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विशेषक-विश्व
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बिना आधारके ही आधेयका वर्णन हो. (२) थोड़ा सा विश्राम-पु० [सं०] श्रम दूर करना; आराम; शांति काम करनेपर ही बड़ा काम या लाभ हो अथबा (३) आराम करनेकी जगह । -भवन-पु० (रेस्ट-हाउस) जहाँ एक वस्तुका एक साथ कई स्थानों में होना वर्णित यात्रा या दौरेपर जानेवाले व्यक्तियों अथवा छोटे अधिहो। -ज्ञ,-विद-वि० किसी विषयका विशेष ज्ञान कारियों आदिके ठहरने, भोजन, विश्रामादि करनेके लिए रखनेवाला।
बनाया गया भवन । -वेश्म(न्)-पु० आराम करने विशेषक-वि० [सं०] भेद स्पष्ट करनेवाला (चिह्न)। पु० का कमरा।
भेद करनेवाला गुण; तिलक रंगीन गंधद्रव्यसे शरीरपर विश्रामालय-पु० [सं०] पांथशाला, यात्रियोंके विश्राम रेखाएँ खीचना; एक अर्थालंकार।
करनेका स्थान दे० 'विश्राम-भवन' ( रेस्ट-हाउस )। विशेषण-वि० [सं०] विशेषताद्योतक । पु० संशाका गुण | विश्री-वि० [सं०] श्रीहीन, कांतिहीन; बदशकल । बतलानेवाला शब्द (व्या०), विशेषता, अंतर प्रकट करने | विश्रुत-वि० [सं०] बहा हुआ विख्यात प्रसिद्ध । वाला चिह्न ।
विश्रति-स्त्री० [सं०] ख्याति क्षरण, श्राव । विशेषता-स्त्री० [सं०] खसूसियत, खूबी ।
विश्लथ-वि० [सं०] ढीला; बंधनमुक्त कृति । विशेषना*-सक्रि०विशेषता प्रदान करना ।
विश्लथित-वि० [सं०] ढीला, बंधनमुक्त किया हुआ। विशेषित-वि० [सं०] विशेषणयुक्त; लक्षित विशेष गुणके विश्लिष्ट-वि० [सं०] ढीला किया हुआ; पृथक् किया हुआ; द्वारा जिसका भेद किया गया हो; उत्तम, श्रेष्ठ । | दलसे अलग किया हुआ; स्थान-भ्रष्ट ( अंगादि)। -स्वीकृति-स्त्री० (कालिफाइड एक्सेप्टेंस) किसी प्रस्ताव ! विश्लेष-पु० [सं०] वियोग; विप्रलंभ; पार्थक्य हानि । आदिके संबंधमें विशेष प्रतिबंधों के साथ या सीमित स्थिति- विश्लेषण-पु० [सं०] पृथक करना, किसी चीजके अंगोंको में दी गयी स्वीकृति, सप्रतिबंध स्वीकृति।
अलग-अलग करना; भंग करना। विशेषोक्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार, जहाँ पूर्ण या विश्लेषी(षिन् )-वि० [सं०] बिखरनेवाला; ढीला किया
समर्थ कारणके रहते हुए भी कार्यकान हो सकना दिखाया हुआ; (प्रिय वस्तुसे) अलग, वियुक्त। जाय।
विश्वंभर-वि० [सं०] सबका भरण करनेवाला । पु० ईश्वर । विशेष्य-पु० [सं०] विशेषणयुक्त संज्ञा (व्या०)। वि० | विश्वंभरा, विश्वंभरी-स्त्री० [सं०] पृथ्वी । जिसका भेद करना हो, विशेषता दिखलानी हो।
विश्व-पु० [सं०] एक देववर्ग; समग्र ब्रह्मांड; संसार विष्णु । विशोक-पु० [सं०] शोकका अंत । वि० शोकरहित -कर्ता(1)-पु० सृष्टिका रचयिता, परमेश्वर । -कर्माजिसमें शोककी कोई चर्चा न हो।
