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शिमोदरवाद-शीताद लंपट और पेटू ।
शीघ्रता-स्त्री०, शीघ्र व-पु० [सं०] क्षिप्रता, फुरती। शिश्नोदवाद-पु० [सं०] वह वाद, शास्त्र, मत, संप्रदाय शीत-वि० [सं०] शीतल, आलस्ययुक्त । पु० शीतकाल जिसका संबंध जननेंद्रिय और उदरसे हो फ्रायडका काम- जो अगहन, पूस, माघ तीन महीनोंका होता है; जादा, सिद्धांत तथा मार्क्सका समाजवाद (व्यंग्य)।
टंडक, शीतलता; सरदी, जुकाम, जल; तुषार । -कटिशिष*-पु० शिष्य । स्त्री० सीख, शिक्षा, नेक सलाह बंध-पु. भूमंडलके उत्तरी तथा दक्षिणी अंशोंके दो चोटी, चुटिया।
कल्पित विभाग जो भूमध्य रेखाके ६६॥ अंश उत्तर तथा शिषा-स्त्री. शिखा।
इतने ही अंश दक्षिणसे शुरू होकर ध्रवप्रदेशतक फैले हैं। शिषी*-पु. मोर ।
-कर-पु० हिमकर, चंद्रमा कपूर । वि० शीतल करने शिष्ट-वि० [सं०] सभ्य, शिक्षा-दीक्षा द्वारा संस्कृत हो | वाला । -कारी यंत्र-पु० (रेफ्रीजरेटर ) ठंढक पहुँचाने, सभ्य समाजमें रहने योग्य; आधुनिक लोकाचार, व्यव- ठंढा बनानेवाला यंत्र; ठंढा बनाये रखकर भोजन आदिको हार आदिमें पटुः सुशील; शांत; बुद्धिमान् धीर: विनीत; शीघ्र खराब होनेसे बचानेवाला आलमारी या संदूकके शिक्षित, नीतिमान् ; श्रेष्ठ, वशीभूत, आज्ञाधीन; अव- ढंगका ढाँचा। -काल-पु० जाड़ेका मौसिम जो अगहन, शिष्ट । पु० मंत्रदाता, सलाहकार; किसी सभाके सदस्य, पूस और माघमें पड़ता है, हेमंत और शिशिर ऋतु, सभ्य, पार्षद् । -प्रयोग-पु. शिष्टों द्वारा व्यवहार में अगहन और पूस महीनों में पड़नेवाली हेमंत ऋतु । लाया जाना । -मंडल-पु० (मिशन; डेलीगेशन) किसी -कालीन-वि० शीतकाल-संबंधी; शीतकाल में होनेसभा, संधि-वार्ता आदिमें भाग लेनेके लिए भेजे गये वाला। -किरण-पु० चंद्रमा ।-ज्वर-पु० जाड़ा देकर अधिकृत प्रतिनिधियोंका दल ।-सभा-स्त्री०शिष्ट-परिषद्', आनेवाला ज्वर, जूड़ी, जया बुखार |-तरंग,-लहरराज्य परिषद् । -सम्मत-विशिष्टों द्वारा अनुमोदित। स्त्री० (कोल्ड वेव) किसी स्थान या क्षेत्रमें तुपारपात आदि शिष्टता-स्त्री०, शिष्टरव-पु० [सं०] शिष्ट होनेका भाव, होनेके कारण ठंढ बहुत अधिक बढ़ जानेसे उसके प्रभावमें भलमनसाहत, सौजन्य, सभ्यता।
आयी हुई हवाकी लहर जो अन्य स्थानोंमें भी जाड़ा या शिष्टाचार-पु० [सं०] शिष्ट व्यक्तियोंका आचार, व्यव- गलाव उत्पन्न कर देती है। -दीधित-पु० चंद्रमा । हार, सदाचार; विनम्रता; किसी समाज, संस्था, कार्यालय -द्युति-पु० चंद्रमा । -प्रधान-वि० (वह स्थान) जहाँ आदि द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार आचरण शीतका प्राधान्य हो; (वह वस्तु) जिसमें शीतगुणका (फारमैलिटी)।
आधिक्य, प्राधान्य हो। -भानु-पु० हिमकर, चंद्रमा । शिष्टाचारी(रिन्)-वि० [सं०] शिष्ट आचरण करनेवाला, -मयूख,-मरीचि-पु० चंद्रमा कपूर । -मूलक-पु० सदाचारी विनम्र किसी समाज, संस्था, कार्यालय आदि
