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शांतिक-शागिर्द पु० अमन कायम करना।
बतानेवाला, शकुनश । शांतिक-वि० [सं०] शांति-संबंधी। पु. अमंगल, दुष्ट शाकुनेय-पु० [सं०] छोटा उस्लू वृकासुर । वि. पक्षिग्रहादिके निवारणार्थ होनेवाला पूजापाठ, यज्ञ इत्यादि। | संबंधी। शांतिमय-वि० [सं०] शांतियुक्त, शांतिपूर्ण; शांति- शाक्त-पु० [सं०] वह जो शक्तिकी उपासना करता हो, गुणयुक्त; निावघ्न ।
दुर्गा, काली आदि देवियोंका उपासक; तंत्र-संप्रदाय में शांब-पु० [सं०] जांबवतीसे उत्पन्न कृष्णका पुत्र ।
दीक्षित । वि० शक्ति-संबंधी। शांबर-वि० [सं०] शंबर मृग-संबंधी; शंबर राक्षस संबंधी। शाक्तिक-पु० [सं०] शाक्त, शक्तिका उपासक; शक्ति, शांबरिक-पु० [सं०] ऐंद्रजालिक, जादूगर ।
भाला नामक हथियार रखने, चलानेवाला व्यक्ति। शांबरी-स्त्री० [सं०] इंद्रजाल, मायाविद्या, जादू (शंबर | शाक्तय, शाक्त्य-पु० [सं०] शक्तिकी उपासना करनेदैत्यने इसका निर्माण किया था, अतः इसे 'शांबरी' कहते वाला व्यक्ति । हैं); ऐंद्रजालिका, जादूगरनी।।
शाक्य-पु० [सं०] एक प्राचीन क्षत्रियकुल जिसमें गौतमशांबुक, शांबूक-पु० [सं०] घोंधा।
बुद्ध उत्पन्न हुए थे; बुद्धदेव । -मुनि-पु. बुद्धदेव । शांभव-वि० [सं०] शंभु-संबंधी । पु. शंभुका पुत्र शंभुका शाक्र-वि० [सं०] शक्र, इंद्र-संबंधी; इंद्रार्पित । उपासक, शैव; कपूर, गुग्गुल; विषका एक प्रकार; शिव- शाख-स्त्री० [फा०] शाखा, डाली; पौधेकी कलम सींग; मल्लीका पौधा; देवदारु वृक्ष ।
नदी या नहरकी मुख्य धारासे निकली हुई छोटी धारा; शांभवी-सी० [सं०] पार्वती, दुर्गा; नीली दूब; ब्रह्मरंध्र । टुकड़ा; फाँक अंश; (ला०) वंश; कमानकी लकड़ी।-दरशाइत-वि० [अ०] दे० 'शायक।
शास्त्र-वि० दूरतक फैला हुआ, शाखा-प्रशाखाओंशाइर-पु० [अ०] दे० 'शायर'।
वाला । मु०-निकालना-टहनी निकालना; ऐब निकाशाइरा-स्त्री० [अ०] दे० 'शायरा'।
लना, नुक्ता-चीनी करना; नयी बात पैदा करना । शाइस्तगी-स्त्री० [फा०] शिष्टता, सभ्यता; विनय । शाखा-स्त्री० [सं०] विटप, पेड़की डाल; बाहु; शरीरावशाइस्ता-वि० [फा०] शिष्ट, सभ्य, विनीत, सुशील; यव; ग्रंथपरिच्छेद, अध्याय; पक्षांतर, प्रतिपक्ष; किसी सीधा, शरारत न करनेवाला (-घोड़ा)।
वस्तु आदिका अंग, भाग, भेद; किसी दर्शन, शास्त्र आदि शाकंभरी-स्त्री० [सं०] दुर्गाशांभरी (साँभर) नामक नगर। का भेद, संप्रदाय (स्थूल); वेदकी संहिताओंको पदपाठ शाकंभरीय-वि० [सं०] साँभर झीलसे उत्पन्न । पु० साँभर और स्वरकी दृष्टिसे व्यवस्थित करनेवाले किसी ऋषिके नमक।
