Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1004
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प ९९५ भाँवरा-पतोखी नॉवरा*-पु. नाम। नीबू-पु० दे० मूलमें । मु०-नमक चटाना-ठेगा नॉसी*-स्त्री० मारनेका स्वभाव-'जा मुख हाँसी लसी धन | दिखाना, कुछ भी न देना, निराश करना, कोरा जवाब आनँद कैसें सुहाति बसी तहाँ नाँसी'-धनः । देना । -नमक चाटना-निराश होना, प्रायः कुछ भी नाती-पु. नातेदार, संबंधी (मीरा)। न पाना। नालि*-स्त्री० चिता-"बिरहणि थी तो क्यू रही, जली न नीलकाँटा-पु. एक झाड़। पिवके नालि'-साखी। नीसार*-पु० (संस्कृत 'नीशार') आवरण, पर्दा (रासो) । निखरक*-अ० बेखटक-'निधरक जान अलबेले निखरक । नेरी*-अ० थोड़ा भी-'... पत्यातिन नेरी'-धन । ओर'-धन०। नैत*-पु० सुअवसर । निखरहर, निखहर-वि० बिछौनेसे रहित । नैनी*-स्त्री० नैनू , नवनीत-'किसीकी नैनी ले भागे तो निगडहस्त-वि० [सं०] (हैंडकपड) जिसके हाथमें हथकड़ी। किसीकी छाछ फैला दी'- केशवप्र० । पड़ी हो। नोअना, नोना*-स० क्रि० गायके पैर में रस्सी बाँधनानिगुड़वा*-वि० दे० 'निगोड़ा। _ 'कपट हेतुकी प्रीति निरंतर नोह चोखाई गाय'-सूर । निचीता*-वि०निश्चित । नौथारी -पु० निमंत्रित व्यक्ति। निझनक*-वि०निर्जन, नीरव । न्यौज*-पु० दे० 'नेवज'। निपाँख*-वि० पंखसे हीन सहायकसे रहित (ला०)- प*-पु० नृप, राजा। 'निपाँख करि छोरि देहु'-घन । निपेटी*-वि० स्त्री० भुक्खड़-'अघाति न आँखि निपेटी'घन०। पंख-पु० दे० मूलमें। मु. -परेवा बना डालनानिबेसित*-विनिवेशित । बातका बतंगड़ बना देना, छोटी-सी चीजको तूल दे देना, निरज*-वि० रजोहीन, निर्मल। मामूली-सी बातको बहुत बढ़ा देना (अमर०)। निरजास*-पु० दे० 'निरजोस'- 'लह्यौ परम रसको निर- पंग-पु. कन्नौज नरेश जयचंद (रासो)। -जा-स्त्री. जास । श्री ब्रज बुदाबिपिन बिलास'-घन । संयोगिता। निरवद्य-पु० [सं०] तीन योगशक्तियों मेंसे एक (शेष दो पंचशील-पु० [सं०] अंतरराष्ट्रीय शांतिरक्षाके वे पाँच सावद्य और सूक्ष्म हैं); दे० मूलमें । सिद्धांत या शील जिनकी घोषणा पहले-पहल जवाहरलाल निराना*-अ० कि० दे० 'नियराना'। नेहरू तथा चाऊ एन लाईके संयुक्त वक्तव्य में की गयी थी। निरालंब नारीसदन-पु० [सं०] (डेस्टिट्यूट-वीमेंस होम) पाँचों शील ये हैं-(१) राज्यकी अविच्छिन्नता और प्रभुत्व असहाय नारियोंकी सहायताके लिए स्थापित संस्था । के लिए परस्पर समादर; (२) परस्पर अनाक्रमणका निरिनि*-अ० निकट-'निरिनि रहत ब्रजमंडन जिनके। आश्वासन; (३) भीतरी बातोंमें अहस्तक्षेप (४) समता हरि-हित-सहित मनोरथ इनके।'-घन। और पारस्परिक लाभ; (५) शांतिमय सह-अस्तित्व । निरैठी*-वि० स्त्री० मस्त-'लाइनि निरैठी मति बोलनि पंचाली-स्त्री. पांचाली, द्रौपदी; दे० मूलमें । हरै हरी-घन। पक्का-वि० दे० मूलमें । -पानी-पु० गेहुआँ रंग । निर्गम-निषेधाज्ञा-स्त्री० [सं०] (करफ्यूआर्डर) दंगा फसाद | पगड़े *-अ० प्रभातमें-'सधली रैनि आनँदधन बरस्या या उपद्रवादिके समय आरक्षाधिकारियों द्वारा घरसे बाहर पगड़े म्हाँ पर छाया' (पगड़ा, पगरा = सबेरा)। निकलनेकी मनाही करनेवाली आज्ञा ।। पचना*-अ० क्रि० परेशान होना-'बृथा रुचि बीच निर्झर लेखनी-स्त्री० [सं०] दे० 'फाउंटेनपेन'। पच्यौपरि क्यों ?'-घन; दे० मूलमें । निर्दल सम्मेलन-पु० [सं०] ऐसे नेताओं, कार्यकर्ताओं पछियाना-अ० क्रि० पीछे-पीछे चलना । स० क्रि० पीछा आदिका सम्मेलन जिनका संबंध किसी दल-विशेषसे न हो। करना। निर्बरा -वि० धुंधला, अस्पष्ट- एक आकार दिखलाई पड़ा। पटकना*-अ० क्रि० परेशान होना-‘ऐसी कौन बावरी साफ नहीं, निर्बरा'-मृग० ।। सयान लैन पटकै'-घन । निर्यासन-पु० [सं०] दे० मूलमें; उत्पीड़न, कष्ट देना- | परपरा-पु० पहाड़के ऊपरकी समतल भूमि । 'यह निर्यातन अब और न सहेंगे'-'पथके दावेदार'। पटम*-पु० छल-छंद-'काहेको एतौ पटम रचत हो मन निर्वनीकरण-पु० [सं०] (डीफॉरेस्टेशन) दे० 'वन रूखे मुँह चिकने बैन'-धन । नाशन'। पटरोल*-पु० पट्टवस्त्र, रेशमी वस्त्र । निष्प्रभाव-वि० [सं०] जिसका कोई प्रभाव न रह गया पटेला-पु० चूड़ीका काम देनेवाला (चाँदीका) चिपटा हो, जिसका प्रभाव नष्ट या रुद्ध कर दिया गया हो, | कड़ा। अप्रभावी। पतंगी-वि० स्त्री० रंग-बिरंगी-'गोरे तन पहिरि पतंगी निसवादिल*-वि० दे० 'निसवादला'। सारी, झमकि झमकि गार्चे गारी'-घन । निस्यौना*-अ० कि० निश्चित होना-'अनंगके रंग निस्यौं पतिलीन*-वि० प्रतिष्ठाहीन-'गतिहीननकी पतिलीननकी करि'-धन। रति'-धन। नीव-स्त्री० दे० 'नी। | पतोखो-स्त्री० रातमें बोलनेवाली एक चिड़िया । For Private and Personal Use Only

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