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विषमता-विसदृश
-ज्वर-पु० जीर्णज्वर । -त्रिभुज-पु. वह त्रिभुज विषाण-पु० [सं०] शृंग (बाजा); सींग; शूकर, हाथी या जिसकी तीनों भुजाएँ असमान हों । -दृष्टि-वि० ऐंचा- गणेशका दाँत । ताना । -नयन, नेत्र-विलोचन-पु० शिव । -पाद विषाणी(णिन्)-वि० [सं०] सींगवाला; दाँतवाला । पु० -वि.जिसके चरण असमान हों। -बाण,-विशिख, सींग या दाँतवाला जानवर हाथी ऋषभक; शृंगाटक । -शर-पु० कामदेव। -बाह-त्रिभुज-पु० (स्केलीन विषाद-पु० [सं०] अवसाद, उदासी; गम; नैराश्य ट्राइएंगिल ) वह त्रिभुज जिसकी कोई भी दो भुजाएँ बरा- उत्साहहीनता; तंद्रा, लांति; सुस्ती; जड़ता; मन उचट बर न हों। -वृत्त-पु० वह छंद जिसके चरणोंकी मात्राएँ | जाना; एक संचारी भाव । आदि समान न हों। -संधि-स्त्री. एक तरहकी संधि, विषानन-पु० [सं०] साँप । समसंधिका विलोम ।
विषान-पु० [सं०] विषमिश्रित खाद्य पदार्थ । विषमता-स्त्री०, विषमत्व-पु० [सं०] असमता; अंतर विषापहरण-पु० [सं०] विषका प्रभाव नष्ट करना। निरापदता भीषणता; जटिलता।
विषायुध-पु०[सं०] साँप; विषैला जंतु जहर में बुझा अस्त्र । विषमाक्ष-पु० [सं०] शिव ।
विषास्त्र-पु. [सं०] साँप; जहर में बुझाया हुआ हथियार । विषमायुध-पु० [सं०] कामदेव ।
विषुव-पु० [सं०] वह समय जब दिन-रातका मान बराविषमित-वि० [सं०] असमय या दुर्गम बनाया हुआ; बर होता है। -रेखा-स्त्री. वह कल्पित रेखा जो दोनों अव्यवस्थित; जो खतरनाक, बैरी बन गया हो।
ध्र वोंके बीचोबीच पृथ्वीतलपर चारों ओर गयी है। विषमेक्षण-पु० [सं०] शिव ।
विषुवत्-वि० [सं०] बीचका, मध्यस्थित । पु० दे० विषुव'। विषमेषु-पु० [सं०] कामदेव ।
विषुवहिन, विषुवदिवस-पु० [सं०] वह दिन जब दिनविषय-पु० [सं०] ज्ञानेंद्रियों द्वारा गृहीत होनेवाले पदार्थ । रातके मानमें कोई अंतर नहीं होता। (रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द ), शंद्रियार्थ; भौतिक विचिका-स्त्री० [सं०] एक तरहका अजीर्ण जिसमें कै पदार्थ कारबारस इंद्रियजन्य आनंद लक्ष्यः क्षेत्र, विस्तार और दस्त होता है और पेशाब नहीं उतरता, हैजा। विभाग; व्याख्या आदिका प्रकरण; देश राज्य शासन- विष्कंभ-पु० [सं०] बाधा, रोक; अर्गल; शहतीर; स्तंभ व्यवस्थायुक्त बृहत् क्षेत्र; आश्रय स्थान; ग्राम-समूह । -