नामपर उसके वंशजों अथवा शिष्यों द्वारा परंपराके शाक-पु० [सं०] खाद्य जड़, डंठल, पत्ती, फूल, फल आदि रूपमें चलाया जानेवाला संप्रदाय । -चंक्रमण-पु. जो प्रायः उबाल, पकाकर खाये जाते हैं, साग, तरकारी एक डालसे दूसरी डालपर कूदना, हाथमें लिये एक कामशाक वृक्ष, सागौनका पेड़, शिरीष वृक्षा एक द्वीप; शक- को पूरा किये बिना ही दूसरा काम करने लगना, कोई राज शालिवाहन द्वारा प्रवर्तित संवत् । -तरु-द्रुम
कार्य अव्यवस्थित रूपसे करना। -चंद्रन्याय-पु. पु० सागौनका पेड़। -भक्ष-वि० शाक खानेवाला । पु० अवास्तविक वस्तु, घटना आदिको सत्य मान लेनेके अव
वह व्यक्ति जो शाक ही खाता हो, मांस न खाता हो। सर पर कही जानेवाली एक उक्ति (किसी विशेष स्थानसे शाकल-वि० [सं०] शकल या टुकड़ेसे संबद्ध । पु० एक देखनेपर ज्ञात होता है कि चंद्र वृक्षकी शाखापर ही है, द्वीपका नाम हवन-मामग्री।
मगर स्थिति ऐसी होती नहीं। इसी स्थितिके आधारपर शाकाहार-पु० [सं०] पत्र, फूल, फल, अन्न आदि खाद्य यह उक्ति बनी है)। -नगर-पु० उपनगर । -पित्तपदार्थ अथवा इनका भोजन ।
पु० हाथ-पैर में जलन पैदा करनेवाला एक रोग। -पुरशाकाहारी(रिन्)-वि०, पु० [सं०] दे० 'शाकभक्ष। पु० दे० 'शाखानगर'। भृत्-पु० वृक्ष । -मृग-पु० शाकिनी-स्त्री० [सं०] शाकयुक्त भूमि; दुर्गाकी एक | वानर, गिलहरी । -रंड-पु० अन्यशाखक, वेदकी अपनी अनुचरी।
शाखाको छोड़कर दूसरेकी शाखाका अध्येता । -रथ्याशाकिर-वि० [अ०] शुक्र करनेवाला, कृतश।
स्त्री० बड़ी सड़कसे निकली हुई छोटी सड़क ।-वात-पु. शाकी-वि० [अ०] शिकायत करनेवाला; फरियाद करने- एक प्रकारका वातरोग। वाला।
शाखा-पु० [फा०] टहनी, शाखा सींग सींगकी शकलका शाकुंतल, शाकुंतलेय-वि० [सं०] शकुंतला-संबंधी। पु० प्याला; वह लकड़ी जिसमें अपराधीका सिर और हाथ शकुंतलासे संबद्ध कालिदासकृत 'अभिज्ञान शाकुंतल' । देकर उसे दंड देते हैं। नाटक; शकुंतलाका पुत्र भरत ।
शाखोच्चार-पु० [सं०] विवाह-मंडपमें पाणि-ग्रहणके अवसर शाकुंतिक-पु० [सं०] चिड़ीमार, बहेलिया।
पर वर तथा कन्या-पक्षके पुरोहितों द्वारा अपने-अपने यजशाकुन-वि० [सं०] पक्षियों संबंधी; पक्षियोंका; शकुन- मानकी कुलीनताके शापनार्थ उनकी वंशावलीका बखान । (सगुन)संबंधी। पु० पक्षी आदिके रूप, लक्षण आदि शाखोट, शाखोटक-पु० [सं०] सिहोरका पेड़। देखकर मनुष्यके शुभाशुभका निश्चय करानेवाला ग्रंथ, | शाख्य-वि० [सं०] शाखा-संबंधी; शाखाके सदृश । शास्त्र; सगुन बतानेवाला; पक्षी पकड़नेवाला । | शागिर्द-पु० [फा०] गुरुसे विद्या या शिक्षा प्राप्त करनेशाकुनिक-पु० [सं०] चिड़ीमार, बहेलिया, व्याध; सगुन | वाला, विद्यार्थी, शिष्य । -पेशा-पु० किसी दफ्तर या
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अनुचरा
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