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विवृत्ति-विशेष
विवृत्ति-स्त्री० [सं०] फैलाव, विकास; चक्कर खाना (धूमकेतु) । पु० बाण, भाला; एक तरहका सरकंडा । लुढ़कना।
विशिष्ट-वि० [सं०] विशेषतायुक्त; असाधारण, प्रसिद्ध विवृद्धि-स्त्री० [सं०] बाढ़, वृद्धि, उन्नति, तरक्की, समृद्धि । उत्तम,...में सर्वश्रेष्ठ, युक्त विशेष रूपसे शिष्ट, भद्र। -कर-वि० उन्नत करनेवाला।
-कुल-वि० सद्वंशजात । पु० उत्तम कुल । -जनीन विवेक-पु० [सं०] यथार्थ ज्ञान, विचार, छान-बीन, भले- मतसंग्रह-पु. (गैलप-पाल ) सर्वसाधारण जनताका बुरेकी पहचान; वस्तुओं में उनके गुणके अनुसार भेद प्रतिनिधित्व कर सकनेवाले विशिष्ट जन समूह द्वारा किसी करनेकी शक्ति । -रहित-वि० शानहीन । -विरह- विषयपर प्रकट किये गये मतोंका संग्रह, जिसकी व्यवस्था पु० अज्ञान । -विशद-वि० स्पष्ट, बोधगम्य :-विश्रांत- प्रायः किसी समाचारपत्रादि या मतसंग्रह करानेवाली वि० मूर्ख, शानहीन ।
संस्थाओं द्वारा की जाती है । विवेकवान(वत्)-वि० [सं०] ज्ञानी, विचारवान् ।। विशिष्टता-स्त्री० [सं०] विशेषता । विवेकाधीन-वि० [सं०] (इन दि डिसक्रीशन) (किसीकी) | विशिष्टांग-पु० [सं०] (फीचर्स) किसी वस्तु, नाटक, लेख, विवेक बुद्धिके अधीन या उसपर अवलंबित ।
समाचारपत्र आदिकी मुख्य विशेषताएँ। विवेकित्ता-स्त्री० (सं०] विवेकी, ज्ञानी होनेका भाव, विशिष्टाद्वैत-पु० [सं०] रामानुज द्वारा प्रवर्तित एक मत विचार-शीलता।
जिसमें प्रकृति और पुरुषको भिन्न और सत्य मानते हुए विवेकी(किन्)-वि० [सं०] भले-बुरेकी पहचान करने भी दोनोंको अभिन्न मानते है। -वादी(दिन)-वि०
वाला; ज्ञानी, विचारवान् । छान-धीन करनेवाला। विशिष्टाद्वैत मतका अनुयायी। विवेचक-वि० [सं०] जो विवेचन, भले-बुरेका भेद कर | विशिष्टाधिकार-पु० [सं०] (प्रीरोगेटिव) राजा या प्रधान सके; चतुर, ज्ञानी।
शासकका वह विशिष्ट अधिकार जिसपर सिद्धांततः किसी विवेचन-पु० [सं०] विवेक, सदसत्का निर्णय अनुसंधान | तरहका प्रतिबंध न हो ( परमाधिकार ); वह विशेष मीमांसा परीक्षण ।
अधिकार जिसका और कोई भागीदार न हो; किसीके विवेचनीय-वि० [सं०] विवेचन करने योग्य । विशेष पद, स्थिति आदिसे उद्भूत होनेवाला विशेष विवेचित-वि० [सं०] निश्चित, ते किया हुआ; विवेचन | अधिकार।
किया हुआ जिसका अनुसंधान किया गया हो। विशिष्टीकरण-पु० [सं०] (स्पेशलाइज़ेशन) विशिष्ट लक्षणों के विवोक-पु० [सं०] दे० 'बिब्बोक' ।
