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शतक-शब्द महाक्रोधी । पु० इंद्र, उल्लू । -वार्षिक-वि० सौ वर्षों- -ग्रहण-पु० कोई पदादि ग्रहण करते समय निष्ठा एवं पर होनेवाला। -वार्षिकी-वि० स्त्री० सौ वर्षों में होने गुप्तता आदिकी शपथ लेना। -पत्र-पु० ( एफीडेविट ) वाली, सौ वर्ष-व्यापिनी। स्त्री० सौ वर्षपर होनेवाला किसी न्यायालय में शपथपूर्वक दिया गया लिखित वक्तव्य उत्सव । -वीर-पु. विष्णु । -शीर्ष-पु० विष्णु।। जो प्रमाणके रूपमें प्रयुक्त किया जा सके, हलफनामा । -हदा-स्त्री. विजली; वज्र ।
शपन-पु० [सं०] शपथ; दुर्वचन, गाली। शतक-वि० [सं०] सौकी संख्यासे संबद्ध । पु० प्रायः एक शकत-स्त्री० [अ०] अनुग्रह; दया प्रेम । ही प्रकार अथवा एक ही व्यक्तिकी सौ वस्तुओं, रचनाओं | शफर-पु०, शफरी-स्त्री० [सं०] पोठी मछली । आदिका संग्रह (जैसे-शृंगारशतक, अमरुशतक आदि); शफा-स्त्री० [अ०] नीरोगता, स्वास्थ्य । -खाना-पु० शती, शताब्दी; क्रिकेटके खेलमें किसी एक बल्लेबाज द्वारा अस्पताल, चिकित्सालय। किये गये सौ धावनोंका समूह (सेंचुरी), शतक । शब-स्त्री० [फा०] रात ।-नम-स्त्री० ओस ।-(बे)वस्लशतधा-अ० [सं०] सौ प्रकारसे।
स्त्री० मिलनरात्रि; वह रात जिसमें प्रेमीका प्रेमिकासे शतरंज-पु०, स्त्री० [अ०] एक प्रसिद्ध खेल जिसके मुहरे मिलन हो। -(बो)रोज-अ० रात-दिन, हर वक्त। . बादशाह, वजीर, हाथी, घोड़ा, प्यादे आदि होते हैं शबनम-स्त्री० [फा०] दे० 'शब'में; सफेद रंगका एक निहा (संस्कृत चतुरंग या फारसी शतरंगका विकृत रूप)। यत बारीक कपड़ा। -का नक्शा-शतरंजके कुछ मोहरोंकी ऐसी चाल शबनमी-स्त्री० [फा०] वह कपड़ा जो ओससे बचनेके लिए जिससे विपक्षीको मात दी जा सके । -बाज़-पु० शतरंज छपरखटपर तान देते हैं। मसहरी। खेलनेवाला । -बाजी-स्त्री० शतरंज खेलना।
शबर-पु० [सं०] दक्षिण भारतकी एक पहाड़ी और असभ्य शतरंजी-स्त्री० [अ०] रंग-बिरंगी या शतरंजके खानोंकी- जाति जंगली मनुष्य शिव । वि० दे० 'शबल'। सी बुनावटवाली मोटी चादर जो दरी आदिके ऊपर शबरी-स्त्री० [सं०] शबर जातिकी नारी रामायणमें वर्णित बिछायी जाती है। रंग-बिरंगी दरी; शतरंज खेलनेकी | शबर जातिकी एक रमभक्त नारी। बिसात । पु० शतरंजबाज ।
शबल-वि० [सं०] विविध रंगोंवाला; कई रंगोंसे अंकित शतशः(शस)-अ० [सं०] सैकड़ों प्रकारसे ।
विभिन्न भागोंमें विभक्त; अनुकृत। शतांश-पु० [सं०] सौवाँ हिस्सा। -तापमापक-पु० शबला-स्त्री० [सं०] चितकबरी गाय, कामधेनु । (सेंटीग्रेड थर्मामीटर) सौ अंशोंमें विभक्त तापमापक यंत्र । शबाब-पु० [अ०] जवानी, बीससे चालीसतककी उम्र । शतानंद-पु० [सं०] राजा जनकके राजपुरोहित । शबीह-स्त्री० [अ०] रूपसाम्य; चित्र, तसवीर । शतानीक-पु० [सं०] वृद्ध श्वशुर; एक मुनि ।
