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श्रमण-श्री श्रम, दौड़-धूप, प्रयत्नसे पूर्ण हो सके, परिश्रमसे होवे, (मन)-पु० श्राद्धकर्म करनेवाला। -कर्म(न)सधनेवाला।
पु०, -क्रिया-स्त्री० श्राद्धके सिलसिले में होनेवाले श्रमण-पु० [सं०] बौद्ध संन्यासी, बौद्ध भिक्षु, यति । (शास्त्रोक्त, लोक-व्यवहारके) काम । -दिन-पु. श्रमणक-पु० [सं०] बौद्ध या जैन संन्यासी।
वार्षिक श्राद्धका दिन, किसी व्यक्तिके मरनेकी तिथि, जिस श्रमिक-पु० [सं०] शारीरिक श्रम कर रोजी कमानेवाला, तिथिको वर्ष में एक बार उसके लिए श्राद्धकर्म किया जाता मेहनतकश,मजदूर ।-कल्याण-कार्य-पु०( लेबर वेलफेयर है। -पक्ष-पु० कारका कृष्ण पक्ष जिसे पितृ-पक्ष भी वर्क) श्रमिकोंकी भलाईके लिए किया जानेवाला कार्य कहते हैं। (स्वास्थ्य-रक्षा, साफ और हवादार मकानोंकी व्यवस्था | श्राद्धिक-वि० [सं०] श्राद्ध-संबंधी। पु० श्राद्धभोक्ता । आदि )।-कल्याण केंद्र-पु० ( लेबर वेलफेयर सेंटर) श्राप-पु० शाप । वह केंद्र या स्थान जहाँ श्रमिकोंकी भलाईके विभिन्न कार्य श्रावक-वि० [सं०] सुननेवाला। पु० बौद्ध भिक्षुः जैनकिये जाते है। -क्षतिपूर्ति अधिनियम-पु. (वर्कमेंस | संन्यासी; शिष्य । कंपेनसेशन ऐक्ट ) श्रमिकों तथा कर्मकारोंको काम करते | श्रावण-पु० [सं०] चांद्र वर्ष के बारह महीनोंमेंसे पाँचवाँ समय लगनेवाली चोट या अन्य रूपसे होनेवाली हानिके महीना जो वर्षाकाल में पड़ता है। श्रवणेंद्रियग्राह्य ज्ञान बदले में मालिकों या व्यावसायिक संस्थाओंसे हरजाना | पाषंड । वि० श्रवणेंद्रिय-संबंधी; श्रवण नक्षत्रमें उत्पन्न । दिलाने के लिए बनाया गया अधिनियम, कर्मकार-हानि. | श्रावणी-स्त्री० [सं०] चांद्र श्रावण मासको पूर्णिमा (इस पूरण-अधिनियम । -दिन-पु. ( मैन डेज) एक दिन- दिन ब्राह्मणोंका रक्षा-बंधन'का पर्व होता है); रक्षाबंधनका में एक आदमी द्वारा किये गये कामको इकाई मानकर त्योहार, सलोनो। हड़ताल आदिके समय हुई हानिका हिसाब लगानेसे प्राप्त | श्रावस्ती-स्त्री० [सं०] उत्तर कोसलस्थित लवकी पुरी दिनोंकी संख्या।
(रामायण में इसे 'शरावती' कहा गया है)। श्रमित-वि० [सं०] परिश्रम करके थका हुआ; थका हुआ। श्रावा-स्त्री० [सं०] माँड़। श्रवण-पु० [सं०] श्रवणेंद्रिय, कर्ण, कानः सुननेकी क्रिया | श्रावित-वि० [सं०] सुनाया गया, कथित । कणेंद्रियशान, कानसे सुनकर हुआ ज्ञान; नौ प्रकारकी श्राव्य-वि० [सं०] सुनने योग्य, जो सुना जा सके। भक्तियों मेंसे एक भक्ति जिसके अनुसार भक्त भगवान्के | श्री-स्त्री० [सं०] शोभा, सौंदर्य संपद्, संपत्ति विभूति, नाम, रूप, गुण, लीला, धाम आदिका श्रवण करता है। शान-शौकत राजोचित गौरव वेश-विन्यास, वेश-रचना सुनकर प्राप्त किया गया ज्ञान: अंधतापसका पुत्र जो माता- सजावट प्रभा; कीति, यशः वृद्धि सिद्धि; विष्णुकी पत्नी, पिताका अनन्य भक्त था; सत्ताईस नक्षत्रोंमें बाईसवाँ लक्ष्मी