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प्रदीपति-प्रफुल्ल प्रदीपति*-स्त्री० दे० 'प्रदीप्ति' ।
प्रनवना* --स० क्रि० प्रणाम करना । प्रदीपन-पु० [सं०] प्रकाश करना; जलाना; चमकाना; प्रनष्ट-वि० [सं०] लुप्त; बुरी तरह नष्ट भगा हुआ,पलायित। उत्तेजित करना, जगाना।
प्रनाम* -पु० दे० 'प्रणाम' । प्रदीपिका-स्त्री० [सं०] छोटा दीपक; अर्थ या विषय स्पष्ट प्रनामी-स्त्री० गुरु, ब्राह्मण आदिको प्रणाम करते समय करनेवाली छोटी पुस्तक ।
दी जानेवाली दक्षिणा या भेंट । पु० प्रणाम करनेवाला । प्रदीप्त-वि० [सं०] जलाया हुआ (आग आदिके लिए); | प्रनिपात*-पु० दे० 'प्रणिपात'। प्रकाशित; जलता हुआ, जगमगाता हुआ; उत्तेजित, जगाया प्रपंच-पु० [सं०] विस्तार, फैलाव; संसार, भवचक्र जगत्हुआ (भूख आदिके लिए); दीप्तियुक्त, चमकीला।
का जंजाल, भवजाल (हिं०); छल, धोखा भिन्नता राशि प्रदीप्ति-स्त्री० [सं०] प्रकाश प्रभा, चमक ।
प्रतिकूलता; विश्लेषण; झमेला, बखेड़ा (हिं०)। -बुद्धिप्रदुमन*-पु० दे० 'प्रद्यम्न' ।
वि० चालबाज, धोखेबाज । प्रदेय-वि० [सं०] देने योग्य, दान करने योग्य । प्रपंचक-वि० [सं०] विस्तार करनेवाला; व्याख्या करनेप्रदेश-पु० [सं०] किसी देशका वह बड़ा भाग जो भाषा, | वाला।
रीति, आबहवा आदिकी दृष्टि से उसी देशके अन्य भागोंसे प्रपंचित-वि० [सं०] जिसका विस्तार किया गया हो, भिन्न हो, प्रांत; स्थान, जगह; अँगूठेके सिरेसे लेकर तर्जनी | विस्तारित; जो ठगा गया हो, प्रतारित जिससे भूल हुई हो। के सिरेतककी दूरी।
| प्रपंची(चिन्)-वि० [सं०] प्रपंच रचनेवाला; छलिया, प्रदेशनी, प्रदेशिनी-स्त्री० [सं०] गूठेके बादकी उँगली, धोखेबाज, बखेड़ा खड़ा करनेवाला। तर्जनी।
प्रपंजी-स्त्री० [सं०] (लेजर) किसी बैंक, व्यापारिक संस्था प्रदेशीय-वि० [सं०] प्रदेश-संबंधी प्रदेशका ।
आदिकी वह मुख्य पंजी (रजिस्टर) जिसमें व्यापारिक लेनप्रदोष-पु० [सं०] भारी दोष; अव्यवस्था; सायंकाल; रात- देन, आय-व्यय आदिका ब्यौरा लिखा रहता है।-पृष्ठका पहला पहर; त्रयोदशी व्रत जिसमें दिनभर उपवास पु० (लेजर फोलियो) प्रपंजीका वह पृष्ठ (वस्तुत: आमनेकरते और सायंकाल शिवकी पूजा करके भोजन करते हैं। सामने के पृष्ठद्वय) जिसपर किसीके रुपया या माल इत्यादि प्रद्युम्न-पु० [सं०] कामदेव, कृष्णके बड़े पुत्र ।
