Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited
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भाकाशवाणी-उबटा भाकाशवाणी-स्त्री० [सं०] रेडियो द्वारा प्रसारित वाणी। इत्यूँ-१० यहाँ । -केंद्र-पु. वह स्थान जहाँसे रेडियो द्वारा वार्ता, इमरतीचाल, इमरतीदार-वि० इमरतीके ढंगकी बनावटसमाचार, संगीत आदि प्रसारित किया जाय।
वाला। आगजनी-स्त्री० उपद्रवकारियों द्वारा घर, दुकान आदिमें आग लगा देनेका कार्य ।
ईक्ष्यवाचक-पु० [सं०] (प्रफरीडर) दे० 'शोध्य शोधक'। आगपेटी-स्त्री० दियासलाईकी डिबिया । आगी*-वि० अग्रगण्य, बढ़ा हुआ-'जान कहाय अजाननि |
ईश्वरीय-वि० [सं०] ईश्वर द्वारा किया गया, दिया गया आगो'-घन।
या भेजा गया दे० मूलमें । आजना*-स० कि० बिछाना-‘पदकमय मंडल मनोहर मृदुल आसन आजि'-घन।
उकताहट-स्त्री० अधीरता, जल्दबाजी-'घर जानेकी आदौ*-अ० बीचमें।
उकताइटमें थे'-अमर । आत्मतृप्त-वि० [सं०] जो अपने आपमें संतुष्ट हो। आत्मतृप्ति-स्त्री० [सं०] अपनी अंतरात्माका संतोष,
| उकलाना*-अ० क्रि० अकुलाना, व्याकुल होना-'आवण
कह गये अजहुँ न आये जिवड़ो अति उकलावै'-मीरा । आत्मसतोष। आत्मसंतोष-पु० [सं०] आत्मतृप्ति, आत्मतुष्टि ।
उखनींद*-स्त्री० उखडी, उचटी नींद ।
उगचना*-अ० कि० बढ़ना। आदित*-पु० आदित्य, सूर्य । आनबान-स्त्री० प्रतिष्ठा, मर्यादा; दे०मूल में ।
उग्गार*-पु० उद्गार, वमन विचार या भावकी अभिआपचारना-अ०कि. मनमानी करना-'कै बिसासी |
व्यक्ति। आपवारयौ'-घन।
उझिल*-स्त्री० उमड़ाव-'रूपकी उझिल आछे आननपै आव्रत*-पु० दे० 'आवर्त'।
नयी नयी'-धन। आमक-पु. वह श्मशान जहाँ मृत व्यक्तियोंके शरीर
उड़नतश्तरी-स्त्री०, उड़नथाल-पु० उड़नेवाली तश्तरी कौओं, गिद्धा आदिके खानेके लिए यों ही फेंक दिये
जैमा एक आधुनिक युद्धोपकरण । जाते हैं।
उडीकना*-स० क्रि० प्रतीक्षा करना। आमोदयात्रा-स्त्री० [सं०] (ट्रिप) आनंदके लिए, मन
उतू*-पु. बेलबूटा निकालनेका औजार, बेलबूटा बुनावट । बहलानेके लिए की गयो छोटी सी यात्रा ।
उत्कर्णता-स्त्री० [सं०] सुननेकी उत्सुकता-'वाक्य सुननेकी आरति -स्त्री० लालसा-'मोहन सौह न जोहनकी लगियै
हुई उत्कर्णता'-साकेत। रहै आँखिनके उर आरति'-घन ।
उत्तमंग*-पु० उत्तमांग, सिर । आतिनाशन-पु. [सं०] क्लेश दूर करना, कष्ट-निवारण ।
उत्तरप्रदेश-पु० [सं०] दिल्ली पंजाब और बिहारके बीचका वि० कटनिवारक।
प्रदेश जिसे ब्रिटिश शासनकाल में संयुक्तप्रांत कहते थे।
उथराई*-स्त्री० उठान-'नैननि बोरति रूपके भौर अचंभे भालमपनाह-पु० जहाँपनाह, बादशाह आदिका
भरी छतिया उथराई'-घन। संबोधन । आवरा-पु. आवरण, खोल, गिलाफ; ढकनेवाली
उथराना*-अ० कि० किंचित् उठना, उन्नत होना। चादर /* वि. शिथिल,दीन, व्याकुल । [स्त्री० 'आवरी'।]
| उदियाना-अ० क्रि० व्याकुल होना, परेशान होना, -'मोहमैं आवरी है बुधि बावरी'-घन ।
थक जाना। आवर्तनी-स्त्री० दोहरानेकी क्रिया।।
उद्पात्र*-पु० उदरपात्रा वह व्यक्ति जिसके पास उदरके आवस -स्त्री० ऊमस, औंस (भाप ?)।
सिवा और कोई बरतन न हो। भासिध्य-पु० आशीष, आशीर्वाद ।
उनचालीस-+-वि०, पु० दे० 'उनतालीस' । आसेतुहिमाचल-वि० [सं०] सेतुबंध रामेश्वरसे हिमा
उनतालीस-वि० एक कम चालीस । पु० ३९की संख्या।
उनमनी*-स्त्री० दे० 'उन्मनी'। लयतक विस्तीर्ण (भारत, राज्य)। आहि*-10 क्रि० है-'जानेको आहि बसै केहि ग्रामा'
उना -स्त्री० दे० 'उन्हारी'।
उन्हारी -स्त्री० चैतमें तैयार होनेवाली फसल, चैती, -सुदामा।
रबी (बुदेल०)।
उपदेष्टा(ष्ट्र)-पु० [सं०] दे० 'उपदेशक' । इंद्रधा*-स्त्री० इंद्रिय ।
उपनेत*-वि० उत्पन्न-'कीनी नेम धरम-कहानी उपनेत इंसान-पु० दे० 'इनसान' ।
है'-घन। इकबाली गवाह-पु० अपराधि-साक्षी या राज-साक्षी। उपासी-वि० उपासक । इकसार*-अ० समान ढंगसे ।
उबटबटा*-पु० उद्बम, ऊबड़खाबड़ रास्ता गलत रास्ता, इकोस*-अ० अकेले, एकांतमें ।
कुपंथ । इग्यारी*-स्त्री० अगियारी; अग्न्याधान; आरती। उबटा-+ पु० रास्तेमें उभड़े हुए छोटे पत्थरसे लगनेवाली इछु-वि० इच्छुक ।
पाँवकी चोट, ठोकर धक्का, आषात ।
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