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सामान-सायर
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बेकारी और अभाव तथा चोर-डाकुओं आदिसे परित्राणकी सामोद-वि० [सं०] आनंदयुक्त, प्रसन्न, सुगंधित । व्यवस्था। .
सामोपचार, सामोपाय-पु० [सं०] नरम उपाय काममें सामान-पु० [फा०] असबाब, चीज-वस्तु; किसी कार्यके लाना। लिए आवश्यक, साधनरूप वस्तुएँ, सामग्री ।-(न)जंग- साम्मत्य-पु० [सं०] सहमति, सम्मत होनेका भाव । पु० युद्ध-सामग्री । -सफ़र-पु० यात्राके लिए आवश्यक साम्मुख्य-पु० [सं०] उपस्थिति, विद्यमानता; अनुग्रह । वस्तुएँ। मु०-करना-तैयारी करना, आवश्यक चीजें साम्य-पु० [सं०] साश्य, समानता; सामंजस्य; उदा. जुटाना ।-बनना,-होना-प्रबंध या तैयारी होना। । सीनता, निष्पक्षता; दृष्टिकोणकी एकरूपता । -तंत्र-पु० सामान्य-वि० [सं०] साधारण, मामूली; समान; औसत | साम्यवादके सिद्धांतानुसार चलनेवाली शासन-प्रणाली । दरजेका तुच्छ, अदना, महत्त्वहीन संपूर्ण, समग्र । पु० -वाद-पु० मार्क्स द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत जिसका सादृश्य, समानता; मानसिक साम्य; मध्यकी अवस्था । उद्देश्य ऐसे वर्गहीन समाजकी स्थापना है जिसमें संपत्तिसबमें पाया जानेवाला गुण या चिह्न; एक अर्थालंकार | पर समाजका समान अधिकार होगा और व्यक्तिसे -जहाँ दो या अधिक वस्तुओंका पृथक् अस्तित्व होते हुए शक्ति भर काम लेकर उसकी सारी आवश्यकताएँ पूर्ण भी एकरूपता, समानता आदिके कारण भेद न जान की जायेंगी। -वादी (दिन्)-वि० साम्यवादका सिद्धांत पड़े। -ज्ञान-पु० सामान्य बातोंका शान । -नायिका माननेवाला। -स्त्री० दे० 'सामान्यवनिता'। -भविष्यत्-पु० भवि-साम्यावस्था-स्त्री०, साम्यावस्थान-पु० [सं०] प्रकृतिके ध्यत् कालका एक भेद जिसमें भविष्य में होनेवाली क्रियाका तीनों गुणों-सत्त्व, रज और तम-की समावस्था । साधारण रूप रहता है। -भूत-पु० भूत कालका एक साम्राज्य-पु० [सं०] सार्वभौम सत्ता पूर्ण प्रभुता; आधिभेद जिसमें भूत कालकी क्रियाका साधारण रूप रहता है, पत्या प्राधान्य, बाहुल्या शासनाधीन बहुत बड़ा क्षेत्र कोई विशेषता नहीं होती। -लक्षण-पु. वह चिह्न जो जिसमें कई देश हों। -लक्ष्मी-स्त्री० साम्राज्यकी अधिजाति भरमें पाया जाय ।-वनिता-स्त्री० वेश्या ।-वर्त- ष्ठात्री देवी (तंत्र); साम्राज्यका वैभव । -वाद-पु० एक
न-पु० वर्तमान कालका एक भेद जिसमें क्रियाका राष्ट्रका दूसरेको अधिकारमें लाकर उसे अपने हितका वर्तमान कालमें होना दिखलाया जाता है। -विधि- साधन बनानेका सिद्धांत; (इंपीरियलिज्म) सैनिक विजय, स्त्री० आदेशका साधारण रूप जिसमें कोई विशेष बात, राजनीतिक छलबल अथवा आर्थिक आधिपत्य द्वारा अपवाद आदि न हो।
