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संसजन-संस्थापित
८०२ संसजन-पु० [सं०] (मोबिलाइजेशन) युद्ध के लिए संस्कार-पु० [सं०] सुधारना; शुद्धि, सफाई; धातुकी चीजें (सेनाका) पूर्णतः तैयार या शस्त्रास्त्रोंसे सज्जित किया जाना। माँजकर चमकाना; शब्दों, वाक्यों आदिकी शुद्धता; संसज्जित-वि० [सं०] ( मोविलाइज्ड ) युद्ध के लिए प्रस्तुत पवित्रीकरण, पापादिका प्रक्षालन करनेवाले यज्ञादि कृत्य या तैयार की गयी (सेना)।
द्विजातियोंके शास्त्रविहित कृत्य (जो मनुके अनुसार बारह संसत्, संसद्-स्त्री० [सं०] सभा; न्यायालय; न्याय, और कुछ लोगोंके अनुसार सोलह है); अंत्येष्टि क्रिया धर्मकी सभा; (पालिमेंट) किसी देश या राज्यकी जनता शुद्ध करनेवाला कोई कृत्य स्मरण-शक्ति; मनपर पड़ी हुई द्वारा चुने गये प्रतिनिधियोंकी वह सर्वोच्च (केंद्रीय) छाप; पूर्वजन्मके कृत्योंकी वासना; बाह्य जगत्-विषयक विभानसभा जिसका काम शासन-संबंधी कार्यों में सहायता
यता, कल्पना, भ्रांति-मूलक बिश्वास; धारणा । -कर्ता (1)देना, आयव्ययक स्वीकार करना, विधान बनाना, उनमें
पु० संस्कार करनेवाला ब्राह्मण । -ज-वि० संस्कारसे संशोधन करना आदि हो ( साधारणतया इसमें दो सदन उत्पन्न । -पूत-वि० संस्कार द्वारा विशुद्ध किया हुआ; होते हैं, जैसे ब्रिटेनमें कामंस सभा तथा सरदार सभा और शिक्षा आदिके द्वारा परिष्कृत । -रहित,-वर्जित-वि० भारतमें लोकसभा तथा राज्यसभा)।
दे० 'संस्कार हीन'। -हीन-वि० जिसके संस्कार न हुए संसय-पु० दे० 'संशय' ।
हों। पु० द्विजातिका वह व्यक्ति जिसका यज्ञोपवीत संस्कार संसरण-पु० [सं०] गमन, भ्रमण; जन्म और पुनर्जन्म, | न हुआ हो, व्रात्य । पार्थिव जीवन; राजमार्ग ।
संस्कारक-वि० [सं०] सुधारनेवाला; तैयार करनेवाला; संसर्ग-पु० [सं०] साथ रहनेसे होनेवाला संबंध; संपर्कः । शुद्ध करनेवाला मनपर छाप डालनेवाला । साथ मिलन; सहवासा वह विंदु जहाँ दो रेखाएँ, कटती हों। संस्कृत-वि० [सं०] सुधारा हुआ, परिष्कृत संस्कार द्वारा -ज-वि० संपर्कसे उत्पन्न । -दोष-पु० संगतिसे उत्पन्न
शुद्ध, पवित्र किया हुआ; सजाया हुआ। स्त्री. भारतीय बुराई ।
आर्योंकी प्राचीन साहित्यिक भाषा ( जो वैदिक भाषाके संसा-*पु० दे० 'संशय'; सँड़सा ।
बाद प्रयोगमें आयी थी)। संसार-पु० [सं०] संसृति, जन्म-मरण; जगत्, दुनिया | संस्कृति-स्त्री० [सं०] शुद्धि सुधार, परिष्कार निर्माण मायाजाल, लाविक प्रपचा मत्यलाका गृहस्था। -चक्र- सजावट, आचरण-गत परंपरा। पु० भवचक्र, संसृति । -बंधन-पु० सांसारिक बंधन । संस्खलित-वि० [सं०] गिरा हुआ; भूला, चूका हुआ। -यात्रा-स्त्री० संसार में रहना, जीवन बिताना; जिंदगी। संस्तवन-पु० [सं०] स्तुति करना; (कॉमेंडिंग) प्रशंसा -सुख-पु० भौतिक सुख ।