अनुसार किसी वस्तुको पृथक या स्वतंत्र करना; विशेषताविशंक-वि० [सं०] शंकारहित, निर्भय; निरापद् । सूचक (विशिष्ट) रूप देना; किसी विषयका विशेष ज्ञान विशद-वि० [सं०] साफ, स्वच्छ; बेदाग; श्वेत; चमकीला प्राप्त करना, विशिष्ट अध्ययन करना, विशेषता प्राप्त सुंदर; स्पष्ट; प्रकट; शांत; चिंतारहित ।
करना। विशल्य-वि० [सं०] कष्टरहित; काँटेसे मुक्त जिसका | विशीर्ण-वि० [सं०] क्षीण, भग्न बिखरा हुआ, जो तितरबाणका घाव भर गया हो। -करण-वि० बाणका घाव बितर हो गया हो (सैन्य); गिरा हुआ (दंतादि); अपव्यय भरनेवाला।
किया हुआ, उड़ाया हुआ (खजाना); नष्ट, ध्वस्त; शुष्क । विशल्या-स्त्री० [सं०] गुडूची; अग्निशिखा देती। विशुद्ध-वि० [सं०] साफ किया हुआ; पवित्र; निष्पाप; विशसिता (त)-पु०[सं०] काटने, चीरनेवाला; चांडाल । बेदाग; ठीक; धर्मात्मा; विनम्र; चमकता हुआ सफेद; विशस्त-वि० [सं०] काटा हुआ; उजड्डु, धृष्टः प्रशंसित।। सुनिश्चित सर्फ, खर्च किया हुआ (खजाना)।-चरित्रविशस्त्र-वि० [सं०] शत्रहीन ।
वि० शुद्ध चरित्रवाला। विशांपति-पु० [सं०] राजा; जामाता; ब्यापारियोंका विशुद्धात्मा (स्मन्)-वि० [सं०] जिसका आचरण मुखिया।
पवित्र हो। विशाखा-स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र पूर्वा; श्वेत पुनर्नवा; विशुद्धि-स्त्री० [सं०] पवित्रता, शुद्धता; संदेह आदि दूर एक प्राचीन जनपद।
करना; (वैर, ऋणका) परिशोध; भूलसुधार, पूर्ण ज्ञान; विशारद-वि० [सं०] अनुभवी, कुशल, विद्वान् । चतुर । सारश्य । -चक्र-पु. एक चक्र जिसका स्थान गले में विशाल-वि० [सं०] बृहत् , बड़ा विस्तृत भव्य प्रख्यात | माना जाता है। -बाद-पु० (प्यूरिटैनिज्म) विशुद्ध या शक्तिशाली।
कठोर धार्मिक जीवनको प्रधानता देनेवाला प्रोटेस्टैंट विशालता-स्त्री० [सं०] महत्ता, गुरुता विस्तार, ख्याति। ईसाइयोंका सिद्धांत, कठोरतावाद; कठोर जीवन । विशाला-स्त्री० [सं०] इंद्रवारुणी; उज्जयनी नगरी; उपो- विशूचिका-स्त्री० दे० 'विसूचिका' ।
दकी; महेंद्रवारुणी; एक तीर्थ; दक्षकी एक कन्या। विशून्य-वि० [सं०] पूर्णतः रिक्त । विशालाक्ष-वि० [सं०] बड़ी आँखोंवाला । पु० एक तरह- बिशृंखल-वि० [सं०] शृंखलारहित, बंधनहीन; अनिका उल्लू ; शिव; गरुड़ा एक नाग।
यंत्रित; लंपट; बहुत अधिक शब्द करनेवाला। विशालाक्षी-स्त्री० [सं०] बड़ी आँखोंवाली स्त्री; नागदंती विशृंग-वि० [सं०] बिना सींगका, शृंगहीन(वह पर्वत)
पार्वती स्कंदकी एक मातृका; एक योगिनी । | जिसके कोई चोटी न हो। विशिख-वि० [सं०] शिखाहीन; गंजा; (बाण) जिसकी नोक विशेष-वि० [सं०] असाधारण, असामान्य; अधिक प्रचुर। भोथरी हो गयी हो; (आग) जिसमें लपट न हो;पुच्छहीन | पु० भेद; खास धर्म या गुण; एक अर्थालंकार-(१) जहाँ
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