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स्रोनित-स्व स्रोनित*-पु० दे० 'शोणित' ।
पक्षका व्यक्ति, मित्र; अपना मत ।-पक्षत्यागी(गिन्)स्लीपर-पु० [अ० 'स्लिपर"] एड़ीकी ओर खुली हुई जूती; वि० (रेनीगेड) अपने पूर्व-विचारों या सिद्धांतोंका, अपने लकड़ीका चौकोर लंबा टुकड़ा (जो रेलकी पटरियोंके नीचे पक्षवालोंका, परित्याग कर देनेवाला ।-प्रकाश-वि० जौ बिछाते हैं)।
अपने आप स्पष्ट हो; स्वयं प्रकाशित ।-बंधु-पु० अपना स्लेट-स्त्री० [अं॰] एक तरहके काले पत्थरकी चौकोर संबंधी या मित्र । -भट-पु. वह जो स्वयं अपनी रक्षा पटरी जो लिखनेके काम आती है।
करता हो। -भाउ*-पु० स्वभाव, प्रकृति । -भावस्व-पु० [सं०] आत्मीय जन, संबंधी; आत्मा विष्णुधन, पु. अपनी अवस्था; सहज प्रकृति । -भावज,संपत्ति । वि० आत्मीय, अपना; सहजात, स्वाभाविक । भावजनित-वि० सहज, प्राकृतिक ।-भावतः(तस)-गत-वि० आत्मीय; अपने प्रति कथित । अ० आप अ० स्वभावसे ही, प्रकृतितः। -भावसिद्ध-वि० सहज, ही आप (कहना)। -गत कथन-पु० किसी पात्रका प्राकृतिक । -भावोक्ति-स्त्री० दे० क्रममें। -भू-वि० बोलकर अपना विचार इस प्रकार व्यक्त करना जैसे दूसरे आप ही आप उत्पन्न होनेवाला । पु० ब्रह्मा, विष्णु, शिव । उसे सुनते न हों।-गृह-पु० अपना घर ।-गृहस्मारी- स्त्री० स्वदेश | -रस-पु० किसीका अपना (अमिश्रित) (रिन्)-वि० (होमसिक) जिसे बाहर जानेपर बार-बार रस पत्रादिका पीसकर निकाला हुआ रस, प्राकृतिक अपने घरका स्मरण आये, घरसे दूर जानेपर जिसे दुःख- स्वाद तैलीय पदार्थ सिलपर पीसनेपर लगी हुई तरौंछ; का अनुभव हो ।-चालित तोप-स्त्री० [हिं०](ऑटोमैटिक अपनी मनोवृत्ति अपने लोगोंके प्रति होनेवाली भावना। गन) बिना किसी चालकके, स्वतः चलनेवाली तोप । | वि० रुचिके अनुकूल । -राजी-वि० [हिं०] स्वराज्यके -च्छंद-पु० अपनी इच्छा या पसंद । वि०अपनी इच्छाके
लिए आंदोलन करनेवाला ।-राज्य-पु० स्वाधीन राज्य, अनुसार चलनेवाला, अनियंत्रित, स्वाधीन; आपसे जहाँके शासक वहींके लोग हों; एक साम ।-राज्यभोगीआप उगा हुआ, जंगली । -च्छंद-चर,-च्छंद-चारी (गिन)-वि० जिसे स्वराज्य या आत्मशासन प्राप्त हो। (रिन्)-वि. अपनी इच्छासे चलनेवाला, आजाद । -राट् (ज)-वि० जो स्वयं प्रकाशित हो। पु० ब्रह्मा -च्छंद-चारिणी-स्त्री० वेश्या । -जन-पु० आत्मीय विष्णु, सूर्यकी सात रश्मियोंमेंसे एक ऐसे राज्यका राजा जन संबंधी । -जन पक्षपात-पु० (नेपाटिज्म) (संरक्षण जहाँ स्वराज्य हो। -राष्ट्र-पु० अपना राज्य; एक जनआदि देने में) अपने संबंधियों, मित्रों आदिके प्रति पक्षपात | पद। -राष्ट्रमंत्री(त्रिन)-पु० देशके आंतरिक शासनकरना। -जनी-स्त्री० सखी सहेली । -जन्मा- संबंधी कार्योंकी देख-भाल करनेवाला । -राष्ट्रसदस्य(न्मन्)-वि० जो आप ही आप उत्पन्न हुआ हो।। पु० (शासनपरिषद्का) गृहसदस्य । -रुचि-स्त्री. अपनी -जा-स्त्री० पुत्री। -जात-वि. अपनेसे उत्पन्न । रुचि या पसंद । वि. अपनी रुचिसे चलनेवाला । -रूप पु० पुत्र । -जाति-स्त्री० अपनी जाति या वर्ग। वि. -पु० अपनी आकृति अपनी विशेषता, स्वभाव, आत्मा, अपने वर्गका। -जाति-द्विद ()-पु० कुत्ता । विशेष उद्देश्य प्रकार; मूर्ति; चित्र । अ० (समासांतमें) -जातीय,-जात्य-वि० अपनी जाति या वर्गका । तौरपर । वि० अपनी विशेषतासे युक्त; समान, तुझ्या -जित-वि. आत्मनिग्रही, जितेंद्रिय । -तंत्र-वि. सुंदर, मनोहर । -रूपज्ञ-वि० तत्वशानी, आत्मा-परस्वाधीन, आजाद; बालिग। -तंत्रता-स्त्री० स्वाधीनता, मात्माका रूप समझनेवाला ।-रूपप्रतिष्ठा-स्त्री० अपनी आजादी।-तंत्र पत्रकार-पु० (फ्री लांस जर्नलिस्ट) वह विशेषतासे युक्त होना । -रूपमान*-वि० दे० 'स्वरूपपत्रकार जो किसी एक ही पत्र या संवादसंस्था आदिका वान्' । -रूपवान् (वत्)-वि० सुंदर । -लक्षण-पु. वेतन-भोगी कर्मचारी न होकर स्वतंत्र रूपसे लेख लिखकर विशेषता, विशेष गुण । -लिखित-वि. अपना लिखा या संवाद भेजकर पारिश्रमिक पाता हो और उसीसे निर्वाह हुआ। -वंश्य--वि० अपने परिवारका ।-वर्गीय-वि० करता हो।-दार-स्त्री०अपनी पत्नी।-दारगामी(मिन)- अपने वर्गका। -वश-वि० आत्मनिग्रही, स्वाधीन । वि० केवल अपनी पत्नीसे संबंध रखनेवाला । -देश- -वश्य-वि० अपने ही वशमें रहनेवाला ।-वासिनीपु० जन्मभूमि, मातृभूमि, वतन ।-देश-निस्सारण-पु० स्त्री० पिताके घर रहनेवाली कन्या या विवाहिता स्त्री। - (एक्सपैट्रियेशन) किसीको स्वदेशसे बाहर भेज देना।। -विकत्थन-वि० डींग मारनेवाला । -विग्रह-पु० -देश-प्रतिप्रेषण-पु० (रिपैट्रियेशन) किसीको जबरन् अपना शरीर । -विधेय-वि. जो अपने करनेका हो। उसके देश वापस भेज देना। -देश-प्रेम-पु० जन्म- -विनाश-पु० अपना नाश, आत्महत्या। -विवेकभूमिका प्रेम । -देशस्मारी(रिन)-वि० घरके लिए | पु० उचित-अनुचित समझनेकी अपनी शक्ति । -वृत्तिउत्सुक, घरसे अधिक प्रेम रखनेवाला। -देशी-वि० | स्त्री० अपने जीवन-यापनका ढंग; आत्मनिर्भरता। वि० [हिं०] दे० स्वदेशीय'। -देशीय-वि. अपने देशसे आत्मनिर्भर, स्वावलंबी। -श्लाघा-स्त्री० आत्मप्रशंसा । संबंध रखनेवाला; अपने देशका स्वदेशमें बना। -धर्म -संभूत-वि० आत्मसंभव । -संवेदन-पु. अपना -पु० अपना कर्तव्य; अपनी विशेषता । -धर्म-च्युत- प्राप्त किया हुआ शान । -संवेद्य-वि०जिसका शान वि. अपने अधिकारसे वंचित अपने कर्तव्यका पालन न केवल अपनेको हो सके।-सचिव-पु०(प्राइवेट सेक्रेटरी) करनेवाला । -नामधन्य-वि० जो अपने नामके कारण | दे० 'निजसचिव' ।-स्थ-वि० अपने में स्थित; जो अपनी धन्य हो। -नामा(मन)-वि. जो अपने नामसे स्वाभाविक अवस्था में हो, तंदुरुस्त, नीरोग; स्थिरचित्त; विख्यात हो। -पक्ष-पु. अपना पक्ष या दल; अपने संतुष्ट, सुखी; स्वाधीन आत्मनिर्भर । -स्थ चित्त-वि०
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