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शुकादन-शुद्धापति
७८० क्रियाके आधार पर यह न्याय बना)। -नासिका-स्त्री० मानना (करना, अदा करना)। सुग्गेकी ठोरकीसी नाक। -पुच्छ-पु० सुग्गेकी पूँछ | शुक्ल-वि० [सं०] श्वेत, सफेद, उज्ज्वल, शुद्ध । पु० गंधक ।-वल्लभ-पु० दाडिम, अनार ।-वाह-वाहन- रजत, चाँदी; नवनीत, मक्खन, श्वेत वर्ण, शुभ्र वर्ण; पु० कामदेव जिसका वाहन शुक माना गया है। शुक्ल पक्ष, उजाला पाख; शुक्ल नामक योग जिसमें शुभ शुकादन-पु० [सं०] दाडिम, अनार ।
कार्य करनेका विधान है (ज्यो०); आँखके सफेद अंशमें शुकी-स्त्री० [सं०] सुग्गी ।
होनेवाला एक रोग; श्वेत एरंड वृक्ष, शिव, विष्णु, ब्राह्मणोंशुकेष्ट-पु० [सं०] सिरिसका पेड़।।
की एक उपाधि । -दुग्ध-पु. सिंघाड़ा नामक जलशुकोदर-पु० [सं०] तालीशपत्र ।
फल । -धातु-स्त्री० खड़िया मिट्टी। -पक्ष-पु० शुकोह-पु०[फा०] दबदबा, प्रताप; आतंक (दाराशुकोह)। | महीनेका कृष्ण पक्षके अतिरिक्त दूसरा पक्ष जिसमें चंद्रमाशुक्त-वि० [सं०] साफ किया हुआ, चमकदार, पवित्र | की कला प्रति दिन बढ़ती है और रात उजेली होती जाती किया हुआ; जोड़ा हुआ, सटाया हुआ; अम्ल, खट्टा है । फेन-पु० समुद्रफेन नामक औषध । निष्ठुर कठोर; निर्जन । पु० मांस; कांजिक, काँजी; | | शुक्ला-स्त्री० [सं०] सरस्वती; शर्करा काकोली; विदारी; वह (मधुर) वस्तु जो कुछ दिन रखी रहनेके कारण खट्टी सेंहुड़, श्वेतवर्णवाली स्त्री। हो गयी हो सिरका खटाई; द्रवद्रव्यविशेष ।
शुक्लिमा(मन्)-स्त्री० [सं०] श्वेतता । शुक्ति-स्त्री० [सं०] सुतुही नामक जलजीव; सुतुही नामक शुक्लौदन-पु० [सं०] अरवा चावल । जलजंतुका कड़ा खोल (वैद्य इसका भस्म बनाकर औषधके शुचि-वि० [सं०] पवित्र, शुद्ध निदोष, निरपराध; निर्मल, काममें भी लाते हैं); सीप जिससे मोती निकलता है। __साफ; निष्कपट, निश्छल; श्वेत, उजला; चमकदार, सीपका खोल, शंख, शंखनख, छोटा शंख; नखी गंधद्रव्य देदीप्यमान । पु० अग्नि, सूर्य, चंद्र, श्वेत वर्ण; शृंगार कपालखंड; अश्वावर्त, घोड़ेकी छाती(गरदन)पर बालोंकी शिव । स्त्री० पवित्रता, सफाई । -कर्मा(र्मन्)-वि० भौंरी; एक नेत्ररोग; अर्शरोग, बवासीर, एक तौल जो दो पवित्र कर्म करनेवाला, अच्छे काम करनेवाला । -दुमकर्ष या चार तोलेके बराबर होता है। -ज-पु० मोती।। पु० पीपलका पेड़। -रोचि(स.)