Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुरझियाना-चौमुखी
९९० गरझियाना*-अ० कि० दे० 'गुरचियाना'। स० मि.चतुरस्त्र पांडित्य-पु० [सं०] चौमुखी विद्वत्ता, चारों उलझाना, गाँठ डालना।
दिशाओं में व्याप्त शान । गुराइ, गुराउ*--पु० तोप ढोनेकी गाड़ी।
चतुर्दश-वि० [सं०] दे० 'चतुर्'के साथ मूलमें। -पदीगुलटप्पा -पु० गप्प ।
स्त्री० चौदह पदोंवाला एक छंद जो अंग्रेजीके 'सॉनेट'के गुलफ*-पु० गुरुफ, टखना।
अनुकरणपर चलाया गया है। गुह-वि० गुंफित, गुहा ।
चपरना*-अ० क्रि० फुरती करना । गूथना- पु० गोफन, ढेलवाँस-'गूथने घुमा-धुमाकर | चपरावना*-स० क्रि० बहकाना-'चोरी करि चपरावत चिबियोंको भगाना'-मृग० ।
सौहनि काहे को इतनो फॉफट फाँकत'-धन। गड़ी-स्त्री० बाँसके दो डंडे जिनमेसे प्रत्येकपर खड़ाऊँ चलापन*-पु० चंचलता-'है धन आनँद भौह-चलापन' । जैसा एक एक पावदान लगा रहता है-इनपर चढ़कर चहचारा*-पु० चहल-पहल-'भोर भयौ लागे बोलन सुकलोग चलते-फिरते, कूदते-फाँदते है (अंग्रेजी 'स्टिल्ट')। सारौ है चहचारौ'-धन०।। गौंदा-पु० मिट्टीका साना हुआ ढेर या पिंड, लोंदा। चहर*-स्त्री० बया चिड़िया (मीरा)। गोदर*-वि० गदराया हुआ; यौवनके कारण भरा हुआ। चार सौ बीस-पु० पुलिस अधिनियमकी वह धारा जिसमें गोभा-पु० अंकुर प्राकट्य, अभिव्यक्ति । स्त्री० दे० मूलमें। धोखादेही, चालबाजी, छल-छंदादिका सहारा लेनेवालेको गोराधार*-वि० दे० 'गोलाधार'।
दंड देनेका विधान है। वि० धूर्त, धोखेबाज । ' गोला -पु० एक तरहका बड़ा कंडा-'अँगीठीके पेट में गोला | चार सौ बीसी-स्त्री० धोखेबाजी, छलप्रपंच, धूर्तता। डालो'-जिंदगी।
चारिका-स्त्री० पदक्षेप-'उनके कुंठ नृत्यकी प्रत्येक चारिका' गोलाबारी*-स्त्री० तोपसे की जानेवाली गोलोंकी वर्षा । -हजारीए० भिक्षाके लिए जाना। गोष*-पु० गवाक्ष, गोखा, खिड़की।
चितारना*-स० क्रि० ध्यान में लाना, याद करना-'रे अब्ब*-पु० गर्व, घमंड, दर्प। -हन-वि० गर्वघ्न, घमंड | पपइया प्यारे कबको बैर चितारथो'-मीरा। दूर करनेवाला, दर्पहारी।
चित्रोत्पला-[सं०] गोदावरी नदी। ग्रिह*-पु. गृह, घर-'तुम देख्याँ बिन कल न पड़त है | चिनौती -स्त्री०चुनौती, ललकार (मृग०)। ग्रिह अंगणो न सुहाई रे'-मीरा।
चिरौल-पु. एक पेड़-रेवजे, चिरौल इत्यादिके पेड़ इधर
उधर उगे थे'-अमर। घ
चिहरार-पु० चिकुरभार, केशराशि । घघोना*-सक्रि० दे० 'फँघोरना'।
चीतांबर*-पु० चित्रांबर, विचित्र वस्त्रवाला। घट्ट*-स्त्री० घटा-'सुभट-ठट्ट धन-घट्ट सम, मर्दहिं रच्छन | चीनिया केला-पु० दे० 'चिनिया केला'। तुच्छ' ।
चहटना*-स० कि० चिकोटी काटना-'चुंझुटि जगाई घदना*-स० क्रि० दे० 'घड़ना' ।
अधराति औटपाई आनि'-घन० । घाँ*-पु० प्रकार, तरह-'कहिबो न छिपै किहि घों सुगमै चुक*-वि०किंचित् ।। -घन०।
चुहट*-स्त्री० कसक-'तेरे नैन-सुभट चुहट-चोट लागें वीर' घियरा*-पु० घी।
-धन० । घुमेरी*-स्त्री० बेसुध होनेकी स्थिति, बेहोशी-'निसि-चौस | चूँटना -अ० क्रि० चींटीकी तरह चिपक जाना। घुमेरिनि भौरि परयौ'-घन ।
चेजारा*-पु० चुनाईका काम करनेवाला, राज-कोई घुरना*-अ० क्रि० कसना-'धुरि आसकी पास उसास- चेजारा चिणि गया मिल्या न दूजी बार'-साखी। गरें जु परी-धन।
चेतक-वि० जादूभरा-'घात लै अनूठी भरै चेतक घृठन*-अ० घुटनोंके बल ।
चितौन-मूठी-धन। घूमरा*-वि० नशीला, मदयुक्त-'केसरि खौरि घूमरे नैना | चाँच-स्त्री० दे० मूलमें । मु० (दो-दो) चौंच होनाबिथुरी अलक बदन रँग भीनौ'-धन।
कहा सुनी होना। घटी -स्त्री० चना आदिका डोंडा जिसके भीतर दाना चोम*-पु० जोम, घमंड । रहता है, देंढी-'खेतके चने हरी-पीली घंटियोंसे लद | चोरबजारिया-पु० चोरबाजारीद्वारा रुपया कमानेवाला। गये'-अमर।
चौखट -पु० देहयष्टि, शरीरका ढाँचा-'आपने भी क्या दिलकश चौखटा पाया है।'
चौखाना -पु० चौखूटे खानोंवाला कपड़ा। चंपना*-स० कि० दबाना, चाँपना, चढ़ बैठना । चौचंद-पु. रसकेलि, क्रीड़ा, कौतुक-'कै रस चाँचरि चकचोढ़ा*-पु० चकाचौंध ।
चौधंदमै छतियापर छैल नखच्छत छाए'-घन० दे० चञ्चर*-पु० चाँचर, होलीके समय गाया जानेवाला | मूलमें। गीत।
चौडोल*-पु. पालकी; दे० मूल में । चच्छ-पु०, चच्छि -स्त्री० चक्षु, आँख ।
चौमुखी-वि० चारों ओर होनेवाला, जानेवाला (-प्रतिभा, चड़ाका-पु० चटककर टूटनेका शब्द ।
-विकास)।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016