्व वर प्रवेशद्वार-पु० [सं०] भीतर जानेका द्वार या रास्ता खोलता है और नेग माँगता है। प्रालंयपर्वत-पु० [सं०] हिमालय पहाड़ ('श्यामापुर')। बधिया-स्त्री० छोटा बाँध या मेंड़-'खेत भर गया तो एक प्रीतिपेय-पु० [सं०] (टोस्ट) किसीकी स्वास्थ्य-कामनासे , ओरसे बँधिया काटकर फालतू पानी निकाल दिया' ग्रहण किया जानेवाला पेय । -मृग०। बंब*-स्त्री० अहंकार-धंधा ही में मरि गया बाहर हुई न फ बंब'-साखी। फटफटिया, फटफटया-स्त्री० (फटफट आवाज करनेवाली) बका-पु. वाक्, वाणी, वाक्य, बोल । मु. -फटनामोटर साइकिल । मुँहसे आवाज या बोल निकलना-'क्या कहूँ, बक नहीं फटीचरी-वि. जो मैले कुचैले कपड़े पहने हो, भद्दी | फटता'-मृग। वेशभूषा, सूरत-शक्लवाला-'शकल सूरत फटीचर और बकेल-स्त्री० पलास (छेवले)की जड़ जिसे कूटकर रस्सीकी नाम रख दिया मनोहरदास'-नया जीवन । तरह प्रयुक्त करते हैं, बकौंडा (बुदेल०)। फनमाली*-पु० शेषनाग-'कालिका कृपान, मुंडमालीके बकौंडा-पु० दे० 'बकेल' । त्रिशूलसे हैं, रामचंद्र-बान फनमालीके जहरसे'-लछिराम । | बखरी-पु० एक तरहका हल । फनाली*-स्त्री० फनोंका समूह-'कालीकी फनालीपै नचत बगड़ी*-स्त्री० बाग, बगीचा। बनमाली है'-पद्माकर । बगदना- अ० कि. * लौटना; दे० मूलमें । कॉफट*-पु. कूड़ाकरकट । बगदरी-पु० मच्छर (बुंदेल०) । फाउंटेन पेन-पु० [अं॰] वह कलम जिसकी नलिकामें | बगदाना-स० क्रि० ढकेल देना, धक्का देकर गिरा देना स्याही भर देनेसे लिखते समय उसे बार-बार दावातमें बिगाड़ना; बहकाना, भटकाना । डुबाना नहीं पड़ता, झरना कलम, निझर लेखनी । बगरी-पु० (पशुओंका) झुंड, समूह-'ढोरीका एक पूरा फुकली-स्त्री० दे० 'फोकली'। बगर सामने पेश कर दिया-अमर । फुनि* --अ० पुनि, पुनः। बग्ग, बग्गु*-पु० बाग, लगाम, वेगा। कलड़िया -स्त्री० जूती-'फाटी तो फूलडिया पाँव उभाणे | बजकना -अ० क्रि० बजबजा उठना, सड़नेके कारण चलते चरण धसे'-मीरा । बुलबुले ऊपर फेंकने लगना । फूलेड़ा-पु. एक उत्सव जो चैत सुदी एकादशीको मनाया बटना*-अ० क्रि० बँट जाना, समाप्त हो जाना-पनकी जाता है और जिसमें श्रीकृष्णके लिए फूलोंका झूला बनाया पटिहै वह जौ बटिहै'-घन हटना, बहकना 'चित्त कहूँ जाता है। न काहू भाँति बटै'-घन। फूलभाग-स्त्री० एक तरहकी भाँग । बटिया-स्त्री० बँटाई, बँटैया, जमीनकी वह व्यवस्था फूला-पु० पक्षियोंका एक रोग। जिसमें मालिकको लगानके रूपमें पैदावारका नियत भाग फूवा-स्त्री० दे० 'फुआ'। मिले। फूहा-पु० रूईका गाला। बडु*-वि० बड़ा। फेदा-पु० अरुई नामक तरकारी । बदेस*-पु० विदेश। फेनदुग्धा-स्त्री० दृधफेनी नामक पौधा जो औषधके काम | बनक*-स्त्री० मैत्री-'जासों अनबन मोहिं, तासों बनक आता है। बनी तुम्है'-धन। फेनमेह-पु० एक प्रकारका प्रमेह जिसमें फेन जैसा वीर्य बनराव*-पु. बड़ा जंगल; बड़ा वृक्ष-'चंदनकी कुटकी थोड़ा-थोड़ा करके गिरता है। भली ना बबूल बनराँव'-कबीर। फेनिका-स्त्री० सुतफेनी नामक मिठाई। बनाt-पु०. बनरा, दूल्हा । For Private and Personal Use Only

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