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- भार्या स्त्री० वीरपत्नी । -मर्दल, - मर्दलक- पु० युद्धका नगाड़ा । - माता (तृ) - स्त्री० वीर जननी । -मानी (निन्) - वि० अपनेको वीर समझनेवाला। - मार्ग - पु० स्वर्ग । -रस- पु० प्रबल शत्रुका दमन करने, आर्त्त जर्नाका दुःख दूर करने तथा किसी भारी कठिनाई आदिपर विजय पानेके प्रयत्न में प्रदर्शित दृढ़ता एवं उत्साहका द्योतन करनेवाला एक काव्यरस, वीरताका भाव । - राघव-पु० राम । - व्रत- वि० हदसंकल्प, दृढव्रत । शयन - पु०, शय्या - स्त्री० वीरोंके सोनेका स्थान, रणक्षेत्र; बाणोंकी शय्या । - श्रेष्ठ- पु० अद्वितीय वीर । -सू-स्त्री० वीरमाता, वीरजननी । वीरा - स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति और पुत्र जीवित हों; वीर भार्या; पत्नी; माता; मदिरा । वीराचारी (रिन् ) - पु० [सं०] वाममार्गियों का एक भेद जो मद्यादि में देवताओंकी कल्पना करते हैं ।
वीरान - वि० [फा०] उजड़ा हुआ, जनद्दीन; तबाह । वीराना - पु० [फा०] उजाड़ जगह; जंगल | वीरासन - पु० [सं०] योगासनका एक प्रकार; एक घुटना टेककर बैठना ।
वीरुत् (ध) - स्त्री० [सं०] लता; शाखा, टहनी । वीरेंद्र - पु० [सं०] वीरोंका प्रधान । वीरेश, वीरेश्वर - पु० [सं०] महादेव; बहुत बड़ा योद्धा । वीर्य - पु० [सं०] वीरता, पौरुष शक्ति, चल; पुंस्त्व; शरीर की एक धातु, शुक्र, रेत; साहस ।
वीर्यवान् (वत्) - वि० [सं०] बलवान्, शक्तिशाली; पुष्ट । वीर्याधान - पु० [सं०] गर्भाधान ।
वीहार - पु० [सं०] मंदिर, मठ (बौद्ध, जैन) । वुज़ - पु० [अ०] नमाज से पहले यथाविधि हाथ-पाँव और मुँह धोन
वुराना * - अ० क्रि० उराना, समाप्त होना (बिहारी) । वुसूल - पु० [अ०] पहुँचना; मिलना; हासिल, प्राप्ति । - बाकी - स्त्री० वह इकम जो प्राप्त न हुई हो; बकाया रकम या रुपया वसूल करना । वसूली - वि० [अ०] वसूल करने योग्य । स्त्री० वह रकम जिसे वसूल करना हो या जो वसूल की गयी हो । वृंत - पु० [सं०] बौड़ी, देंही; डंठल; चूचुक । वृंद - पु० [सं०] दल, समूह, झुंड, गुच्छा; एक मुहूर्त । वि० बहुसंख्यक | गायक- पु० कई गायकों के साथ गानेवाला । चाद्य-पु० (आरकेस्ट्रा) नाट्यशाला आदि में विशेष स्थानपर समवेत वादकों द्वारा सामूहिक रूपसे प्रस्तुत किया गया वाद्य ।
वृंदा - स्त्री० [सं०] तुलसी; राधा । - वन- पु० गोकुलके पासका एक स्थान जो तीर्थ माना जाता है ।
वृंदार - पु० [सं०] देवता ।
वृंदारक - पु० [सं०] श्रेष्ठ जन; नायक; देवता । वृक- पु० [सं०] भेड़िया; गीदड़; उल्लू; कौवा; चोर । - कर्मा (र्मन्) - वि० भेड़ियेकी तरह काम करनेवाला । -दंश- पु० कुत्ता | वृकाराति, वृकारि - पु० [सं०] कुत्ता | वृकोदर - पु० [सं०] भीमसेन; ब्रह्मा ।
