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शृंगार-शैतान मंदिर आदिका ऊपरी हिस्सा, कँगूरा, ऊपरी भाग; कोटि, रना-डींग मारना, अपने मुहँ अपनी बड़ाई करन।। सिरा चंद्रमाकी नोक, शशिविषाण; बाणकी नोक; सींग; शेफालिका, शेफाली-स्त्री० [सं०] निर्गुडी, नीलिका 'सिंघा' नामक बाजा । -ग्राहिता न्याय-पु० मरकहे | नील सिंधुवारका पौधा ।। साँड़का एक सींग पकड़ लेने पर दूसरा सींग भी आसानीसे शेर-पु० [फा०] बाघ, व्याघ्र; सिंह (ला०) वीर पुरुष, पकड़ा जा सकता है, इसी तथ्यके आधारपर यह न्याय निडर व्यक्ति । [स्त्री० 'शेरनी' 1] -दरवाज़ा-पु० वह बना है, इसका तात्पर्य यह है कि किसी दुष्कर कार्यका द्वार या फाटक जिसके दोनों ओर शेरकी प्रतिमा बनी कुछ हिस्सा हो जानेपर उसका शेष भाग भी संपन्न हो हो, सिंहद्वार । -दहाँ-वि० शेरकासा मुहँवाला (कड़ा); जाता है। -ज-पु० अगुरु चंदन, अगर; बाण । वि० (मकान) जो सामने अधिक और पीछे कम चौड़ा हो। शृंगसे उत्पन्न । -प्रहारी(रिन् )-वि० सींगसे मारने- -दिल-वि० वीर, निडर । -नुमा-वि० शेरकी शकलवाला। -प्रिय-पु.शिव । -मूल-पु० सिंघाड़ा। वाला । -पंजा-पु० एक हथियार, बधनखा।-बच्चाशृंगार-पु० [सं०] साहित्यशास्त्रके नवरसोंमेंसे एक प्रधान पु० शेरका बच्चा एक तरहकी छोटी बंदूक । वि० वीर, रस (इसे रसराज कहते हैं जिसका कारण इसकी व्यापकता साहसी। -बबर-पु० सिंह । -का नाखन-बधहै, अर्थात् जीवनके दो प्रधान पक्षों संयोग तथा वियोग नखा। -का.बाल-शेरकी मूंछका बाल जो विष है दोनोंतक इसकी पहुँच है। इसीसे इसके दो भेद माने गये और जिसे खानेसे, कहते हैं कि कलेजा कटकर गिर ह-संयोगशृंगार और वियोग वा विप्रलंभशृंगार । इसके पड़ता है।-की खाला-बिल्ली । मु०-करना-हौसला रसराज कहे जानेका एक कारण यह भी है कि इसमें | बढ़ा देना, निडर बना देना ।-की नज़र घूरना-कोपरसके सभी अवयव-विभाव, अनुभाव, संचारी अपने भरी दृष्टि से देखना। -के मुंहमें जाना-जान-जोखिमसभी भेदों सहित प्राप्त होते हैं); संभोग, सहवास; सौंदर्यके वाले स्थानमें जाना । -के महसे शिकार लेना-जबरप्रसाधनों द्वारा स्त्री वा पुरुष-शरीरका बनाव-सजाव; किसी दस्तसे कोई चीज छीन लेना। -बकरीका एक घाट वस्तुका सजाव; शोभाकी वस्तु; हाथीके शरीरपर बनाये पानी पीना-शुद्ध न्यायका राज्य होना, छोटे-बड़े सबके गये सेंदुरके निशान । -चेष्टा-स्त्री० काम-चेष्टा, संभोग- | साथ एकसा व्यवहार होना । -होना-हौसला बढ़ना; चेष्टा ।-भाषित-पु० प्रेमालाप ।-भूषण-पु० सिंदूर ।। प्रबल होना । -वेश-पु० रमणीय, आकर्षक, सुंदर वेशभूषा जिसे | शेरवानी-स्त्री० एक तरहका आधुनिक ढंगका अँगरखा। धारण कर प्रेमी अपने प्रियसे मिलनके लिए जाता है। शेल-पु० शल्य, बरछी ( कविप्रि०)। -हाट-पु० वेश्याओं के बैठनेका बाजार ।
