Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited
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समा
एकना-हृषीकेश
९२२ हकना-अ० क्रि० पीड़ा होना, दर्द करना; सालना। हुए छ: चक्रोंमेंसे एक जो हृदयके पास स्थित है। -तापहटना*-अ०क्रि०विलग होना, पृथक होना; विमुख होना, पु० हृदयकी जलन, मनोव्यथा। -पंकज,-पद्म-पु.
मुँह मोड़ना-'काल-बस जंगतें नाहिं हूट्यो'-सुजान। कमलवत् हृदय । -पिंड-पु० सीनेके पास स्थित अंगहठा-पु० अँगूठा ठेंगा; चिढ़ानेकी मुद्रा। -देना-मु० विशेष, हृदय । -पीड़न-पु० हृदयको कष्ट देना। अँगूठा दिखाना; चिढ़ाना।।
-पीड़ा-स्त्री० मनोव्यथा । हूड़-वि० हुडु, अनाड़ी, मूढः लापरवाह ।
हृदयंगम-वि० [सं०] मर्मस्पर्शी; सुंदर; हृदयगत; समझमें हुण, हन-पु० [सं०] एक म्लेच्छ जाति जिसने भारतकी आया हुआ; आकर्षक आनंददायका प्रिय । पश्चिमोत्तर सीमापर कई बार आक्रमण किया था और हृदय-पु० [सं०] वक्षके भीतर बायीं ओर स्थित मांसका जिसे एक बार विक्रमादित्यने बुरी तरह हराया भी था | रक्तकोश जिसमें भरा शुद्ध रक्त नाड़ियों द्वारा सारे एक स्वर्णमुद्रा।
शरीर में प्रवाहित होता है, दिल, छाती, सीना; मन, इत-वि० [सं०] बुलाया हुआ, आमंत्रित ।
अंतःकरण; आत्मा; नीरक्षीरविवकिनी बुद्धि; किसी स्थानका हृति-स्त्री० [सं०] आह्वान; ललकार नाम, संज्ञा ।
भीतरी भाग जो प्रायः महत्त्वपूर्ण होता है; सार वस्तु, हतो*-अ० दे० 'हुति'।
तत्त्व, हीर; बहुत ही प्रिय, प्यारा व्यक्ति । -क्षोभ-पु० हूदा-पु० पीड़ा, शूल; धक्का ।
मनकी अशांति । -गत-वि० हृदय-संबंधी, हार्दिक, हनना-स० आगमें डालकर भूनना; विपत्तिमें झोंकना। आंतरिका हृदयस्थित । -ग्रंथि-स्त्री० हृदयकी गाँठ, हबह-वि० ज्योंका त्यों, वैसा ही।
दिलको कष्ट देनेवाली बात । -ग्राही(हिन्)-वि० हर-स्त्री० [अ०] बिहिश्त या स्वर्गलोककी स्त्री, अप्सरा मनोहर मनोरंजक । -चोर-पु० हृदयका हरण करने (ला०) परम सुंदरी, परी जैसी सुंदर स्त्री; * दे० 'हूल' वाला व्यक्ति ।-च्छिद-वि० हृदयका छेदन करनेवाला। -का बच्चा-बहुत सुंदर आदमी।
-ज-पु० पुत्र । -ज्ञ-वि. दिलकी बात समझनेवाला, हरना-स० क्रि० पेलना, ठेलना; चुभाना, गड़ाना । | रहस्य जाननेवाला । -ज्वर-पु. दिलकी जलन । -'किहु दूर ही ते दये हरि नेजा'-सुजान ।
-दाही(हिन्)-वि० हृदय जलानेवाला ।-दौर्बल्यहरा-पु० लाठी आदिका छोर।।
पु० दिलकी कमजोरी।-निकेत,-निकेतन-पु० मनोज, हुल-स्त्री० लाठीके हूरे, तलवार, भाले आदिकी नोक कामदेव । -प्रमाथी(थिन् )-वि० मनको क्षुब्ध करने