(मन्)-पु०देवशिल्पी; सूर्यः परमेश्वर; शिवः राज बढ़ई। विशोणित-वि० [सं०] रक्तहीन ।
-काय-वि० ब्रह्मांड जिसका शरीर है। पु० विष्णु । विशोधन-पु० [सं०] शुद्ध करना, साफ करना।
-कोश,-कोष-पु. वह भंडार जिसमें विश्वको सारी विशोधनीय-वि० [सं०] शुद्ध, साफ करने योग्य; रेचन
वस्तुएँ संगृहीत हो; वह ग्रंथ जिसमें संसारके सारे विषयोंकराने योग्य; सुधार करने योग्य ।
का विवरण हो। -गुरु-पु० लोकपिता, विष्णु । विशोधित-वि० [सं०] साफ, शुद्ध किया हुआ; मैल, दाग
-गोचर-वि० सबके लिए बोधगम्य । -चक्ष(स)आदिसे मुक्त किया हुआ।
वि० सबको देखनेवाला । पु० विष्णु । -जनीन, विशोषण-वि० [सं०] शुष्क करनेवाला; (घाव) सुखाने- -जनीय,-जन्य-वि० सबके लिए उपयुक्तः सबके वाला । पु० शुष्क करनेकी क्रिया।
लिए लाभदायक । -जयी(यिन् )-वि० संसारको विशोषित-वि० [सं०] शुष्क किया हुआ; मुर्शाया हुआ। जीतनेवाला । -जित्-वि० सबको जीतनेवाला।-नाथ विशोषी(पिन)-वि० [सं०] अच्छी तरह सोखनेवाला -पु. शिव; काशीका एक प्रसिद्ध ज्योतिलिंग ।-नाथ. सुखानेवाला।
नगरी,-नाथपुरी-स्त्री० काशी |-पा-पु० सबकी रक्षा विश-स्त्री० [सं०] दे० 'विट्' (कन्या, प्रजा)।
करनेवाला, परमात्मा; सूर्य । -पाल-पु० विश्वका पालन विश्रंभ-पु० [सं०] विश्वास घनिष्ठता, आत्मीयता; गोप- करनेवाला, ईश्वर । -पावन-वि० सबको पवित्र करनेनीय विषय; विश्राम; प्रणय कलह, स्नेहपूर्वक पूछताछ वाला ।-पावनी,-पूजिता-स्त्री० तुलसी। -पूजितकरना। -कथा-स्त्री. प्रेमालाप ।
वि० सबके द्वारा पूजा जानेवाला। -पूज्य-वि० सर्वविश्रंभण-पु० [सं०] विश्वास प्राप्त करना।
सम्मान्य । -प्रकाशक-पु० सबको प्रकाशित करनेवाला, विधभी(भिन)-वि० [सं०] विश्वास करनेवाला। सूर्य । -भर्ता(त)-पु० सबका भरण करनेवाला, ईश्वर । विश्वस्त ।
-भुक(ज)-वि० सबका भोग करनेवाला । पु० इंद्र । विश्रब्ध-वि० [सं०] विश्वसनीय निभीक; शांत धीर ।। -भोजन-पु० सब प्रकारकी चीजें खाना ।-मूर्ति-वि.
-नवोढा-स्त्री० नायकपर विश्वास करनेवाली नवोढा | सब रूपोंमें रहनेवाला, सर्वव्यापक । पु० ईश्वर; शिव । नायिका।
-मोहन-वि० सबको मुग्ध करनेवाला ।-लोचन-पु० विश्रांत-वि० [सं०] सुस्ताया हुआ, विश्राम किया हुआ | सूर्य चंद्रमा । -विख्यात-वि० जो सारे संसारमें प्रसिद्ध
विश्राम करनेवाला; शांत; घटा हुआ (दुःखादि)। हो।-विजयी(यिन)-वि० सबको विजित करनेवाला । विश्रांति-स्त्री० [सं०] आराम, विश्राम; कमी; अंत।- -विद-वि० सब कुछ जाननेवाला, सर्वश । पु० ईश्वर । काल-पु० (रिसेस ) दे० 'अल्पावकाश' ।
-विद्यालय-पु. वह महान् विद्यापीठ जिसमें विविध
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