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मृत्युको जीतनेवाला, मृत्युंजय । - तर्पण -पु० यमकी तृप्तिके निमित्त किया जानेवाला एक यज्ञ । -दंडपु० यमराजका दंड, कालदंड; मनुष्य के मस्तकपरकी दो प्रकारकी रेखाओं में से एक । दंष्ट्रा - स्त्री० यमकी दादः रोग और मृत्युके विशेष भययुक्त कार, कातिक और अग इन महीनोंके कुछ दिन (वैद्यकमत) । - दुतिया * - स्त्री० दे० 'यमद्वितीया' । - दूत, - दूतक - पु० कौआ; यमके दूत । - द्वार - ५० यमराजके घरका दरवाजा । - द्वितीया - स्त्री० कार्तिक शुक्ला द्वितीया, भैयादूज । -घर,- धारस्त्री० दोनों ओर धारवाली तलवार या कटारी ।-नक्षत्रपु० भरणी नक्षत्र | - नाह*, - नाथ- पु० यमोंके स्वामी, धर्मराज | - पुर- पु० यमका स्थान, यमलोक । -पुरीस्त्री० यमनगरी, यमलोक | ( मु० - पुरी पहुँचाना - मार डालना, प्राण ले लेना) । - पुरुष - पु० यमराज, यमके दूत । - भगिनी - स्त्री० यमुना नदी । - यातना - स्त्री० नरककी पीड़ा; अंतकालकी पीड़ा । - रथ, -वाहन- पु० भैंसा । - राज - पु० यमोंका स्वामी, धर्मराज । राज्य, - राष्ट्र - सदन - पुण्यमलोक । - ल - वि०, पु० ' जुड़वाँ' । - वरा - वि० स्त्री० आजन्म अविवाहिता, चिरकुमारी । - व्रत - पु० यमके समान निष्पक्ष राजधर्म, राजाका दंड, नियम । - सभा - स्त्री० यमराजकी कचहरी । -सूर्यपु० ऐसे दो कमरोंवाला मकान जिनमें एक कमरेका रुख उत्तर हो और दूसरेका पश्चिम । स्तोम-पु० एक दिन में होनेवाला एक यज्ञ । - हंता (तृ) - पु० कालका नाश करनेवाला |
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यमक - पु० [सं०] एक शब्दालंकार जिसमें एक ही शब्द या शब्दखंड- अगर सार्थक हो तो भिन्न अर्थों में- एक ही में अनेक बार प्रयुक्त होता है; एक वृत्त; सेनाका एक व्यूह; यमज; संयम ।
यमदग्नि - पु० [सं०] एक ऋषि, परशुरामके पिता । यमन - पु० [सं०] निरोध करना; बंधन; विराम देना, रोकना; यमराज; [अ०] अरबका एक प्रदेश | यमनिका - स्त्री० दे० 'यवनिका' |
यमनी - स्त्री० एक कीमती पत्थर, रत्न ( यमनकी) । यमला - स्त्री० [सं०] हिचकीका रोग, दुहरी हिचकी; एक नदी; एक तांत्रिक देवी |
यमलार्जुन - पु० [सं०] गोकुलको दो पौराणिक अर्जुन वृक्ष । यमानुजा - स्त्री० [सं०] यमराजकी छोटी बहन, यमुना । यमालय - पु० [सं०] यमका घर, यमपुर । यमी - स्त्री० [सं०] यमकी बहन, यमुना नदी । यमी ( मिनू ) - पु० [सं०] संयमी ।
यमुना - स्त्री० [सं०] यमुना नदी; यमकी वहन; दुर्गा । - भिद् - पु० यमुनाके दो भाग करनेवाले, बलराम । यमुनोत्तरी - स्त्री० हिमालयकी एक चोटी जो यमुनाका उद्गम स्थान है ।
ययावर* - पु० दे० 'यायावर' |
यव - पु० [सं०] जौ; एक जौकी तौल; लंबाईकी एक नाप, तिहाई इंच; वह वस्तु जो दोनों ओर उन्नतोदर हो । - क्षार - पु० जौके पौधोंको जलाकर निकाला हुआ खार, जवाखार । - द्वीप - पु० जावा द्वीपका पुराना नाम ।