शेवाल-पु० [सं०] सेवार । शृंगारण-पु० [सं०] सजानेकी क्रिया; शृंगारचेष्टा । शेष-वि० [सं०] बचा हुआ, बाकी, अवशिष्ट; छोड़ा हुआ शृंगारिणी-स्त्री० [सं०]खूब बनाव-सजाव करनेवाली नारी। उच्छिष्ट; समाप्त । पु० स्वीकृत वस्तुसे अतिरिक्त वस्तु शृंगारिक-वि० [सं०] श्रृंगारसे संबंध रखनेवाला, भंगारका। कामकी चीजके अलावा बची चीज, भागकी बाकी (गणित); शृंगारिया-पु० शृंगार करनेवाला; बहुरुपिया।
घटानेके बाद बची संख्या वध नाश ध्वंस; अनंत नामक शृंगारी(रिन्)-वि० [सं०] शृगारकी वृत्तिसे युक्त शृंगा- सर्पराज; लक्ष्मण बलरामः । -काल-पु० मरणकाल । रिक । पु० कामुक, प्रेमी व्यक्ति सुंदर वेशवाला व्यक्ति । | -धर-पु. शिव । -रात्रि-स्त्री० रात्रिका अंतिम प्रहर, शृंगी-स्त्री० [सं०] सिंघी नामक मछली; गहना बनानेके पिछली रात। -शयन,-शायी(यिन)-पु० विष्णु । लिए सोना; विष; अतीस ।
शेषर*-पु० दे० 'शेखर'। शृंगी(गिन)-वि० [सं०] शृंगयुक्त । पु० पर्वत हाथी | शेषांश-पु० [सं०] बचा भाग अंतिम भाग। मेष, भेड़ा, वृक्ष; एक ऋषि (इन्हींके शापसे परीक्षितको शेषावस्था-स्त्री० [सं०] बुढ़ापा । तक्षकने टसा था); सिंगा बाजा; शिव।
शेषोक्त-वि० [सं०] सबके या सब कुछ कह लेने के बाद शृग-पु० शृगाल।
अंतमें कहा हुआ; सबके अंतमें लिखा हुआ। शृगाल-पु० [सं०] सियारः डरपोक व्यक्ति; खल; धूर्त | शैख़-पु० [अ०]वृद्ध; गुरुजन; धर्मशास्त्रका पंडित; खानकाह आदमी।
या दरगाहका खलीफा; महंत अरब कबीलोंका सरदार शेख-पु० दे० 'शैख' मुसलमानोंकी चार जातियों (शेख, | मुसलमानोंकी चार जातियों मेंसे एक । सैयद, मुगल, पठान)मेंसे एक ।-चिल्ली-पु० एक कल्पित | शैतान-पु० [अ०] कुरानके अनुसार अजाजील जिन जो मूर्ख जिसकी मूर्खताकी अनेक कहानियाँ जनसाधारणमें बड़ा पंडित था और फिरिश्तोंको पढ़ाया करता था, पर प्रसिद्ध है; बड़ी-बड़ी हवाई योजनाएँ बनानेवाला व्यक्ति ।। खुदाके आदमको सिजदा करनेकी आशाका अहंकारवश -चिल्लीका मनसूबा-हवाई योजना। -सदो-पु० पालन न करनेके कारण स्वर्गसे निकाला गया और अपढ़ स्त्रियों में पृजित एक पीर या जिन ।
तबसे वह आदमकी संतान मनुष्य जातिको सन्मार्गसे शेखर-पु० [सं०] शिरोभूषण, किरीट, मुकुट आदि; सिर- बहकानेका काम करने लगा, इबलीस प्रेत, पिशाच ।
पर लपेटी हुई माला; पर्वत-शिखर, शृंग, चोटी; शीर्ष । वि० बहकानेवाला; नटखट; दुष्ट, उपद्रव खड़ा करानेवाला । शेखी-स्त्री० घमंड; डोंग ।-खोर-वि० दे० 'शेखीबाज'। -का. बच्चा-भारी दुष्ट, खुराफाती आदमी। -का -बाज़-वि० डींग मारनेवाला, दूनकी लेनेवाला । मु. लश्कर-नटखट लड़कोंका समूह । -की आँत-बहुत -किरकिरी होना,-झड़ना-धमंड चूर होना ।-बघा- | लंबी चीज, वह चीज जिसका सिलसिला बहुत दूरतक
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