Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 1007
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बमेक-भड ९९८ बमेक*-पु० विवेक। बिभछ -पु० वीभत्स रस-शृंगार बार करना बिभछ बरदाश्त-स्त्री०सहनेकी शक्ति या भाव, सहनशक्ति, सहन। मय अद्भुत हसंत सम-रासो। बरबटी-सी० बोड़ा (छत्तीस०) बिरबिराना -स० क्रि० शिकायतकी तरह धीरे-धीरे कुछ बरबरानाt-अ.क्रि० दे० 'बड़बड़ाना' । कहना। बरसाइना-स्त्री. हर साल बच्चा देनेवाली गाय । बिसारी*-वि० स्त्रीविषयुक्त-'साँपिनि निसा बिसारी' बरीसानु*-पु० राधाका जन्मस्थान बरसाना। -धन। बर्तना-अ.क्रि० से व्यवहार करना 'निवासियोंके साथ | बिसास*-पु० विश्वासघात-"बिष भोए विषम-बिसास-बान वर्त्तने में तीन बातोंका ध्यान रखा जाता'-अंताराष्ट्रिय वि०। हत हैं-धन। बर्दाश्त-स्त्री० दे० 'बरदारत'। बिस्वाससँगाती*-वि०, पु० विश्वासघाती-'छोड़ गया बलकनि*-स्त्री० प्रवाह, उल्लास, जोश-रस-बलकनि बिस्वाससँगाती प्रेमकी बाती बराय'-मीरा। उनमदि न कहूँ सके'-घन० । बिहित*-पु. बिहिश्त, स्वर्ग-"बिहित न मेरे चाहिये बलांगक-पु० [सं०] वसंत ऋतु । बाझ पियारे तुझ'-साखी। बल्लभी*-स्त्री० दे० मूलमे; छत-'ताकी बर बस्लभी, बीतनि -स्त्री० क्षणभंगुरता-'बीतनिको रूप हूँ ठहरि बिचित्र अति ऊँची, जासों निपटै नजीक सुरपतिको | हेरि गये बीते'-धन। अगार है' (काव्यांगको०)। | बीनवना*-स० क्रि० बिनती करना-'पय लग्गि प्रानपति बस*-वि० सुवासित । बीनवौं'-रासो। बसेंडा-पु० पतला बाँस । | बुर्जुआ-पु० [फा०] धनिक मध्यम वर्ग (व्यापारी तथा बहरना*-अ० कि० बीतना, कटना (समय)-'बहरि परै बड़ा वेतन पानेवाले लोग)। वि० इससे संबंध रखनेवाला। नहिं समै गमै जियरा'-घन। बुल्लना*-स० कि० बोलना-'सकुच न हिय छिन एक बहराना*-अ० कि. बहरा हो जाना-'रूई दिये रहोगे बचन मनमाने बुल्लै'-रासो।। कहाँ लौ बहरायबेकी'-घन । स० क्रि० दे० मूलमें। बूची*-वि० स्त्री० कनकटी। बहुपदी बिक्रीकर-पु० दे० 'प्रतिपद बिक्रीकर'। | बूंदा-स्त्री० राधा-'चंद्रमस्ली पुंजकी नवकुंज बिहरत बाँधिल*-वि० बँधा हुआ, बद्ध-'गुन बाँधिल होहन आय । जहाँ बृंदा अति भली विधि रची बनक बनाय।' छोटियै जू-धन। -धनः । बाढी-पु० बढ़ई-'बाढ़ी आवत देखिकर तरुवर डोलन | बेडिया-पु. एक तरहका नट । लाग'-कबीर । बो-स्त्री. वधू , पत्नी (भाईजी बो= (भौजी), जेठानी; बापरना -स० कि० व्यवहार करना, काममें लाना। रामा-बो, इत्यादि)। बाबल*-पु० बाबुल, पिता, बाबा-'बाबल बैद वुलाइया | बोहना-+ अ० क्रि० स० कि० (बीज) बोना, खेतमे रे, पकड़ दिखायी म्हारी बाँह'-मीरा । बीज छिटकना (अमर०)। बारस*-वि०, पु० दे० 'बारह'-'बारस मास जहाँ | बोहनी -स्त्री० बीज बोने, छिड़कनेकी क्रिया-'जुताइयाँ चौमासो'-घन + स्त्री० द्वादशी । हुई और बोहनी भी'-अमर। बारै-वि०, पु० बारह । ब्लेड-पु. [अं०] इस्पातका चौकोर पतला पत्तर या बालपक्षाघात-पु० [सं०] (इनफैनटाइल पैरालिसिस) । टुकड़ा जिससे डाढ़ी बनानेका काम लिया जाता है, पत्ती। बच्चोंको होनेवाला पक्षाघात । वालिस गाड़ी-स्त्री० (बैलास्ट ट्रेन) गिट्टी तथा सड़क बनानेका सामान ढोकर ले जानेवाली रेलगाड़ी। भकभूर-वि० उजजु, मूढ़-'प्रेमाचीर-कथा कह कहा बावदकता*-स्त्री० वाग्मिता। भकभूर सौं'-धन। बिगसना -अ० क्रि० दे० मूलमें फूटना, फटना, छितरा भकुरना -अ० क्रि० नाराज होना, रूठना, क्षुब्ध होकर जाना-'मिट्टीका लडट्ट छातीपर जाकर बिगस गया'- मुँह डाल लेना-'निन्नीने मनाया, अरी ठहर भी, यों मृग। ही भकुरने लगी'- मृग० । बिगूता -वि. उलझा हुआ। भगरड़ी*-पु० भग। बिटंबे -स्त्री.विडंबना। भग्नहृदय-वि० [सं०] जिसका हृदय, दुःखादिके कारण, बिड़ौ-पु. विटप। टूट गया हो; निराश; उदास । बिडीजा-पु० दे० विडोजा (इंद्र)। भटभटी*-स्त्री० देखते हुए भी न दिखाई पड़ना-'भटभटी बितुंडे*-पु० वितंडावाद । लागै जो पै बीच बारुनी बसै'-धन । बितुनना -स० कि० रेशा-रेशा अलग कर देना-'हाय | भटभेर*-पु० दे० 'भटभेरा'। ब्रज व्यौहार-गति अति मतिहिं बितुनति धूम'-घन। भठ*-वि० भ्रष्ट-'साधु-मतो क्यों मान दुरमति जाको बिदकाना-स० कि० (मुँह) टेढ़ा-मेढ़ा बनाना, चिढ़ाना, सबै सयान परथो भठ'-धन। बिचकाना-'स्त्रियों मुँह विदकाकर हँस पड़ी'-मृगभड-पु० ब्राह्मणोंकी एक उपजाति जो भविष्य दे० मूलमें। बतलानेका काम करती है। इस जातिका व्यक्ति-'भड For Private and Personal Use Only

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