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स्वयम्-स्वर्ग वरणकी सभा या उत्सव । -वर-विवाह-पु० स्वयंवरकी स्वरतत्त्व । -वेधी(धिन)-पु० 'शब्दवेधी'।-शास्त्रविधिसे होनेवाला विवाह, स्मृतियों में जायज माने हुए पु० दे० 'स्वरविज्ञान' । -शून्य-वि० बेसुरा।-संक्रमआठ प्रकारके न्याहोंमेंसे एक । -वरण-पु० पतिका पु० सुरोंके उतार-चढ़ावका क्रम (संगीत)। -संगतिचुनाव । -वरयित्री-स्त्री० स्वयं पतिका चुनाव करने स्त्री० सुरोंका मेल । -संदर्भ-पु० दे० 'स्वरसंक्रम' । वाली कन्या । -वरा-स्त्री० पतिका स्वयं वरण, चुनाव | -संधि-स्त्री० स्वरवर्णों या स्वरांत और स्वरादि पदोंमें करनेवाली कन्या, पतिवरा । -वश-वि० स्वाधीन । होनेवाली संधि । -संपद-स्त्री. स्वरोंका मेल, सुर -विक्रीत-वि. जिसने खुद अपनेको बेचा हो। (संगीत)। -संपन्न-वि० सुरीला, जिसमें स्वरोंका मेल -विलीन-वि० जो आप ही आप (दूसरेमें) लीन हो - हो। -सप्तक-पु० संगीतके सात सुरोंका समूह । गया हो। -सिद्ध-वि० जिसके लिए प्रमाणकी आव- -साधन-पु० विभिन्न सप्तकोंके स्वरोंको ठीक-ठीक श्यकता न हो; जो स्वयं अपने में पूर्ण हो (लोक)। निकालनेका अभ्यास करना। मु०-उतरना-स्वरका -सिद्धि-स्त्री० (एक्शम) ऐसी सरल बात जिसका सच | धीमा पड़ना। -चढ़ाना-स्वर ऊँचा करना। -निकाहोना बिना किसी प्रमाणके ही मानना पड़े। -सेवक- लना-स्वर उत्पन्न करना। -भरना-एक ही स्वरको पु० (वालंटियर) किसी तरहकी सामाजिक सेवा या ऐसा देरतक निकालना; एक ही स्वर बजाकर बजानेवालेके ही अन्य कार्य स्वेच्छासे, बिना वेतन लिये करनेवाला स्वरकी पूर्ति करना। -मिलाना-किसीके स्वरके अनुव्यक्ति । -सेविका-स्त्री० स्त्री स्वयंसेवक ।
सार स्वर निकालना। -साधना-सप्तकके स्वरोंका स्वयम्-अ० [सं०] खुद, आप, अपने आप, अपने तई, अभ्यास करना। स्वतः; अकेले। -अर्जित-वि० खुद उपार्जित किया| स्वरग*-पु० दे० 'स्वर्ग'। हुआ (धन)। -आगत-वि० आपसे आप आया हुआ; स्वरांत-वि० [सं०] स्वरसे अंत होनेवाला । बिना कहे किसी बातमें दखल देनेवाला। -उद्घाटित-स्वरांतर-पु० [सं०] दो स्वरोंके उच्चारणके बीचका विराम। वि० जो आप ही आप खुल गया हो (दरवाजा)। -उप-स्वरांश-पु० [सं०] आधा या चौथाई स्वर (संगीत); स्थित-वि० जो आप ही, अपनी इच्छासे आया हो। सप्तमांश । -उपागत-वि० स्वेच्छासे आया हुआ। -एव-अ० स्वरित-वि० [सं०] स्वरयुक्त ध्वनित; उच्चरित। पु० स्वयं ही, अपने आप।
उदात्त-अनुदात्तके बीचका, मध्यम स्वर । स्वर-पु० [सं०] आवाज; कंठध्वनि; वह वर्ण जिसका पूरा स्वरोदय-पु० [सं०] स्वरका उदय, उत्पत्ति श्वासभेदसे उच्चारण अन्य वर्णकी सहायताके बिना हो सके (व्या०); शुभाशुभ फल जाननेकी विद्या।
