Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited
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९९१
छंद-ॉपना जटना*-सकि० जुड़ जाना-'करौस ज्यौं चित चरन
जटै'-धन। छंद*-पु० उपाय-'फंदकी मृगीलौ छंद छूटिबेको नेकौ
जन-जीवन-पु० [सं०] जनताका जीवन, सर्वसाधारणके नाहिं'-घन।
रहन-सहनका ढंग। छकिहारी*-स्त्री० छाक ले जानेवाली।
जनसेवा-आयोग-पु० (पब्लिक सर्विस कमीशन) दे० छकाही-वि० स्त्री० छका देनेवाली; संतुष्ट; मस्त कर
'लोकसेवा आयोग। देनेवाली-'प्यार सों छकौ ही ढरको ही मृदु बानि-बस'
जमार-पु० यमद्वार। -घन।
जरा-मना-अ० थोड़ा-बहुत । छग्गर*-पु० सग्गड़, शकट ।
जरूला*-वि० गभुआरे केशवाला; जटुलयुक्त, लच्छनवाला। छपका-पु० ठप्पेका छापा हुआ बड़ा फूल आदि; बड़ा.
जलधरा-पु० पानीके घड़े रखनेका स्थान । सा धब्बा ।
जलतरोई, जलतुरई-स्त्री० मछली (साधुओंकी भाषा)। छरद*-स्त्री० छर्दि, वमन-'जबतें अक्रूर ले गये मधुपुरी
जलबम-पु० (डेप्थचार्ज) दे० 'जलप्रस्फोट' । भई बिरह तन बाय छरद'-सूर ।
जलवायु-पु० [सं०] (क्लाइमेट) किसी स्थानकी गमी, जाड़ा, छराय*-पु० दे० 'छलावा' ।
वर्षा आदि सूचित करनेवाली वह प्राकृतिक स्थिति जिसका छलमलना-अ० क्रि० छलकना-'बंसीधुनि घनघोर
प्रभाव वहाँकी आबादी तथा वनस्पति आदिपर पड़ता है, रूपजल छलमलै'-घन।
आबहवा। छाँदा-पु० परोसा दे० मूलमें ।
जलावतरण-पु० [सं०] (लांचिंग) दे० 'पोतसंतरण' । छाती-स्त्री० देखो मूलमें । मु० -का काँटा-पु० हमेशा
जसु*-स्त्री० यशोदा। खटकने या दुःख देनेवाली चीज ।
जसो*-स्त्री० यशोदा। छानी-वि० स्त्री० छन्न, छिपी हुई-'छानी बात उघाडै
जिंद-स्त्री० जिंदगी-'जिंद असाडी ज्यारी है'-धन। छै'-घन।
जिमींदारी-पु० दे० 'जमींदार'। छायापात्र-पु० [सं०] घी या तेलसे भरी हुई वह कटोरी
जिलाधीश-पु० दे० 'जिला मजिस्ट्रेट'। आदि जिसमें अपने शरीरकी छाया देखी जाती है (अरिष्ट
जिलापालिका-स्त्री० (डिस्ट्रिक्ट बोर्ड) दे० 'जिलाबोर्ड'। निवारणार्थ)।
जिवड़ा*-पु० हृदय (मीरा)। छायावान-पु० सायबान (अहिल्या०)।
जिवारी*-वि० स्त्री०जिलानेवाली-'आयी है दिवारी चीते छिछ-वि० ठूछा दे० मूलमें ।
काजनि जिवारी प्यारी'-धन । छिकना-अ० कि० रुकना, छेका जाना-'रूप अलबेली सु
जिवावन -वि०जिलानेवाला । नवेली एरी तेरी आँखें ताकि छाकि मार हुरिहाई न कहूँ
जी-हजूरी-स्त्री. 'जी हुजूर, जी-हुजूर' कहते रहनेका छिकै'-घन।
भाव, खुशामद । छित*-वि० सित, श्वेत ।
जं बश-स्त्री० गति, हरकत, हिलना । छियना*-स० क्रि० छूना-'देखि जियो, न छियौ धन
जुग्गिनी*-स्त्री० योगिनीपुरी, दिल्ली। आनँद'।
जुलपित्ती-स्त्री० एक रोग जिसमें शरीर पर लाल-लाल छीजना*-स० क्रि० छूना-'आनँद घन रसरासि पायकै
चकत्ते निकल आते हैं, दे० 'जुड़पित्ती'। क्यों जग छीलर छीजै । अ० क्रि० दे० मूल में ।
जुब्वन-पु० यौवन-'दिन दिन अवद्धि जुम्वन घटय, छुटौती-स्त्री० छुड़ाने, रिहा करानेका कार्य या उसके
कंत बसंत न गम करहु'-रासो। बदले लिया जानेवाला धन,-'तब छोड़ा जब घरसे छुटौती.
जुसाँदा -पु० दे० 'जोशाँदा' (काटा)। के पैसे मँगवाकर उन्हें दिये'-अहिल्या० दे० मूलमें ।
जूरा*-स्त्री० जरा, वृद्धावस्था । Jछना -पु. बाहर निकला हुआ दरी आदिका लंबा
जूपी-पु० यशस्तंभ(यूप)से बँधा हुआ पशु, बलिपशु । रेशा, फुचढ़ा।
जूरना -अ० कि० जुरना, उपलब्ध होना। छेकना-स० कि० दे० 'छेकना'।
ज़ुभकास्त्र-पु. [सं०] जंभक नामक अरू जिसका प्रयोग छेवला -पु० पलाशका पेड़, जिसके पत्तोंसे पत्तल और
करनेसे शत्रुको अँभाई आने लगती है, वह शिथिल पड़ दोने बनाये जाते हैं।
जाता है। छेहरा-पु० विरह-'कहो न परत कछु रयौ न परत है जोगिनी -खी० सहारा लेनेकी लकड़ी, ठकोरी। सह्यौ न परत छिन छेहरा'-धन ।
जीरा-स्त्री० जरा। छोति -स्त्री० स्पर्श।
ज्यारा*-वि० जिलानेवाला। [स्त्री० 'ज्यारी']:-'भान
की दुलारी धन आनँद जीवन-ज्यारी'-घन। जंत*-पु० जंतु, जीव, व्यक्ति ।
ज्यौर-पु० जी, जान-'बूड़त ज्यौ घन आनंद सोचि'जंबूनद-पु० दे० 'जांबूनद' (सोना)।
घन । अ० दे० मलमें। जखीरा-[अ०] पेड़-पौधे या बीज मिलनेका स्थान दे०
अपना-अ० कि० दे० 'झपना दे० मूलमें। ३२-ग
मूलमें।
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