Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1008
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भदूना-मरमराहट कहै सुन भरी बिन बरसे ना जाय । भैरव-वाहन-पु० [सं०] कुत्ता, श्वान । भदूना -पु० ढेर (मृग०)। भोजल*-पु० भवजल, भवसागर । भद्रा-स्त्री० [सं०] दे० मूलने । मु० -उतारना-मर• भोथराना-अ० क्रि० भोथरा होना। म्मत करना, सजा देना। भोम*-स्त्री० भूमि, धरती-'जित जाऊँ तित पाणी पाणी भया*-पु० भैया, भाई। हुई सब भोम हरी'-मीरा । भरका-पु० नदी किनारेका ढालवाँ हिस्सा (?)-'वे | भौंडू*-पु० टोला, कगार । दोनों नदीके भरकेमें उतर गयी'-मृग०; खड्ड । भौरहाई-स्त्री० भौं रोंका मँडराना-'आरस विभावरी है भवनदीपिका-स्त्री० [सं०] घरका भीतरी तालाब । होत भी रहाई है'-धन । भाँभी*-वि० स्त्री० घूमनेवाली। भ्रत्तार*-पु० भर्तार, पति । भावना -स० क्रि० धुमाना, मथना (मट्टा भावना), बिलोना; दे० मूलमें। भाँवरा*-पु० आवर्त, भँवर; परिक्रमा । मंजन*-पु० स्नान, मालिश-'मंजन कै नित न्हाय के भाईता-वि० भाड़ेपर काम करनेवाला, भृतिभोगी। अंग अंगोछि कै बार झुरावन लागी'-ललित०, माँ जना, भारतरत्न-पु० [सं०] प्रगाढ पांडित्य, अद्वितीय राष्ट्रसेवा, रगड़ना; दे० मूल में । विश्वशांतिके प्रयत्नादिके लिए भारत सरकार द्वारा दिया| मंदल*-पु० मृदंग (घन०)। जानेवाला सबसे बड़ा सम्मान । सन् १९५५ तक यह इन | मंदिलरा*-पु. मृदंग-'मंदिलरा बाजै रंग सो'-धनः । लोगोंको दिया जा चुका है-सर्वपल्ली राधाकृष्णन् , सी० | मगसर*-पु. मार्गशीर्ष, अगहन-'मगसर ठंढ बहोती वी० रमण, राजगोपालाचारी, डाक्टर भगवान्दास, पड़े मोहि बेगि सम्हालो हो'-मीरा। धोंडो केशव कर्वे, जवाहरलाल नेहरू। मगारना*-स० क्रि० जलाना-'बिरह अंगारनि मगारि भारती-स्त्री० [सं०] दे० मूलमें; मडन मिश्रकी पत्नी । हिय होरी-सी'-घन। भारिक-पु० [सं०] (पोर्टर) (रेलयात्रियोंका) सामान, कपड़े मछहरी -स्त्री० दे० 'मसहरी ।। आदि बोझ ढोनेवाला। मटीला -वि० मटियाला, मटमैला (मृग०)। भास*-स्त्री० दे० 'भाषा'। मठा-मूसल-पु० मठा (तक) और मुसल जैसी बेमेल भासा*-स्त्री० दे० 'भाषा' । बातें (मठा-मूसलकी धमकना = बेमेल बातें करना, भित्तिपत्रक-पु० [सं०] (प्लैकार्ड) दीवारपर चिपकाया, मृग०)। जानेवाला वह कागज जिसके एक ही ओर बड़े अक्षरों में मतवाद-पु० [सं०] वह मत जो वादका रूप ग्रहण कर ले। विज्ञापन, सूचना आदि छपी हो या हाथसे लिखी गयी हो। मता, मतो*-पु. सलाह, उपदेश, सम्मति; सुमतिभींचना -स० क्रि० दबाना, काटना; दे० मूलमें। 'बिना मतेको राज गयो रावणको साँई-गिरिधर । भीजना*-अ० कि. बढ़ना-'जीव सूक्यौ जाय ज्यौं ज्यौं मदअंतिका*-स्त्री० दे० 'मदयंतिका' । भीजत सरबरी'-घन०।। मदीला-वि० मदभरा, उन्मादकारी (मदीली चितवन, भीजा-वि० सरस, सुखी-'भीजे धन आनँद बिराजौं। अमर०) दे० मूल में । निधरक तुम-घन। मद्यनिर्माणशाला-स्त्री० [सं०] (डिस्टिलरी) शराब तैयार भीमरा*-वि० स्त्री० भयानक आकार-प्रकारवाली-'फेरि करनेकी जगह, अभिस्रावणी । भीमरा कृष्णा गाही'-छत्र। मधुयामिनी-स्त्री० [सं०] वर-वधूकी प्रथम मिलनरात्रि । भुथराई*-स्त्री० भोथरा होना, कुंदपना-'पैने कटाछनि | मध्याहभोजन-पु० [सं०] (लंच) दोपहर में किया जाने ओज मनोजके बानन बीच बिंधी भुथराई'-घन । वाला मुख्य भोजन। भुथराना-अ० क्रि० दे० 'भोथराना'। मनसायना-वि० जहाँ चहल-पहल हो । पु० दे० मूल में । भुल्लना*-स० क्रि०, अ० क्रि० भूलना। मनस्कार-पु० [सं०] किसी विषयके प्रति मनकी आसक्ति, भुसना*-अ० क्रि० दे० ' सना' (मूंकना)-'हस्ती चढ़ि | चित्ताभोग; दे० मूल में । नहिं डोलिये कूकर भुसें जु लाख'-साखी । ममान, ममाना-पु० मामाका घर । भूरा*-पु० भ्रमर । ममियाउरी-पु० दे० 'ममियौरा' । भूतागति*-स्त्री. भूतका-सा व्यापार, विलक्षण बात- मरकत-मंदर-पु० नीलमका पहाड़-'मरकत-मंदरपर 'दौरि परें न निगोड़ी थक बड़ी भूतागति है'-घन । संगमी रतनहार, लहरै तरंगदार गंगा-यमुनाकी हैं' भूमिधर किसान-पु. वह काश्तकार जो दसगुना लगान -लछिराम । जमाकर भूमिका स्वामी बन गया हो और सीधे सर- मरकत-सैल*-पु० नीलमका पहाड़-'मानो मरकत-सैल कारको लगान देने लगा हो। बिसाल मैं फैलि चली बर बीर-बहूटी'-तुलसी। भेड़ना -स० कि० भिड़ा देना, सटा देना, ओठंगाना मरमराहट-स्त्री० दवी आवाजमें, अपने आप, असंतोष -'किवाड़ भेड़कर पत्नी चली गयी'-मनो, नव० ५५। प्रकट करनेकी क्रिया; असंतोष प्रकट करनेके लिए दबी भेला*-पु० साँप-'भेला पाया श्रम सों भवसागरके माँह। आवाज में कहे गये शब्द-'लूटमारके अंशने सिपाहियोंकी जो छाड़ों तो डूबिहौं, गहों तो डसिह बाँह'-कबीर। । मरमराहट बंद कर दी'-मृग डाल, आदिके टूटनेकी For Private and Personal Use Only

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