तेजीसे कहीं गड़ाने, गोदने, भोंकनेकी क्रिया; पीड़ा, वाला; मुग्ध करनेवाला । -प्रिय-वि. दिलको प्यारा, वेदना, शूल; वमन, कैकी प्रवृत्तिका होना; हला-गुल्ला, स्वादिए ।-रोग-पु० हृदयमें होनेवाला रोग।-वल्लभउलट-पलट, शोर-गुल-'परी हूल जोगिन गढ़ छेका' पु० प्राणप्रिय व्यक्ति, प्रियतम ।-विदारक-वि० हृदयको -५०%, आनंदध्वनि, खुशीसे उत्पन्न आवाज; प्रसन्नता, विदीर्ण करनेवाला, शोक, करुणा आदि उत्पन्न करनेवाला। हर्ष, युद्ध आदिके हेतु आह्वान, ललकार, बहेलियेका -विध,-वेधी(धिन् )-वि० मर्माहत करनेवाला । चिड़िया फँसानेका लासा लगा बाँस ।
-व्यथा-पु० मानसिक पीड़ा ।-व्याधि-स्त्री० हृदयका हुलना-सक्रि० दे० 'हरना।
रोग। -शल्य-पु. दिलका काँटा; दिलका जख्म । हूला-पु० हूलने, हरनेकी क्रिया ।
-शून्य-वि० दे० 'हृदयहीन' ।-स्थ-वि. जो हृदयमें हुश-वि० नाहिल, जंगली, उजटु ।
स्थित हो। -स्थली-स्त्री०,-स्थान-पु. वक्षःस्थल । हूह-स्त्री० युद्धकी ललकार हुंकार, गर्जन ।
-स्पी (शिंन्)-वि० हृदयको प्रभावित करनेवाला । हह-पु० आगके जलनेका शब्द [सं०] एक गंधर्व । -हारी(रिन)-वि०मनको मुग्ध करनेवाला।-हीनहृत-वि० [सं०] हरण किया हुआ; गृहीत; वहन किया वि०निष्ठुर, अरसिक । हुआ, ले जाया गया हुआ; वंचित; मुग्ध; स्वीकृत; हृदयवान (वत्)-वि० [सं०] कोमल हृदय, दयालु । विभक्त । पु० भाग, हिस्सा । -दार-वि० पत्नी-रहित । हृदयालु-वि० [सं०] दे० 'हृदयवान्' उदार; सहृदय । -द्रव्य-वित्त-वि० संपत्तिसे वंचित । -प्रतिदान-पु० हृदयिका हृदयी(यिन्)-वि० [सं०] दे० 'हृदयवान्। (रेस्टीट्यशन) छीनी हुई या जब्त की हुई वस्तु, संपत्ति | हृदयेश, हृदयेश्वर-पु० [सं०] पति, परम प्रिय व्यक्ति । आदिका पुनः लौटा दिया जाना । -प्रत्यर्पण-पु० हृदयेशा, हृदयेश्वरी-स्त्री० [सं०] पत्नी, प्रियतमा । (रेस्टोरेशन) हरे हुए, छीने हुए व्यक्ति या राज्यादिको | हृद्-पु० [सं०] दिल, मन आत्मा; सीना; किसी पदार्थका पुनः अर्पित कर देना, सौंप देना; दे० 'पूर्ववत्करण'। भीतरी भाग, हीर । -गत-वि० मनमें आया हुआ, -वासा(सस)-वि० वस्त्रविरहित । -सर्वस्व-वि० हृदयस्थ हृदय-संबंधी; वांछित प्रिय; आनंददायक अभिजिसका सब कुछ ले लिया या नष्ट कर दिया गया हो। प्रेत । -दाह-पु० हृदयकी जलन ।-देश-पु. हृदयका हृताधिकार-वि० [सं०] भधिकारवंचित, पदच्युत । क्षेत्र; हृदय; वक्षःस्थल । -रोग-पु० हृदयका रोग शोका हृति-स्त्री० [सं०] अपहरण, ले लेने, लूटनेकी क्रिया | प्रेम । -व्यथा-स्त्री० मनोव्यथा; हृदयका स्पंदन । ध्वंस, नाश।
-व्रण-पु० कलेजेका जख्म । हृत्-वि० [सं०] (समासांतमें) हरण करनेवाला; ग्रहण हृद्य-वि० [सं०] हार्दिक; प्रियवांछित; अनुकूल; करनेवाला ले जानेवाला; मुग्ध करनेवाला। पु० हृदय। आनंददायक, सुंदर, मनोहर, स्वादिष्ठ; हृदयसे उत्पन्न । -कंप-पु० दिलकी धड़कन ।-कमल-पु. योगमें माने | हृषीकेश-पु० [सं०] परमात्मा, इंद्रियोंका स्वामी; मन;
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