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संचारिका-संतप्त करना प्रयोगमें लाना ।
सँजोउ*-पु. संयोग तैयारी-'अबही बेगहिं करोसँजोऊ' संचारिका-स्त्री० [सं०] कुटनी: दूती।
-५०; सामग्री। संचारित-वि० [सं०] गतिमान् किया हुआ, चलाया हुआ; संजोग-पु० दे० 'संयोग'।
उकसाया हुआ, जिसे बढ़ावा दिया गया हो; संक्रमित संजोगिता-स्त्री० जयचंदकी कन्या जिसका पृथ्वीराजने किया हुआ (रोग)।
हरण किया था । संचारी(रिन्)-वि० [सं०] गतिशील, चल; भ्रमणकारी; | संजोगिनी*-स्त्री० दे० 'संयोगिनी' । एकसे दूसरे में संक्रमण करनेवाला, संक्रामक (रोग); प्रवेश संजोगी*-वि० दे० 'संयोगी'। पु० वह पुरुष जो अपनी करनेवाला; साथ आने, मिलनेवाला; अस्थिर । पु० एक प्रियाके साथ हो। प्रकारके भाव जो तैतीस होते हैं और स्थायी भावको पुष्ट | सँजोना-स. क्रि० सजाना एकत्र करना; संचित करना; कर विलीन हो जाते हैं, व्यभिचारी भाव (सा०)। पूरा करना। संचालक-पु० [सं०] संचालन करनेवाला, गति प्रदान | सँजोवना*-स० क्रि० दे० 'सँजोना' । करनेवाला; कारखाने आदिके ठीकसे जारी रहनेका | संजोवल*-वि० सजा हुआ; सन्नद्ध सैन्यादिविशिष्ट । प्रबंध करनेवाला।
संज्ञा-स्त्री० [सं०] बोध, ज्ञान; होश: प्रशा; संकेत, इंगित संचालन-पु० [सं०] चलाना, गति देना। -व्यय-पु० नाम; वह शब्द जो किसी व्यक्ति, वस्तु आदिका नाम (वर्किंग एक्सपेंसेज़) किसी कारखाने, संस्था, प्रमंडल हो (व्या०); गायत्री मंत्र; सूर्यकी स्त्री जो विश्वकर्माकी पुत्री आदिके चलानेका व्यय ।
थी। -करण-पु० नाम रखना। -पुत्री-स्त्री० यमुना। संचित-वि० [सं०] इकट्ठा किया हुआ, जमा किया हुआ, -सुत-पु० शनि । -हीन-वि० वेहोश ।। ढेर लगाया हुआ। -कर्म(न)-पु. पूर्वजन्मके वे कर्म | संज्ञात-वि० [सं०] अच्छी तरह जाना, समझा हुआ। जिनका फलभोग नहीं हुआ है। -कोष-पु० (प्रॉविडेंट संज्ञान-पु० [सं०] बोध, ज्ञान, सम्यक अनुभूति । . फंड) दे० 'भविष्यनिधि'।
संझला -वि० संध्या-संबंधी; मँझलेसे छोटा (भाई, पुत्र)। संचिति-स्त्री० [सं०] एकत्र करने, जमा करनेकी क्रिया । संझवाती-स्त्री० विवाहादिमें शामको गाया जानेवाला संचेय-वि० [सं०] संचय करने योग्य ।
गीत; शामको जलाया जानेवाला दीप । संजम*-पु० दे० 'संयम' ।
संझा* -स्त्री० संध्या। संजमी-वि० दे० 'संयमी' ।
सँझोखा*-पु. संध्याकाल । संजय-पु० [सं०] एक प्रकारका व्यूहा धृतराष्ट्रका एक
सँझाख*-अ० संध्याकालमें । सारथि जो उन्हें युद्धका समाचार सुनाया करता था।
संड-पु० पंड, साँड़ । -मुसंड-वि० मोटा-ताजा। संजात-वि० [सं०] उत्पन्न; व्यक्त; व्यतीत (समय आदि)। सँड़सा-पु० दो छोटे छड़ोंका बना हुआ एक कैंचीनुमा -कोप-पु० कद्ध । -कौतुक-वि० चकित । -निर्वेद औजार जो गरम चीजें आदि पकड़नेके काम आता है। वि० विरक्त।
सँड़सी-स्त्री० एक तरहका छोटा सँड़सा जिससे गरम संजाफ-पु० [फा०] हाशिया, गोट; एक तरहका कपड़ा।
बटलोई आदि पकड़कर उतारते हैं । जिसकी गोट लगाते हैं।
संडा-वि० मोटा-ताजा, मजबूत । संजानी-वि० [फा०]हाशियादार; जिसमें किनारी लगी हो। संडास-पु० कुएँ जैसा बना हुआ पाखाना जिसे मेहतर संजाब*-पु. एक तरहका घोड़ा।
साफ नहीं करता, मल जमा होनेपर सोडा आदि डाल संजीदगी-स्त्री० [फा०] संजीदा होना; गांभीर्य; समझ- देते है; ऊपरकी मंजिलपर इसी तरहका बना हुआ दारी, शिष्टता।
पाखाना जिसमें मल नीचे गिरता और मेहतरसे साफ संजीदा-वि० [फा०] तुला हुआ; गांभीर्ययुक्त शिष्ट, कराया जाता है। समझदार।
संडासी-स्त्री० सँड़सी (५०)। संजीवन-पु० [सं०] साथ रहना पुनर्जीवित करना; एक संत-पु० ['सत्'का प्रथमा बहुवचनांत रूप] साधु, धर्मात्मा, नरक । वि० जीवन शक्ति देनेवाला ।।
विरक्त, महात्मा; गृहास्थाश्रममें प्रवेश करनेवाला साधु । संजीवनी-स्त्री० [सं०] मृतको जीवित करनेवाली एक | -समागम-५० संतोंका सत्संग-स्थान-पु०साधुओंका कल्पित औषधि । वि० स्त्री० जीवन देनेवाली ।-विद्या- स्थान, मठ। स्त्री० मृत व्यक्तिको जिलानेकी एक कल्पित विद्या। संतत-* स्त्री० संतति, संतान । वि० [सं०] अविच्छिन्न संजीवित-वि० [सं०] पुनर्जीवित किया हुआ।
बराबर रहनेवाला । अ० हमेशा; लगातार, निरंतर । संजुक्ता-वि० दे० 'संयुक्त।
-ज्वर-पु० बराबर रहनेवाला ज्वर, विषम ज्वर । संजुग-पु० युद्ध, संग्राम ।
संतति-स्त्री० [सं०] फैलाव, विस्तार; नैरंतर्य; अविच्छिन्नता संजुत*-वि० मिला हुआ, सहित ।
कुल संतान । -निरोध-पु. प्राकृतिक (संयम आदि) सँजूत*-वि० तैयार, सन्नद्ध,-'होहु सँजूत बहुरि नहिं अथवा कृत्रिम उपायों द्वारा गर्भाधान न होने देना। अवना'- सावधान ।
संतपन-पु० [सं०] बहुत तपना तप्त करना; कष्ट देना, संजोइ*-अ० संग, साथमें । पू०क्रि० इकट्टा कर,जुटाकर। उत्पीड़न । सजोइल*-वि० इकट्ठा किया हुआ; सज्जित ।
संतप्त-वि० [सं०] तप्त, जलता हुआ; जला हुआ, झुलसा
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