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वीरा- वृत्य
वृक्क, वृक्कक - पु० [सं०] गुरदा | वृक्का - स्त्री० [सं०] हृदय ।
वृक्ष - पु० [सं०] पेड़, विटप; वंशवृक्ष, कुरसीनामा | - रोपण -पु० वृक्ष लगानेकी क्रिया । - वाटिका, - वाटी - स्त्री० उपवन, बाग । - सेचन-पु० वृक्षमें पानी देना, सींचना। -स्नेह-पु० पेड़का निर्यास, गोंद । वृक्षायुर्वेद- पु० [सं०] वृक्षों के रोग और चिकित्सा-संबंधी
शाख ।
वृज - पु० दे० 'व्रज' |
वृजन्य - वि० [सं०] ग्राम में रहनेवाला, सरल (व्यक्ति) । वृजिन - पु० [सं०] पाप; दुःख, कष्ट; बाल; घुँघराले बाल; दुष्ट जन; रक्त चर्म ।
वृत्त - वि० [सं०] घटित; पूरा किया हुआ; निष्पन्न; किया हुआ; गत, व्यतीत; गोलाकार । पु० घटना; इतिहास; व॒त्ता॑त; समाचार; आचरण, चालचलन; एक तरहका छंद (सरकिल) वह समक्षेत्र जो ऐसी वक्र रेखासे घिरा हो जिसका प्रत्येक बिंदु उक्त क्षेत्रके केंद्र या मध्य विदुसे समान दूरीपर हो। - खंड- पु० वृत्तका कोई भाग; (सेक्टर) दो त्रिज्याओं (अर्द्धव्यास रेखाओं) तथा चापके द्वारा घिरा वृत्तका अंश । -चूड - वि० जिसका चूड़ाकरण संस्कार हो चुका हो । वि० मेहराबदार ( झरोखा : ) । - पत्र - पु० ( जर्नल ) वह वही या पंजी जिसमें प्रतिदिनके कार्य या घटनावलीका विवरण अथवा जिसमें विधानसभा आदिके प्रति दिनके विनिश्चयोंका संक्षिप्त अभिलेख लिखा जाता है। -पत्रक - पु० (हिस्ट्रीशीट) वह पत्रक या फलक जिसपर किसी बंदी के पूर्वापराधोंका इतिहास या लेखा दिया रहता है, अपराधलेखा, दुर्वृत्त फलक ।
वृत्तांत - पु० [सं०] समाचार; विवरण; वर्णन | वृत्तांतानुमेय साक्ष्य-पु० [सं०] (सरकम्सटैंशल एवीडेंस) कोई बात साबित करनेमें सहायता करनेवाली ऐसी बातें जो किसीने अपने बयान में न कही हों, पर परिस्थिति या जानी हुई घटनाओंके आधारपर जिनका अनुमान किया जा सके ।
वृत्तार्ध - पु० [सं०] वृत्तका अर्धभाग । वृत्ति - स्त्री० [सं०] अस्तित्व रहना; मनकी अवस्था, हालत, कार्य, व्यापार; तरीका, ढंग; पेशा; स्वभाव; रहन-सहन (समासांत में ); जीविका; पारिश्रमिक; कार्यका कारण; सम्मानपूर्ण वर्ताव; व्याख्या, कारिका; चक्कर खाना; लुढ़कना; चक्र या वृत्तकी परिधि; शब्द-शक्ति (अभिधा आदि); रचनाशैली (कैशिकी आदि); सहायतार्थ दिया जानेवाला धन; विचारसरणी; आधेय; एक अस्त्र; प्रचलन; अनुप्रासका एक भेद, 'वृत्त्यनुप्रास' । -कर- पु० ( प्रोफेशन टैक्स) वृत्ति या पेशेपर लगनेवाला कर । -मूलक प्रतिनिधित्व - पु० (फंक्शनल रेप्रेजेंटेशन) दे० 'व्यावसायिक प्रतिनिधित्व' ।
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वृत्यनुप्रास - पु० [सं०] अनुप्रास अलंकारका एक भेद (जहाँ एक या अनेक वर्णोंकी समानता कई बार दिखायी जाय) |
वृत्य - वि० [सं०] नियुक्ति के योग्य; वरणके योग्य; घेरा