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संतरण-संदोह
७९६ हुआ; पिघला हुआ; कष्टग्रस्त, पीड़िता क्लांत ।
संद-पु० छेद, बिल; * दबाव । संतरण-वि० [सं०] पार करनेवाला; उद्धारक । पु० पार | संदर्भ-पु० [सं०] एक साथ बाधना, व्यवस्थित करना। करनेकी क्रिया; (लांचिंग) तैयार हो जानेपर किसी पोत | साहित्यिक रचना, निबंध आदि; संबंध-निर्वाह; लेखआदिको पहली बार पानीमें उतारना, तैराना। -शील | पुस्तक आदिमें आया हुआ हुआ प्रसंग जिसका उल्लेख हिमशिला-स्त्री० (आइसवर्ग) पानी में उतराती हुई बर्फकी हो; अर्थ-प्रकाशक ग्रंथ । -विरुद्ध-वि० जिसमें संबंधका चट्टान ।
निर्वाह न हुआ हो। संतरा-पु. एक तरहका मीठा नीबू , बड़ी नारंगी। संदर्शन-पु० [सं०] अच्छी तरह देखना; टकटकी लगाकर संतरी-पु० [अं० 'सेंट्री'] प्रहरी, पहरेदार द्वारपाल । देखना; परस्पर मिलन; पर्यवेक्षण, विचार । संतर्जन-पु० [सं०] धमकाना; डाँट-डपट करना। संदल-पु० [अ०] चंदन । -का बुरादा-चंदनका चूरा । संतान-स्त्री० [सं०] वंश; संतति, औलाद; शाखा- संदली-वि० [अ०] चंदनका; चंदनके रंगका। स्त्री० प्रशाखा । -कर्म(न्)-पु० संतानोत्पादन, प्रजनन । चौकी; ऊँची तिपाई जिसपर चढ़कर दीवार पर चूना -निग्रह-पु० दे० 'संतति निरोध'।
__ आदि करते हैं । पु० हलका पीला रंग। संताप-पु० [सं०] तेज गरमी अग्नि, कष्ट, पीड़ा; ग्लानि, | संदि*-स्त्री० मेल, संधि। पापादिसे उत्पन्न अनुताप । -कर-कारी(रिन्)- संदिग्ध-वि० [सं०] जिसमें संदेह हो, अनिश्चित; जो वि० कष्ट देनेवाला। -हर-हारक-वि० ताप दूर
खतरेसे खाली न हो (पोतादि); जिसपर संदेह हो। करनेवाला; आराम देनेवाला; सांत्वना देनेवाला ।
-जनसूची-स्त्री० (ब्लैक लिस्ट) दे० 'दुर्वृत्तसूची। संतापन-पु० [सं०] ताप देना, तप्त करना, जलाना; -बुद्धि,-मति-वि० शक्की, जो हर बालमें संदेह किया कष्ट देना; कामके पाँच बाणोंमेंसे एक।
करे। संतापना*-स० क्रि० पीड़ा, कष्ट देना ।
संदग्धिता, संदिग्धत्व-पु० [सं०] संदिग्ध होना; एक संतापित-वि० [सं०] तपाया हुआ, झुलसा हुआ; पीड़ित । | दोष जो वाक्यका अर्थ स्पष्ट न होनेपर माना जाता है। संती-* १० द्वारा + बदले में।
संदिग्धार्थ-वि० [सं०] जिसका अर्थ संदेहयुक्त हो। संतुलन-पु० [सं०] आपेक्षिक ताल बराबर होना या | संदीपक-वि० [सं०] उद्दीपक । रखना; दो देशों, पक्षोंका बल बराबर रखना या होना; संदीपन-पु० [सं०] उद्दीपन, कामदेवके पाँच बाणोंमेंसे आय तथा व्ययमें, आयात-निर्यातमें सामंजस्य रखना। | एक; एक ऋषि, कृष्णके गुरु । संतुलित-वि० [सं०] जिन (दो देशों, राशियों, वस्तुओं संदक-पु० [अ०] लकड़ी या लोहेका बकस जो कपड़े आदि) का भार, बल, फैलाव आदि बराबर रखा गया | आदि रखनेके काम आता है। वह लंबा बकस जिसमें हो, जिनमें संतुलन हो।