जमा करने या निकालनेका ब्यौरा दिया रहता है। प्रद्योत-पु० [सं०] प्रकाश; किरण; दीप्ति, प्रभा । प्रपतित-वि० [सं०] जो उड़ गया हो; नीचे गिरा हुआ; प्रद्योतन-पु० [सं०] चमकना; दीप्ति, प्रभा; सूर्य । जिसका क्षय हो गया हो; मृत । प्रधान-वि० [सं०] सबसे बड़ा; मुख्य । पु० प्रकृति प्रपत्र-पु० [सं०] (फार्म) किसी परीक्षा या स्थान आदिके (सांख्य०); बुद्धितत्त्व (सांख्य०); परमात्मा; सचिव, मंत्री; लिए आवेदनपत्र देने, कोई विवरण प्रस्तुत करने या शपथ किसी दल,समाज आदिका प्रमुख व्यक्ति, मुखिया,सेनापति ग्रहण करने आदि-संबंधी पत्रोंका वह बँधा हुआ रूप जिसमें महावत । -कार्यालय-पु० किसी व्यापारिक या अन्य आवश्यक जानकारी देनेके लिए रिक्त स्थान, कोष्ठक संस्थाका केंद्रीय या मुख्य कार्यालय जहाँसे शाखा कार्या- आदिकी व्यवस्था रहती है। लयोंका नियंत्रण किया जाता है। -मंत्री(त्रिन्)-पु० प्रपथ-पु० [सं०] चौड़ी सड़क । वि० विश्रांत । किसी देश या राज्यका सबसे बड़ा मंत्री। -सेन्यावास- प्रपात-पु०[सं०] पहाड़ या चट्टानका ऊँचा खड़ा किनारा; व्यवस्थापक-पु० ( कारटर मास्टर जनरल ) सेनाके | बहुत ऊँचे स्थानसे गिरनेवाली जलकी धारा; झरना, किसी विभागका वह प्रधान अधिकारी जो सैनिकोंके निर्झर; किनारा, तट; गिरना; धड़ामसे नीचे गिरना ।
आवास, साजसज्जा, रसद आदिका प्रबंध करता है, प्रधान | प्रपितामह-पु० [सं०] परदादा; परब्रह्म । रसद-व्यवस्थापक ।
प्रपितामही-स्त्री० [सं०] परदादी। प्रधानतः(तस)-अ० [सं०] मुख्य रूपसे ।
प्रपितृव्य-पु० [सं०] दादाका चाचा, चचेरा परदादा । प्रधानता-स्त्री० [सं०] प्रधान होनेका भाव, मुख्यता। प्रपीड़क-पु० [सं०] दबानेवाला; सतानेवाला। प्रधानाध्यापक-पु० [सं०] किसी विद्यालयका मुख्य प्रपुत्र-पु० [सं०] पौत्र, पोता। अध्यापक ।
प्रपूरक-वि० [सं०] पूरा करनेवाला; भरनेवाला; तृप्त प्रधानामात्य-पु० [सं०] प्रधान मंत्री, महामात्य । करनेवाला। प्रधानी*-स्त्री० प्रधानका पद या कार्य ।
प्रपूरित-वि० [सं०] विशेष रूपसे पूरा किया हुआ; अच्छी प्रध्वंस-पु० [सं०] विनाश; किसी पदार्थकी अतीतावस्था । तरह भरा हुआ। प्रन*-पु० दे० 'प्रण'।
प्रपौत्र-पु० [सं०] पोतेका बेटा, परपोता। प्रनत*-वि० दे० 'प्रणत' ।
प्रपौत्री-स्त्री० [सं०] पोतेकी बेटी। प्रनति*-स्त्री० दे० 'प्रणति'।
प्रफुलना*-अ० क्रि० खिलना, फूलना। प्रनप्ता(प्त)-पु० [सं०] पनाती, नातीका लड़का । प्रफुला*-स्त्री० कुमुदिनी, कुई, कमलिनी । प्रनमन*-पु० दे० 'प्रणमन'।
प्रफुलित-वि० खिला हुआ; अति प्रसन्न, प्रमुदित । प्रनमना*-स० क्रि० प्रणाम करना ।
प्रफुल्ल-वि० [सं०] खिला हुआ, विकसित; जिसमें फूल प्रनय*-पु० दे० 'प्रणय'।
लगे हों, फूला हुआ प्रसन्न।-नयन, नेत्र-वि० जिसकी प्रनव-पु० दे० 'प्रणव' ।
आँखें प्रसन्नतासे फैली हुई हों। -बदन-वि० जिसका
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