सरस्वती, वाणी; त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम प्रकार नक्षत्र; बहना, टपकना, क्षरण, रसना। -गोचर-वि० उपकरण, साधन; अधिकार ऋद्धि नामक औषध, लवंग; जो सुनाई पड़नेको सीमामें हो, श्रवणप्रत्यक्ष । -पथ- सरल वृक्ष कमल बिस्व वृक्ष; रागविशेष, छः रागों मेंसे पु० सुननेकी शक्तिसे युक्त श्रवणेंद्रिय, कान । -पालि, | पाँचवाँ राग; एक वैष्णव संप्रदायका नाम, वैष्णवोंका -पाली-स्त्री० कानकी नोक, कानकी ललरी।-प्रत्यक्ष निंबार्क संप्रदाय; आदर-सूचक शब्द जो प्रायः व्यक्तियोंके -वि० श्रवण-गोचर । -विद्या-स्त्री. वह विद्या जो नामके पूर्व लगाया जाता है; एक एकाक्षर वृत्त ।-कंठकानसे सुनकर ग्रहण की जाती हो। -विवर-पु. पु. शिव; महाकवि भवभूतिका नामांतर । -कर-पु० कानका छेद । -विषय-पु. श्रवणेंद्रियकी सीमामें विष्णुः रक्तोत्पल, लाल कमल । वि० कल्याणकारक । आनेवाला विषय, श्रवण-गोचर वस्तु, व्यापार आदि । -कांत-पु० कमलापति, विष्णु । -कारी(रिन्)-पु० श्रवणीय-वि० [सं०] श्रवण योग्य, सुनने योग्य । एक प्रकारका मृग ।-क्षेत्र-पु० जगन्नाथ पुरी। -खंडश्रवणेंद्रिय-स्त्री० [सं०] सुननेकी शक्ति कान ।
पु० चंदन; सिखरन, एक लेह्य पदार्थ । -गणेश-पु० श्रवन-पु० कान; सुनना।
आरंभ । -दामा(मन्)-पु० कृष्णके साले (ये राधाके श्रवना*-अ० कि० बहना, टपकना, चूना । स० क्रि० | भाई थे); कृष्णके एक सखा, सुदामा।-धाम-पु० लक्ष्मीबहाना, गिराना, टपकाना, चुआना।
के रहनेका स्थान, कमल । -नंदन-पु. लक्ष्मीपुत्र, श्रवित-वि० [सं०] क्षरित, टपका हुआ, बहा हुआ। कामदेव । -नाथ-पु० विष्णु । -निकेत,-निकेतनश्रव्य-वि० [सं०] सुनने योग्य । -काव्य-पु० इंद्रिय- पु० लक्ष्मीका वास स्थान; वैकुंठ, विष्णु । -निवासप्रत्यक्षकी दृष्टिसे भारतीय साहित्यशास्त्र द्वारा निर्धारित पु० विष्णु; लक्ष्मीका निवासस्थान; विष्णुलोक, वैकुंठ । काव्यके दो भेदों-दृश्य, श्रव्य-मेंसे एक भेद (श्रव्य काव्य -पंचमी-स्त्री. वसंतपंचमी, जो माघ-शुक्ला पंचमीको सुना जाता है, इसका अभिनय नहीं होता)।
पड़ती है। -पति-पु० लक्ष्मीपति, विष्णु, राजा, नृपति । श्रांत-वि० [सं०] श्रांतियुक्त, थका हुआ।
-पथ-पु० राजमार्ग। -फल-पु० बिल्व वृक्ष, बेलका श्रांति-स्त्री० [सं०] थकान; श्रम खेद ।
पेड़, खिरनीका पेड़, लक्ष्मीकी कृपाका फल, धन, द्रव्य । श्राद्ध-पु० [सं०] शास्त्रविहित पितृ-कर्म, शास्त्र तथा लोक- -भ्राता(त)-पु० चंद्रमा घोड़ा।-मुख-पु० शोभायुक्त विधिके अनुसार पितरोंका क्रिया कर्म पितरोंकी प्रसन्नताके आनन, मुख । मूर्ति-स्त्री विष्णु वा लक्ष्मीकी प्रतिमा। लिए श्रद्धापूर्वक अन्न, वस्त्र आदिका दान; कोई काम -युक्ता-युत-वि० लक्ष्मीवान्, सौंदर्यपूर्ण; आदर-सूचचौपट कर देना, बुरे ढंगसे करना ।-कर्ता(त), कर्मा- | नार्थ पुरुषोंके नामके पूर्व लगाया जानेवाला विशेषण ।
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