करनेका कार्य, किसी व्यक्तिको योग्य बताकर किसीके संसारी(रिन)-वि० [सं०] लौकिका भौतिक दुनिया- सामने उसका समर्थन करने या उसकी नियुक्ति आदिपर दार दुनियामें रहनेवाला; व्यवहार-कुशल । पु० संसारी| जोर देनेका कार्य । मायामें लिप्त जीव या व्यक्ति ।
संस्ताव-पु० [सं०] प्रशंसा, स्तुति सम्मिलित स्तुति-पाठा संसिक्त-वि० [सं०] तर किया हुआ, सींचा हुआ। यशमें स्तुति पाठकोंके रहनेका स्थान । -करना-अ० संसिद्ध-वि० [सं०] अच्छी तरह निष्पन्न किया हुआ | क्रि० (कॉमेंड) योग्य समझकर किसीके पक्षमें अनुकूल पककर तैयार (भोजन); उद्यत, तैयार संतुष्ट; चतुर, सम्मति देना या उसकी नियुक्ति आदिपर जोर देना। कुशल; जिसे सिद्धि प्राप्त हो गयी हो, मुक्त।
संस्ताव्य-वि० [सं०] (कॉमेंडेबिल) प्रशंसनीय । संसिद्धि-स्त्री० [सं०] कार्यका सम्यक् संपादन, सफलता; संस्था-स्त्री० [सं०] ठहरना, रहना; सभा समूह, मंडली; मोक्ष, अंतिम फल; निश्चित मत; पककर तैयार होना। स्थिति, अवस्था रहन-सहनका बँधा हुआ तरीका, रूढ़िा संसूचित-वि० [सं०] प्रकट किया हुआ दिखलाया हुआ; विधि, नियमः सदाचार धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक डाँटा-फटकारा हुआ; भली भाँति सूचित कराया हुआ। कार्योंकी दृष्टिसे स्थापित सभा या समिति; विशिष्ट सिद्धांतों, संसृति-स्त्री० [सं०] आवागमन; संसार ।
नियमोंके अनुसार संघटित समाज या मंडल; चिरकालसे संसृष्ट-वि० [सं०] सेहजात, एक साथ उत्पन्न (जैसे पशु- चली आनेवाली कोई सामाजिक परंपरा या प्रथा ( जैसे
शावक); मिला हुआ, संयुक्त मिश्रित अंतर्भूत, सम्मिलित। विवाह)। संसृष्टि-स्त्री० [सं०] साथ-साथ होनेवाली उत्पत्ति; संयोग, | संस्थागार-पु० [सं०] सभाभवन । मेल; मेल-जोल; एकत्रीकरण निर्माण, रचना साझेदारी; संस्थान-पु०[सं०) ठहरना, रहना, थितिः सत्ता, अस्तित्व, एक परिवार में रहना; राशि, समूह; एक ही वाक्य में दो जीवन; निवास्थान, बस्ती; सार्वजनिक स्थान (नगरस्थ); या अधिक अलंकारांका इस तरह प्रयुक्त होना कि दोनोंका साहित्यादिकी उन्नतिके लिए स्थापित संस्था समाप्ति; रूप पृथक्-पृथक् दिखाई दे ।
सामीप्य पड़ोस; चतुष्पथ, चौराहा; चिह्न ढाँचा । संसेवित-वि० [सं०] जिसकी भली भाँति सेवा की गयी संस्थापक-पु० [सं०] स्थापित करनेवाला (संस्था, औषहो; अच्छी तरह व्यवहार में लाया हुआ।
धालय आदि); मत आदिका प्रवर्तक । संसौ*-पु० श्वासा, प्राण (बि०) ।
संस्थापन-पु० [सं०] खड़ा करना, निर्माण करना; स्थापित संस्करण-पु० [सं०] क्रमबद्ध करना; शुद्ध करना, परिष्कृत करना; रूप प्रदान करना; कोई नयी बात जारी करना । करना; पुस्तकादिका एक बारका मुद्रण ।
संस्थापित-वि० [सं०] जमाया हुआ; स्थापित किया संस्कर्ता(त)-पु०[सं०] शुद्ध करनेवाला संस्कार करनेवाला। हुआखड़ा किया हुआ; बनाया हुआ; प्रवर्तित ।
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