Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited
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दश्मना-नवैयत दश्झना-अ०.क्रि० दग्ध होना।
दोसत*-पु० दोस्त, मित्र (साखी)। दप्प-पु० दर्प, घमंड ।
दोही-स्त्री० दुहाई-'फिरी हग रावरे रूप की दोही'दब*-स्त्री० दाव, दबाव, रोब, शासन-'कहा करौं कछ | घन।
बनि नहिं आवै अति गुरुजनकी दबरी'-धन० । दीची -स्त्री० ठोकर लगनेसे धातुके बर्तनमें पड़ी हुई दरकीला-वि० आसानीसे टूट-फूट जानेवाला, भुरभुरा। पचकन, चिपटापन । दरबर*-स्त्री० उतावली-'अहो हरि आये महा हरबरमैं, द्रप्पन -पु० दर्पण-'द्रप्पनसम आकास स्रवत जल अमृत कहा बनि आवै टहल दरबरमैं'-घन ।
हिमकर'-(रासो)। दरबराना*-अ० क्रि० छटपटाना-'देखनकौं ग दर-द्वाभा-स्त्री० सबेरे या संध्याके समयका वह मंद प्रकाश बरात'-घन।
जब सूर्य क्षितिज रेखाके नीचे हो (ट्वाइलाइट)। दह-पु० नदी किनारेका (मटमैले पानीका) छिछला गड्ढा-'सुअर और अरने भैंसे नदी किनारे किसी दहमें लोर रहे होंगे'-मृगः ।
धकना*-अ.क्रि. तप्त होना, धिकना-'जरनि बुझ दही-प० दे० मलमें।म०-CETथ.महमें),-जमा रहना| दुख-जाल धौ-धन । -निष्क्रिय हो जाना या रहना; परस्पर बातचीत न होना | धक्याना*-अ० कि० जलना-'जियरा उड्यौ सो डोले -७८ दिनतक दोनों के मुंह में दही जमा रहा'-प्रेम० । __ हियरा धक्यौई करै-धन० । दा*-प्र० का-'नंददा सोहना'-धन ।
धजी*-स्त्री० धज्जी, टुकड़ा। दाझणा*-पु० जलन, दाह-'आठ पहरका दाझणा मोपै धनवाद-पु० [सं०] (मनीसूट) वह मुकदमा जिसमें धनके सह्या न जाइ'-कबीर ।
लिए दावा किया गया हो। दातुरी*-स्त्री० दानकी वृत्ति-'दानी बड़े पै न माँगे बिन | धरनि*-स्त्री० दे० मूलमें टेक-'ज्यों अहि डसत उदर ढरै दातुरी'-धन।
नहिं पूरत ऐसी धरनि धरी'-सूर । दान-पु० [फा०] रखनेकी चीज या पात्र, आधार | धाँगना --स० कि० कुचलना, रौंदना।
(समासमें-जैसे कलमदान, पानदान, पीकदान)। धीजना*-अ० क्रि० ठहरना-'चाह बढ़-चौ चित चाकदामणी*-स्त्री० दामिनी, बिजली-'चहुँदिस चमकै दामणी चदयौ सो फिरैतित ही इत नेक न धीजे-घन। गरजै धन भारी हो'-मीरा।
धुनक*-पु० धनुष, धनुर्धर । दायबी-विदा, अवसरको खोजमें रहनेवाला-'मन धुनाई-स्त्री० पिटाई, मरम्मत। बसमै न रोक रहै दायबी'-धन ।
धुपधूप*-वि० दगदगा, साफ, चोखा-'मेरो मन, मेरो दारुजात-पु० भ्रमर, भौंरा (सूर)।
अलि, लोचन लै जो गये धुपधूप' -सूर । दावत-तवाजा-पु० [अ०] खान-पान, आदर-सत्कार | धुराधुर*-पु० आधार-'प्रान पपीहनिके घन आनंद होत आदि।
· आए हौ धुराधुर'। दिग्द्योतक यंत्र-[सं०] दे० 'दिग्दर्शक यंत्र' कुतुबनुमा। धूताई*-स्त्री० धूर्तता, चालाकी-'साँची कहहु देह दीवानी-वि० [फा०] रुपये और जायदाद-संबंधी (-मुक- स्रवननि सुख, छोडहु जिया कुटिल धृताई -सूर । दमा)। -अदालतस्त्री०,-न्यायालय-पु. वह अदालत | धूम-अ० तेजीसे। जिसमें जायदाद-संबंधी मुकदमोंपर विचार हो।
धैन*-स्त्री० धेनु। दुखदागर-पु० दुःखका नाश करनेवाला-'पालागौं धौताल*-वि० शरारती- 'होरीके दिन चारिकतें तुम भये द्वारका सिधारौ बिरहिनिके दुखदागर'-सूर ।
हो निपट धौताल हो'-धन । दखहाई*-वि० स्त्री० दुःखकी मारी-'न खुली मुँदी धम्म-पु० दे० 'धर्म'।
जानि परै कछु ये दुखहाई जगेपर सोवति हैं'-धन । ध्वनिघनस्व-पु० [सं०] (फ्रीक्वेंसी) प्रति सेकंडमें उत्पन्न दुगध-पु० दुग्ध, दूध । -नदीस*-पु० दुग्धसमुद्र, की जानेवाली ध्वनिकी आवर्तनीके अनुसार मानी जाने
क्षीरसागर-'इंद्रको अनुज हेरै दुगध-नदीसको'-भू० । वाली ध्वनिकी धनता । दुग्धशाला-स्त्री० [सं०] दे० 'डेरी'। दून-स्त्री० दो पहाड़ोंके बीचकी जगह, घाटी (अमर०)। देन-स्त्री० दे० मूल में वह उपयोगी या अमूल्य वस्तु जो नगड़िया-स्त्री० एक तरहका छोटा-सा नगाड़ा, डुग्गी । किसीको दी जाय या दी गयी हो-'जगतको जो हम | नन*-अ० मत-'नन करहु गवन नन भवन तजि, कत सबसे बड़ी देन दे सकते हैं, वह यही आदर्श है'- | दुसह दारुन सरद'-रासो । राजेंद्रप्र०।
नबी*-वि० नवीन । देयासिनि*-स्त्री० झाड़-फूंक करनेवाली (विद्यापति)। नभोनंदिनी-स्त्री० प्रतिध्वनि (विरहिणीवजा०)। देवता-पु० [सं०] दे० मूल में । मु०-कूच कर जाना- नरवै*-पु० नरपति, राजा (रासो) । अत्यंत भीत हो जाना, होश गायब हो जाना।
नवसर -वि० नयी उम्रका । देसड़ा, देसडे*-पु० दे० 'देस'।
नवैयत-स्त्री० (टेन्यूर) भूमि या संपत्ति रखनेकी अवधि देहवंत-वि० शरीरवाला । पु० देहधारी, प्राणी । और शर्ते ।
नबा
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