__ अंकोंके मध्य रखा जानेवाला वह अंश जिसमें कथानककी कर्म(न)-पु० सांसारिक कार्य । -ज्ञान-पु० सांसा- | प्रगतिका संकेत रहता है (ना०)। रिक कार्योंका शान। -निरति-स्त्री. विषयासक्ति । - विष्टप-स्त्री० [सं०] स्थान, भूभाग, स्वर्गलोक । निर्धारिणी समिति,-निर्वाचिनी समिति-स्त्री० किसी विष्टि-स्त्री० [सं०] व्याप्ति काम, पेशा; मजदरी, वेतन सभामें उपस्थित किये जानेवाले विषय, प्रस्ताव आदिका
बेगार । निश्चय करनेवाली उपसमिति । -पति-पु. राज्यपाल | विष्ठा-स्त्री० [सं०] मल, पाखाना; पेट । -भुक(ज)(गवर्नर)।-पराड्यख-वि० सांसारिक विषयोंसे विरक्त। पु० शूकर । -लोलुप-पु० विषयसुखका लोभी । -समिति-स्त्री० | विष्णु-पु० [सं०] आर्यों और हिंदुओं के एक प्रधान देवता कुछ चुने हुए सदस्योंकी वह समिति जो किसी सम्मेल- (इनकी त्रिदेवमें गणना है और ये पालनकर्ता माने जाते नादिमें प्रस्तत किये जानेवाले प्रस्तावों या विषयोंके संबंध- है); अग्नि । -पदी-स्त्री० गंगा नदी। -पुरी-स्त्री० में निश्चय करती है। -सुख-पु० इंद्रियजन्य सुख । वैकुंठ, विष्णुलोक । -प्रिया-स्त्री. लक्ष्मी; तुलसीका -स्पृहा-स्त्री० विषय-सुखकी इच्छा।
पौधा । -यान,-रथ-पु० गरुड़। -लोक-पु० वैकुंठ, विषयक-वि० [सं०] संबंधी, विषयका ।
गोलोक । -वल्लभा-स्त्री० लक्ष्मी; तुलसीका पौधा; कलिविषयांतर-पु० [सं०] प्रसंगको छोड़कर भिन्न विषयका यारी, अग्निशिखा । -वाहन,-वाह्य-पु. गरुड़ । उपस्थापन करना; मूल विषयको छोड़कर इधर-उधरकी
-शक्ति-स्त्री० लक्ष्मी ।-शिला-स्त्री० शालग्राम, काले चर्चा करना।
चिकने पत्थरकी गोल बटिया। विषया-स्त्री० विषयवासना; विषयवासनाकी वस्तु ।
विष्फार-पु० [सं०] दे० 'विस्फार' (धनुष की टंकार)। विषयात्मक-वि० [सं०] विषय-संबंधी; इंद्रिय-संबंधी।। विसंगत-वि० [सं०] बेमेल, जिसके साथ संगति न हो। विषयाधिप-पु० [सं०] दे० 'विषय-पति'।
विसंवाद-पु० [सं०] झूठा कथन; धोखा; प्रतिज्ञा भंग विपयाधिपति-पु०[सं०] प्रांतका शासक(गवर्नर);राजा।। करना; निराश करना; खंडन, असहमति । विषयानुक्रमणिका-स्त्री० [सं०] विस्तृत विषयसूची(इंडेक्स)।
| विसंवाहक-पु० (इन्स्यूलेटर) चीनी मिट्टी आदिका बना विषयाभिरति, विषयाभिलाष-पु० [सं०] विषयभोग। वह कुचालक पदार्थ जो विद्युत् या तापका प्रवाह रोकनेके विषयासक्त-वि० [सं०] विषय रत ।
लिए विद्युन्मय या तापभय पदार्थ तथा विद्युविहीन विषयासक्ति-स्त्री० [सं०] विषयभोगमें लीन रहना।
तापविहीन पदार्थ के बीच में लगा दिया जाता है। विषयी(यिन)-वि० [सं०] विलासी, कामी। पु० कामी विसंवाहन-पु० (इनस्यूलेशन) विद्यत् या तापका प्रवाह पुरुषः कामदेव; अमीर ।
रोकनेके लिए किसी वस्तुको कुचालक पदार्थ द्वारा पृथक् विषांतक-पु० [सं०] शिव । वि. विषका प्रभाव दूर कर देना। करनेवाला।
विस-पु० [सं०] दे० 'विस' (पौनार)।। सर्व० उस । विषाक्त-वि० [सं०] विषमिश्रित ।
| विसदृश-वि० [सं०] असमान, भिन्न; असाधारण ।
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