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यमक - यह
यवन - पु० [सं०] वेग; तेज घोड़ा; यूनानका निवासी; मुसलमान । - प्रिय- पु० मिर्च |
यवनानी - स्त्री० [सं०] यूनानकी भाषा; यूनानकी लिपि । यवनिका - स्त्री० [सं०] नाटकका पर्दाः कनात । यवनी - स्त्री० [सं०] यवन जातिकी स्त्री; यवनकी स्त्री । यवास, यवासक - पु० [सं०] जवासा नामका पौधा । यवासा - स्त्री० [सं०] एक तृण ।
यश ( स ) - पु० [सं०] कीर्ति, सुख्याति, सुनाम; प्रशंसा । मु०-गाना - प्रशंसा करना; कृतज्ञ होना । -मानना - कृतज्ञ होना; निहोरा मानना ।
यशब- पु० [अ०] एक प्रकारका हरा पत्थर जो बिजली से बचानेवाला और रोग दूर करनेवाला माना जाना है, संगे यशब ।
यशस्कर - वि० [सं०] कीर्तिजनक । यशस्काम - वि० [सं०] यशोलिप्सु । यशस्वती - स्त्री० [सं०] कीर्तिमती । यशस्वान् ( स्वत्) - वि० [सं०] यशस्वी, कीर्तिमान् । यशस्विनी - स्त्री० [सं०] बनकपास; महाज्योतिष्मती; गंगा । वि० [स्त्री० ( वह स्त्री ) जिसे यश प्राप्त हो । यशस्वी ( स्विन्) - वि० [सं०] सुख्यात, जिसका खूब यश फैला हो ।
यशी - वि० यशस्वी । यशील* - वि० कीर्तिमान् ।
यशुमति - स्त्री० दे० 'यशोदा' ।
यशोगाथा - स्त्री० [सं०] कीर्तिगान, गौरवकथा | यशोदा- स्त्री० [सं०] नंदकी पत्नी; दिलीपकी माताका नाम; एक वर्णवृत्त । - नंदन - पु० कृष्ण ।
यशोधन - वि० [सं०] यश ही जिसका धन है, यशस्वी । यशोधरा - स्त्री० [सं०] गौतम बुद्धकी पत्नी । यशोधरेय - पु० [सं०] यशोधराका पुत्र, राहुल । यशोमति, यशोमती-स्त्री० [सं०] दे० 'यशोदा' । यष्टि - स्त्री० [सं०] लाठी, छड़ी; पताकाका डंडा; टहनी, डाल; जेठी मधु, मुलेठी; मोतियोंका एक प्रकारका द्वार; लता; बाँध; ताँत । त्रय- पु० (विकेट्स) धावनस्थली के दोनों सिरों पर खड़े किये जानेवाले वे तीन डंडे जिनके सामने खड़ा होकर बल्लेबाज दूसरी ओरसे फेंके हुए गेंदपर प्रहार करनेका प्रयत्न करता है और जिनके पीछे यष्टि-रक्षक या गोलंदाजका स्थान रहता है । - मधु - पु० मुलेठी, जेठीमधु । - यंत्र - पु० वह धूपघड़ी जिसमें गड़ी हुई छड़ीकी छायासे समयका ज्ञान प्राप्त हो । रक्षक - पु० (विकेटकीपर) यष्टित्रय (विकेट्स) के ठीक पीछे खड़ा रहने - वाला वह क्षेत्ररक्षक जो बल्लेबाज के प्रहार से उछाले गये गेंदको लोकने अथवा घावन करनेवाले खेलाड़ीके अपने स्थानपर न पहुँच पानेकी हालत में वापस मिले हुए गेंद से उनपर प्रहार करनेका प्रयत्न करता है । यष्टिका - स्त्री० [सं०] छड़ी, लाठी; जेठी मधु; वापी, बावली; हार, यष्टी ।
यष्टी - स्त्री० [सं०] मुलेठी; मोतियोंकी माला ।
यह सर्व० निकटस्थ वस्तुका निर्देशक सर्वनाम (वक्ता और श्रोताको छोड़कर शेष सभी जीवों और पदार्थोंके लिए
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