सात सुरों-षड्ज, ऋषभ आदिमेंसे कोई; श्वासः स्वरोपघात-पु० [सं०] स्वरभंग । सातकी संख्या उच्चारणमें स्पंदनकी मात्रा (उदात्त, स्वर-पु०[सं०] स्वर्ग; आकाशा-आपगा-स्त्री० स्वर्गगा। अनुदात्त और स्वरित); खर्राटा; * स्वर, आकाशा -गंगा-स्त्री० गंगाकी स्वर्ग में बहनेवाली धारा, मंदाविष्णु । -कंप-पु० स्वरका हिलना। -कर-वि० | किनी। -ग-वि०, पु० दे० क्रममें । -गणिका-स्त्री० आवाजको खोलने, सुरीली बनानेवाला, स्वर उत्पन्न | अप्सरा । -गति-स्त्री०,-गमन-पु० मृत्यु, स्वर्ग करनेवाला । -क्षय-पु० स्वरकी हानि । -ग्राम-पु० जाना। -गा-स्त्री० दे० 'स्वगंगा'। -धुनी,-नदीसंगीतके सातों स्वरोंका क्रम, स्वर-सप्तक, सरगम । स्त्री० मंदाकिनी। -धेनु-स्त्री० कामधेनु । -नगरी-च्छिद्र-पु० बाँसुरीका स्वरवाला छेद । -नादी- सो. अमरावती। -पति-पु० इंद्र। -मणि-पु. (दिन)-पु० मुहँ से फूंककर बजानेका बाजा । सूर्य। -योषित्-स्त्री० अप्सरा । -लोक-पु० स्वर्ग; -पात-पु० शब्दके उच्चारणमें किसी अक्षरपर कुछ रुक मेरु देवता ।-वधू-स्त्री० अप्सरा । -वाहिनी-स्त्री० जाना (एक्सेंट)। -प्रधान-वि० (राग) जिसमें स्वरकी मंदाकिनी। -वेश्या-स्त्री० अप्सरा । -वैद्य-पु० ही प्रधानता हो, तालकी नहीं। -बद्ध-वि० ताल- भश्विनीकुमार। स्वर में बँधा हुआ (गाना)। -भंग-पु० गले या आवाज- | स्वर्ग-वि० [सं०] देवलोक जानेवाला। पु० हिंदुओंके का बैठ जाना; गलेका एक रोग। -भंगी(गिन)- माने हुए ऊपरके सात लोकोंमेंसे तीसरा जिसका विस्तार .वि. स्वरभंग रोगसे पीड़ित । -भेद-पु० स्वरभंग; सूर्यलोकसे ध्र वलोकतक है और जहाँ पुण्य कर्म करने
आवाजका बैठ जाना; उच्चारणमें लाया जानेवाला अंतर वाले देह-त्यागके अनंतर जाकर दुःखलेशरहित सुखका संगीतके स्वरका अंतर । -मात्रा-स्त्री० उच्चारणकी भोग करते हैं, देवलोक; अमरावती; अतिसुंदर, सुखद, मात्रा। -योग-पु० शब्द, ध्वनि । -लहरी-स्त्री० स्वर्गकी समता करनेवाला स्थान; आकाश (हिं०);* स्वरोंकी लहर, तरंग। -लिपि-स्त्री०संगीतके स्वरोको ईश्वर । -काम-वि० स्वर्गकी अभिलाषा करनेवाला । लिखनेकी लिपि या रीति, रागविशेषमें प्रयुक्त स्वर, ताल, -गंगा-स्त्री० मंदाकिनी ।-गत-वि० स्वर्ग गया हुआ, लय, मात्रा इत्यादि बतानेवाले चिह्नोंका समूह; ऐसे मृत ।-गति-स्त्री०,-गमन-पु० स्वर्गकी यात्रा करना, चिह्नोंकी सहायतासे प्रस्तुत पाठ। -वाही(हिन्)- मरण । -गामी(मिन्)-वि० स्वर्ग गमन करनेवाला। वि० (बाजा) जो केवल स्वर निकाल सके, ताल आदि | -गिरि-पु० मेरु पर्वत । -च्युत-वि० स्वर्गसे गिरा नहीं । -विकार-पु० आवाजका बिगड़ जाना। हुआ। -जित्-वि० स्वर्गको जीतनेवाला । -जीवी-विज्ञान-पु० स्वरोंका विवेचन करनेवाला विज्ञान, | (विन्)-वि० स्वर्गमें रहनेवाला । -तरंगिणी-त्रा०
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