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पती-प्रतिपूयिक, प्रतिपौतिक पत्ती-स्त्री० दे० मूल में; दे० 'ब्लेड' ।
पातालतोड़-वि० बहुत गहरा (कुँआ)। पत्यानि*-स्त्री. विश्वास-'झूठी बतियानिकी पत्यानिते पानी-पु० दे० मूलमें । मु०-पानी करना-किसीका उदास है कै'-घन।
__ क्रोध शांत करना। पत्रचाप-पु० (पेपरवेट) लकड़ी, शीशे, पत्थर आदिका वह | पानुस*-पु० दे० 'फानूम'।
छोटा टुकड़ा जिसका प्रयोग कागजपत्रोंको दबाये रखने, पिटना-अ० क्रि० पछाड़ दिया जाना, हार खाना-'इस हवामें उड़ जानेसे रोकने के लिए किया जाता है, चुनावमें कैथलिक लीग बुरी तरह पिटी' । पत्रमारक ।
पियाला-पु० दे० 'प्रियाल'। पत्रभारक-पु० (पेपरवेट) दे० 'पत्रचाप'।
पिसण-वि० पु० पिशुन । पथ्थार*-पु. प्रस्तार, विस्तार (रासो) ।
पीरक*-वि० दे० 'पीडक' । पदवीदान समारोह-पु० [सं०] दे० 'समावर्तन संस्कार'। पुजना*-अ० क्रि० पूजना, पूरा होना । पदावनति-स्त्री० [सं०] (डीग्रेडेशन) ऊँचे पदसे हटाकर पुत्तारी*-पु० पुत्र, सुत । नीचे पद पर कर दिया जाना, तनज्जुली।
पुत्ति*-स्त्री० पुत्री, लड़की। पदु-पु० दे० 'पद'; बदला।
पुन्निम*-स्त्री० पूर्णिमा। पद्मविभूषण-पु० [सं०] किसी असामान्य या विशिष्ट | पुप्फ*-पु. पुष्प, फूल । सेवाके लिए स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा दिया जाने पुरवा*-वि० पूर्ण करनेवाला-'चलि राधे बूंदाबन बिहरन वाला एक सम्मान ।
| औसर बन्यौ है मनोरथ-पुरवा'-धन। पय*-पु० पद, चरण-'पयलग्गि प्रानपति बीनवों नाह| पुरालिपि-स्त्री० [सं०] पुरातन काल में प्रचलित लिपि । नेह मुझ चित धरहु'-रासो।
-शास्त्र-पु. प्राचीन लिपियोंका विवेचन करनेवाला पया-पु० दस सेर अनाजकी तौलवाला बरतन (अमर०)।। शास्त्र। परगनाधीश-पु० दे० 'परगना हाकिम' ।
पुलिस-स्त्री० दे० मूलमें । -काररवाई-स्त्री० किसी परगना हाकिम-पु० [अ०] परगनेकी देखरेख करनेवाला स्थानमें शांति स्थापित करनेके लिए की गयी सख्त प्रधान अधिकारी, परगनाधीश ।
काररवाई । -राज-पु. पुलिसका शासन, दबदबा या परमुखापेक्षिता-स्त्री० [सं०] दूसरेका मुँह जोहने, दूसरे आतंक। पर निर्भर रहनेकी प्रवृत्ति-'मनुष्यको पर मुखापेक्षिताके | पुहप्प-पु० पुष्प । दलदलसे निकालना 'साहित्यका लक्ष्य'-हजारीप्र०।। पुहवै*-पु० प्रभु, स्वामी । परमुखापेक्षी (क्षिन्)-वि० [सं०] दूसरेका मुँह जोहने- पूर*-पु० दे० मूल में; धारा-'उगिलत हो पयपूरको वाला।
| निगलत सो तमताम'। परिमार्जनीय-वि० [सं०] जिसकी त्रुटियाँ दूर करना | पूर्णकालिक-वि० [सं०] जो पूरे समय काम करे, जो पूरे आवश्यक हो, संशोध्य ।
समयके लिए नियुक्त किया गया हो; पूरे समयसे जिसका परीसना-स० क्रि० परोसना-'आनँद धन पिय न्यौति | संबंध हो। पपीहनि प्यास परीसत हो'-घन; स्पर्श करना-'मधुर पेटनटा-पु० पेटके लिए नाचनेवाला । त्रिभंगी जौ लौ कृपान परीसई'-धन ।
पेया-स्त्री० [सं०] शर्बत, मदिरा आदि पेय पदार्थ । परैना-पु० पशुओंको हाँकनेका एक हथियार ।
पेशबंदी-स्त्री० [फा०] बचावकी युक्ति जो पहलेसे की जाय; पर्नसालिका*-स्त्री० कुटिया।
दे० मूल में । पर्वतारोही दल-पु. पहाड़की ऊँचाई आदिका पता | 4छर*-अ० पीछे-पीछे । लगानेके लिए अभियान करनेवाला दल ।
| पैरहनी-पु० कश्मीरियोंका लबादा जैसा लंबा पहनावा पलायनवाद-पु० [सं०] (एस्केपिज्म) वह मतवाद जिसमें | (शेखर०)। जीवनकी वास्तविकता और कठिनाइयोंसे भागनेकी प्रवृत्ति- पैसंगा*-स्त्री० पेशीनगोई, भविष्यवाणी। को प्रश्रय दिया जाता है।
पोला -पु. एक त्योहार जिसमें बैलोंकी पूजा होती है दीदिन)-वि०. प० [सं०] पलायनवादका | और उनकी दौड़ करायी जाती है। सहारा लेनेवाला (कवि, लेखक इ०)।
प्रकाशनाधिकार-पु० [सं०] (कॉपीराइट) दे० 'कृतिस्वाम्य' । पशुवंदीगृह-पु० दे० 'कांजी-हाउस' ।
प्रग्रिह*-पु० परिग्रह। पसर-स्त्री० दे० मूल में । मु० -चराना-पशुओंको प्रछेद-पु. प्रस्वेद, पसीना ।
रातमें चुपकेसे थोड़ी देरके लिए किसीके खेत में चराना। | प्रजरंत*-वि० प्रज्वलित, जलता हुआ। पांडरित-वि० [सं०] जो पीला बना दिया गया हो- प्रतग्याँ*-स्त्री० प्रतिज्ञा । 'वदनचंद्रके लोध्र रेणुसे गंगाका जल पांडुरित हो जाता | प्रतषि-वि. प्रत्यक्ष । था'-हजारीप्र०।
प्रतिनमस्कार-पु० [सं०] नमस्कारके जवाबमें किया पाज*-पु. बंधन, बाँध-'ब्रजतिय-हिय-सरबर रसभरे । गया नमस्कार, प्रत्यभिवादन । लाज-पाज तजि उमगनि ढरे।'-घन।
प्रतिपूयिक, प्रतिपौतिक-वि. जो सड़न या मवाद न पाटण-पु० पत्तन, नगर ।
उत्पन्न होने दे (ऐंटी-सेप्टिक)।
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