उशीर, खस । वि० ठंढी जड़वाला। -युद्ध-पु० (कोल्ड द्वारा निर्धारित नियमोंके अनुसार आचरण करनेवाला।
वार) वह स्थिति जिसमें सेनाओं और शस्त्रास्त्रों के प्रत्यक्ष शिष्य-वि० [सं०] शिक्षणीय; उपदेश्य; शासनयोग्य । पु०।
प्रयोगकी भीषणता न होते हुए भी राष्ट्रोंमें पररपर अमैत्रीछात्र, विद्यार्थी (शिक्षकसे शिक्षा प्राप्त करनेवाला) चेला। पूर्ण भाव विद्यमान हो, एक दूसरेके विरुद्ध प्रचारकार्य -परंपरा-स्त्री०किसी गुरुसंप्रदायकी परंपरित शिष्यमंडली।
किया जा रहा हो तथा आर्थिक विध्वंसका भी प्रयत्न हो शिष्यता-स्त्री०, शिष्यत्व-पु० [सं०] शिष्य होनेका रहा हो। -रश्मि-पु० चंद्रमा; कपूर । -संग्रह-पु० भाव, कर्म आदि।
(कोल्ड स्टोरेज) विशेष रूपसे ठंढे बनाये गये कोष्ठ या शिस्त-स्त्री० [फा०] सीध, निशाना ।
कमरे में रखी गयी वस्तुओंका मंग्रह जिसमें वे सड़नेशीभा-पु० [अ०] मुसलमानोंके दो बड़े संप्रदायोंमेंसे एक बिगड़ने न पायें। जो मुहम्मदके बाद अलीकोही खिलाफतका हकदार और | शीतल-वि० [सं०] शीतगुणयुक्त, ठंढा सौम्य, मृदु; शांत, उनके पहले के तीनों खलीफाओंको अपहारक मानता है। ठंढे दिमागवाला; संतुष्ट, आनंदित। -चीनी-स्त्री. शीकर-पु० [सं०] वायुप्रेरित जलकण, फुहार; जलकण । । [हिं०] एक प्रकारका मसाला, कबाबचीनी।-पाटी-स्त्री० शीघ्र-अ० [सं०] क्षिप्र, सत्वर, जल्द, तुरत, झटपट । [हिं०] एक प्रकारकी पतली और चिकनी चटाई । -कारी (रिन् )-वि० तुरत काम करनेवाला; तुरत | शीतलता-स्त्री० [सं०] शैत्य, ठंढापन, टटक जड़ता। असर करनेवाला ( भोजन, औषध आदि)। -कोपी-शीतलताई*-स्त्री० दे० 'शीतलता'। (पिन्)-वि० जल्द ऋद्ध हो उठनेवाला, चिड़चिड़ा। शीतलत्व-पु० [सं०] दे० 'शीतलता' । -ग-वि० द्रतगामी । पु० वायुः सूर्य ।-गामी (मिन्)- शीतला-स्त्री० [सं०] एक विस्फोटक रोग जो वसंत और वि० दे० 'शीघ्रग'। -पतन-पु. नारीसंभोग करते। ग्रीष्म ऋतुओं में अधिक होता है, चेचक, वसंतरोग । समय वीर्यका शीघ्र स्खलन, गिरना। -बुद्धि-वि० -वाहन-पु० गधा। तीक्ष्ण बुद्धिवाला । -किपि-स्त्री० (शॉर्ट हैड) लिखनेका शीतांशु-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर । वह ढंग या प्रणाली जिसमें बोलनेवालेके शब्द अत्यंत शीताकुल-वि० [सं०] ठंढसे व्याकुल; जाड़ेके मारे शीघ्रतासे, उनके उच्चरित होनेके साथ-साथ लिखे जा
उच्चारत हानक साथ-साथ लिखे जा काँपनेवाला। सकें, त्वरालिपि, लघुलिपि । -वेधी (धिन)-१० | शीतातप-पु० [सं०] जाड़ा और गी । निशाने पर तुरत तीर चलानेवाला, कुशल बाण चलानेशीताद-पु० [सं०] ( पायोरिया) मसूड़ोंके पक जाने या वाला, लघुहस्त ।
। उनमें व्रण हो जानेका रोग।
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