शब्द-पु० [सं०] आकाशमें किसी भी प्रकारसे उत्पन्न क्षोभ शताब्द-पु०, शताब्दी-स्त्री० [सं०] शती, सी सालोंका जो वायुतरंग द्वारा कानोंतक जाकर सुनाई पड़े अथवा समय।
पड़ सके, ध्वनि, आवाज; आप्त-वचन, आप्त पुरुष द्वारा शतायु (स.)-वि० [सं०] सौ वर्षोंकी आयुवाला। व्यक्त ज्ञान, शिक्षा आदिकी बातें। -कोश,-कोष-पु० शतावधान-पु० [सं०] मनोयोगपूर्वक बिना त्रुटिके सौ वह ग्रंथ जिसमें शब्दोंके सम्यक वर्ण-विन्यास, अर्थ, प्रयोग,
अथवा बहुतसे कामोंको एक साथ करनेवाला व्यक्ति । पर्याय आदि हों, अभिधान । -चातुर्य-पु० शब्द-प्रयोगशती-स्त्री० [सं०] सौका संग्रह सदी, शताब्दी; क्रिकेटमें की कला, चातुरी, बोलनेके ढंगकी निपुणता। -चित्रसौ धावनोंकी संख्या (सेंचुरी)।
पु० एक शब्दालंकार; साहित्यरचनाका एक नवीन प्रकार शत्रुजय-वि० [सं०] शत्रुको जीतनेवाला।
जिसमें शब्दों द्वारा किसी वस्तु, व्यक्ति आदिका रूप शत्रु-पु० [सं०] वैरी; दुश्मन । -न-वि० शत्रु नाशक । खड़ा किया जाता है ( स्केच)। -चोर-पु० दूसरेकी पु० दशरथकी पत्नी सुमित्राके पुत्र । -जित्-वि० शत्रुको रचनाके शब्द उड़ाकर अपनी कविता, लेखादिमें प्रयोग जीतनेवाला ।-हंता (त)-वि० दे० 'शत्रुहा', शत्रुध्न । | करनेवाला ।-पति-पु. कहने भरको स्वामी या राजा। -हा (हन)-वि० शत्रुको मारनेवाला।
-प्रमाण-पु. मौखिक प्रमाण; आप्तप्रमाण । -भेदशत्रुता-स्त्री० [सं०] दुश्मनी, वैर ।
पु० (पाट्स ऑफ स्पीच) वाक्यमें प्रयुक्त शब्दोंका, शत्वरी-स्त्री० [सं०] रात्रि।
व्याकरणके अनुसार, उनके कार्यों, प्रयोग आदिकी दृष्टिसे, शद्वि-पु० [सं०] हाथी, बादल, अर्जुन । स्त्री० बिजली। । किया गया भेद । -भेदी(दिन)-पु० दे० 'शब्दवेधी'। शनाख्त-स्त्री० [फा०] पहचान; परिचय । मु०-करना- -विद्या-स्त्री० शब्दशास्त्र, व्याकरण । -वेधी(धिन) पहचानना।
-पु० वह व्यक्ति जो केवल शब्द सुनकर बिना देखे ही शनि-पु०[सं०] नवग्रहोंमेंसे सातवाँ ग्रह सप्ताहका अंतिम | लक्ष्यपर बाण मारे एक प्रकारका बाण, अर्जुन, दशरथ । दिन, शनिवार । -प्रिय-पु. नीलम । -वार-पु० -शक्ति-स्त्री० शब्दकी विशेष अर्थबोधक शक्ति ( यह शुक्रवारके बादका दिन।
तीन प्रकारकी होती है-अभिधा, लक्षणा, व्यंजना)। शनैः-अ० [सं०] धीरे, चुपचाप; क्रमशः, उत्तरोत्तर । -शास्त्र-पु० व्याकरण । -श्लेष-पु० किसी शब्दका दो -शनैः-अ० धीरे-धीरे, क्रमशः।
या दोसे अधिक अर्थों में प्रयुक्त होना । -संग्रह-पु० शनैश्चर-पु० [सं०] दे० 'शनि' । वि० धीरे चलनेवाला। शब्दोंका चयन; शब्दकोष । -साधन-पु० शब्दोंकी शपथ-स्त्री० [सं०] सौगंद, कसम प्रतिज्ञा (करना, लेना)। व्युत्पत्ति, रूपांतर आदि दिखानेवाला व्याकरणका भाग ।
तमया
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