-पु० चंद्र । -व्रत-पत्र-पर्ण-पु० सप्तपर्ण वृक्ष, छतिवनका पेड़ । -पुट-| वि० पवित्र संकल्प करनेवाला, अच्छे कामका बीड़ा पु०,-पेशी-स्त्री० सीपका खोल, सुतुही । -बीज,- उठानेवाला। मणि-पु० मोती। -वधू-स्त्री०सीपी; सीपीके भीतर शुचिता-स्त्री०, शुचिच-पु० [सं०] पवित्रता, निर्मलता। रहनेवाला कीड़ा । -स्पर्श-पु० मोतीके धब्बे । शुचिष्मान् (मत्)-वि० [सं०] देदीप्यमान, प्रकाशयुक्त । शुक्र-पु० [सं०] वीर्य, बीज, रेत; सार, तत्त्व; बल, शक्तिः | शुजा-वि० [अ०] वीर, बहादुर । एक ग्रह, सुकवा सप्ताहका छठा दिन ( यह शुक्र ग्रहका शुतुर-पु० [फा०] ऊँट । -खाना-पु० उष्ट्रशाला । भोग्य दिन माना जाता है); शुक्राचार्य, दैत्यगुरु; अग्नि -गाव-पु. एक चौपाया जिसकी गरदन ऊँटकीसी और ज्येष्ठ मास; चित्रक वृक्ष; एक नेत्ररोग, फूली। वि० चम- खुर बैलकासा होता है, जिराफा। -नाल-स्त्री० छोटी कीला; श्वेत, उज्ज्वल; विशुद्ध ।-दोष-पु० वीर्यके दोषके तोप जो ऊँटकी पीठपर लादी और उसीपरसे चलायी कारण हुई नपुंसकता। -प्रमेह-पु० वीर्यक्षीणता ( यह जातो है। -मुर्ग-पु० एक विशालकाय पक्षी जिसकी रोग माना गया है)। -भुक (ज)-स्त्री० मयूरी।। गरदन ऊँटकी तरह लंबी होती है। -सवार-पु० -भू-पु० मज्जा । -ल-वि० शुक्र-संबंधी; वीर्य- साँड़नीसवार ।। वृद्धि करनेवाला । -वार,-वासर-पु. सप्ताहका छठा शुदनी-स्त्री० [फा०] भवितव्यता, होनहार । दिन । -स्तंभ-पु० बहुत दिनोंतक ब्रह्मचर्य रखनेके शुदा-वि० [फा०] जो हो या बीत चुका हो (समासमेंकारण उत्पन्न एक रोग, नपुंसकताका एक भेद, ध्वजभंग। पासशुदा, रजिस्ट्रीशुदा)। शुक्र-पु० [अ०] कृतज्ञताप्रकाश, उपकार मानना, ईश्वरके | शुद्ध-वि० [सं०] पवित्रा निर्मल, साफ; निदोष; सही, उपकारोंकी बड़ाई। -गुज़ार-वि० एहसान माननेवाला, ठीक; श्वेत, सफेद, चमकीला; बिना मिलावटका, सच्चा, शुक्र अदा करनेवाला। -गुज़ारी-स्त्री० कृतज्ञता प्रकट । असली; साफ, निर्मल किया हुआ; निश्छल; केवल; करना । मु०-करना-(खुदाका) एहसान मानना निष्पाप; निष्कलंक। -कर्मा(र्मन्)-वि० शुद्ध कार्य भगवान्के कियेपर संतुष्ट, प्रसन्न रहना। -बजा लाना- करनेवाला; पवित्र । -धी,-मति-वि० शुद्ध विचारोंकृतज्ञता प्रकाश करना । -है-खुदाका शुक्र है, भगवान्- वाला, सच्चा, ईमानदार । -पक्ष-पु० शुक्ल पक्ष । का परम अनुग्रह है।
-हृदय-वि० जिसका हृदय पवित्र, निष्कपट हो। शुक्रांग-पु० [सं०] मोर पक्षी ।
शुद्धता-स्त्री०, शुद्धव-पु० [सं०] शुद्ध होनेका भाव । शुक्रा-स्त्री० [सं०] वंशलोचन नामक एक औषध । शुद्धांत-पु० [सं०] अंत:पुर, रनिवास ('साकेत')।-चारीशुक्राचार्य-पु० [सं०] एक ऋषि जो राक्षसोंके गुरु थे। ये (रिन्),-रक्षक-पु० अंतःपुररक्षक । भृगुके पुत्र थे।
शुद्धा-स्त्री० [सं०] इंद्रजी। शुक्राना-पु० [फा०] वह रकम जो वकील या पेशकारको शुद्धारमा(त्मन्)-पु० [सं०] शिव । वि० पवित्र, शुद्ध, मुकदमा जीतनेके बाद, मेहनतानेके अतिरिक्त, दी जाय। साफ हृदयवाला। शुक्रिया, शुक्रीया-पु० [फा०] कृतशताप्रकाश, उपकार | शुद्धापद्वति-सी० [सं०] अपहति अलंकारका एक भेद
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