साम्राज्य स्थापित करनेकी प्रवृत्ति या नीति । -वादीसामान्यतः(तस)सामान्यतया-अ० [सं०] साधारणतः, (दिन)-वि० साम्राज्यवादका अनुयायी। मामूली तौरसे ।
| साम्राज्यांतर्गत अधिमान्यता-स्त्री० [सं०] (इंपीरियल सामासिक-वि० [सं०] सामूहिक संक्षिप्त समास-संबंधी। प्रेफरेंस) व्यापार-वाणिज्यके मामलेमें ब्रिटिश साम्राज्यके सामिष-वि० [सं०] मांसयुक्त ।
भीतरके देशोंको, अन्य देशोंकी तुलनामें, परस्पर कम सामी-* पु०दे०'स्वामी' ।स्त्री० छड़ी, औजार आदिकी आयात निर्यात-कर लगाकर, अधिमान्यता देनेकी नीति । रक्षाके लिए उसपर पहनाया जानेवाला लोहे, पीतल साम्हने-अ० दे० 'सामने' । आदिका छल्ला।
सायं-अ०[सं०] 'सायम्'का समासगत रूप ।-काल-पु० सामीप्य-पु० [सं०] निकटता, समीपता, पड़ोस ।
शामका वक्त । -कालिका-कालीन-वि० संध्याकालसामुझि*-स्त्री० दे० 'समझ'।
संबंधी। -गृह-वि० जहाँ संध्या हो वहीं घर बना लेने, सामुदायिक-वि० [सं०] समुदाय-संबंधी; सामूहिक । ठहर जानेवाला । -निवास-पु० सायंकालका विश्राम
-योजना-स्त्री० (काम्यूनिटी प्रोजेक्ट) कृषिसुधार, शिक्षा- गृह । -प्रातः(तस्)-अ० सुबह-शाम । -भोजनप्रसार, पथ-निर्माण, नल-कूपखनन आदिकी ऐसी योजना पु० ब्यालू । -संध्या-स्त्री० गोधूलि, मंद प्रकाश सायंजिसे देशके किसी भागका जनसमूह ही, मुख्य रूपसे, कालीन उपासना; वह देवी जिसकी उपासना संध्या कार्यान्वित करे।
समय की जाय। सामुद्र-वि० [सं०] समुद्र जन्य; समुद्र-संबंधी । पु० नाविका सायक-पु० [सं०] बाण; खड्गः पाँचकी संख्या (कामदेवके सामुद्रिक व्यापार करनेवाला; समुद्रलवण; समुद्र-फेन पाँच बाणोंसे); * सायंकाल । -पुंख-पु० बाणका पंखदेहचिह्नः नारियल । -ज्ञ-वि० दे० 'सामुद्रविद्'। वाला भाग। -बंधु-पु० चंद्रमा।-विद्-वि० देह चिह्नोंका ज्ञाता। सायत-स्त्री० दे० 'साइत' । सामुद्रक-पु० [सं०] समुद्रलवण, देहचिह्नोंके शुभाशुभ सायन-वि० [सं०] अयनांश अर्थात् क्रांतवृत्त और नाडीहोनेका विचार करनेवाला ग्रंथ या व्यक्ति ।
वृत्तोंके संपातसे युक्त (सूर्यकी स्थिति)। सामद्रिक-वि० [सं०] देहचिह-संबंधी; समुद्रजन्य । पु० सायबान-पु० [फा०] वह छप्पर या कपड़े आदिका परदा सामुद्रका वह विद्या जिसके सहारे इन चिह्नोंका ज्ञान प्राप्त जो धूप या वर्षासे बचावके लिए मकान या खीमेके आगे किया जाता है। नाविक ।
लगा लिया गया हो। सामुहाँ*-अ० सामने ।
सायम-वि० [अ०] रोजा रखनेवाला। सामुह *-अ० सामने।
सायम्-अ० [सं०] संध्याके समय, शामके वक्त । सामूहिक-वि० [सं०] समूह-संबंधी; समूहमें एकत्र । | सायर-*पु० सागर-'नैन नीर सब सायर भरे'-५०%3B
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