मुरदे दफन करने के लिए ले जाते हैं, ताबूत । संतुष्ट-वि० [सं०] जिसे संतोष हो गया हो; तप्तः से | संदूकचा-पु० छोटा संदूक । प्रसन्न राजी, रजामंद।
संदूकची-स्त्री० छोटा संदूकचा । संतुष्टि-स्त्री० [सं०] संतुष्ट होनेका भाव; तृप्ति, इच्छापति।। संदूकड़ी-स्त्री० छोटा संदूक । संतोख*-पु० दे० 'संतोष' ।
संदूख-पु० दे० 'संदूक' । संतोखी*-वि० दे० 'संतोषी' ।
| संदूर* -पु० दे० 'सिंदूर'। संतोष-पु० [सं०] जो मिले उसासे प्रसन्न रहनेका भाव; | संदेश-पु० [सं०] संवाद; आदेश; किसीके पास भेजवाया तृप्तिः प्रसन्नता।
गया महत्त्वपूर्ण आदेश या समाचार; एक मिठाई । - संतोषक-वि० [सं०] संतुष्ट करनेवाला प्रसन्न करनेवाला। वाहक-हर-हारक,-हारी( रिन् )-पु० संवादसंतोषण-पु० [सं०] संतुष्ट, प्रसन्न करनेकी क्रिया । वाहक । संतोषना*-सक्रि०संतुष्ट करना । अ०क्रि०संतुष्ट होना। | संदेशा-पु० संवाद, खबर । संतोषित-वि० [सं०] संतुष्ट, प्रसन्न किया हुआ * संतुष्ट । | संदेस-पु० दे० 'संदेश'। संतोषी(पिन्)-वि० [सं०] संतुष्ट रहनेवाला; सब संदेसा-पु० दे० 'संदेशा' । करनेवाला।
संदेह-पु० [सं०] शक, अनिश्चय; खतरा; एक अर्थासंत्यक्त-वि० [सं०] परित्यक्त;"से रहित, वंचित । लंकार, जहाँ किसी वस्तुके संबंध, साश्यके कारण, संत्यजन-पु० [सं०] परित्याग।
अन्य वस्तु होनेका संदेह हो और वह दूर न होकर बना संत्रस्त-वि० [सं०] बहुत डरा हुआ, भयसे काँपता हुआ। रहे। -वाद-पु० (स्केप्टिसिज्म) सत्यके संबंधमें कोई संत्रास-पु० [सं०] भय, आतंक; अहितकी संभावनासे स्थिर विश्वास या सिद्धांतपर न पहुँचनेकी स्थिति, प्रवृत्ति, उत्पन्न भय (सा०)।
संशयवाद ।-वादी (दिन)-वि० (स्केप्टिक) वस्तुतः सत्य संत्रासित-वि० [सं०] डरवाया हुआ ।
या तत्त्व क्या है, इस संबंध जो कोई निश्चय न कर संत्री-पु० दे० 'संतरी'।
सका हो, जिसके मनमें बराबर संदेह बना रहता हो संथा-स्त्री० पाठ, सबक ।
(ऐसा दार्शनिक); अविश्वासी, संशयात्मा। संदंश-पु० [सं०] सँड़सी चिमटी ।
संदेहात्मक-वि० [सं०] संदेहपूर्ण, संदिग्ध । संदंशिका-स्त्री० [सं०] सँड़सी; चिमटी ।
संदोह-पु० [सं०] दुइना, साथ दुइना; सारा दूध ( सारे
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