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रकमी-रक्षण
६७२ रकमी-वि०कीमती निशान किया हुआ,लिखा हुआ। पु० | वाला । -पल्लव-पु. अशोक वृक्ष। -पा-स्त्री०
एक तरहका किसान जिसके साथ रिआयत की जाती है।। जोक; डाकिनी । -पात-पु० रक्त गिरना, बहना, रकाब-स्त्री० [अ०] लोहेका पावदान जो जीनमें दोनों ओर रक्तस्राव; प्रहार जिससे किसीका रक्त बहे; खूनखराबी, रस्सी या तस्मेसे लटकता रहता है और जिसपर पैर रखकर मारकाट । -पायी(यिन)-वि० रक्त पान करनेवाला, घोड़ेपर चढ़ते हैं। बादशाहों, अमीरोंकी सवारीका घोड़ा। खून पीनेवाला। पु० खटमल, मत्कुण । -पारद-पु. -दार-पु० घोड़ेपर चढ़ानेवाला नौकर, साईस वह नौकर ईगुर, हिंगुल; शिंगरफ। -पाषाण-पु० लाल पत्थर, जो अमीर आदमीके घोड़ेके साथ दौड़ता है; खासा गेरू । -पित्त-पु. एक रोग जिसमें मुँह, नाक, कान, बरदार, बादशाहोंके साथ खाना लेकर चलनेवाला | गुदा, योनि आदि इंद्रियोंसे रक्त गिरता है।, -पुष्प-- सेवक; अचार, चटनी, मिठाई वगैरह बनाकर बेचनेवाला पु० कनेर, करवीर; अनारबंधूक पुन्नाग; अड़हुल । आदमी, हलवाई; रकाबियोंमें खाना लगाकर रखनेवाला । -प्रदर-पु. प्रदरका एक भेद जिसमें स्त्रीकी योनिसे मु०-थामना-घोड़ेपर किसीके चढ़ते समय साईसका । रक्त प्रवाह होता रहता है। -ग्रमेह-पु० पुरुष-रोग, रकाब पकड़ना। -में-सहयात्रा, हमराह । -में पाँव इसमें खूनकासा दुर्गंधपूर्ण पेशाब होता है। -फूल-पु० रखना-घोड़ेपर सवार होना । -में पाँव रहना-हर अड़हुल, पलाश। -मोचन-पु० शीर, फस्द, शरीरका वक्त चलनेको तैयार रहना।
खून निकालना। -रोग-पु० रक्तको दूषित करनेवाला रकाबत-स्त्री० [अ०] एक प्रेमिकाके कई प्रेमी होना; प्रणय- रोग, जैसे कुष्ठ। -लोचन-पु. कबूतर; दे० 'रक्तनेत्र' । की प्रतियोगिता।
-वसन-पु० संन्यासी। -वीज-पु. लाल बीजका रकाबी-स्त्री० तश्तरी, चीनी मिट्टी इत्यादिकी बनी थाली; अनार, बेदाना; रीठा; एक राक्षस जिसके धरतीपर गिरनेछिछली छोटी थाली जिसकी दीवार बाहर मुड़ी हो; घोड़े- वाले रक्तके विंदु-विंदुसे राक्षस तैयार हो जाते थे, इसका की बगल में लटकनेवाली तलवार । -चेहरा-पु० चौड़ा वध चंडिकाने किया था (देवीभागवत)। -वृष्टि-स्त्री० मुँह, गोल मुँह।
आकाशसे लाल रंगके पानीकी वर्षा। -व्रण-पु० वह रक्त-पु० [सं०] लहू, रुधिर; लाल रंग; ताँबा पुराना फोड़ा जिससे मवादकी जगह रक्त निकले ।-संबंध-पु०
आँवला; कुंकुम, कमल; लाल चंदन; सिंदूर, ईगुर; गुल- बंशगत ऐक्य, वंश, कुलका संबंध। -साध-पु० खून दुपहरिया, बंधूक । वि० अनुरक्त, आसक्त रँगा हुआ बहना, निकलना, गिरना । सुर्ख, लाल, विलासी। -आमातिसार-पु० एक रोग | रक्तता-स्त्री० [सं०] लालिमा, ललाई, सुखी । जिसमें लहके दस्त आते हैं, रक्तातिसार। -कंठ-वि० रक्तांबर-वि० [सं०] लाल वस्त्र धारण करनेवाला । पु० लाल कंठवाला, सुरीली आवाजवाला । पु० कोयल। लाल कपड़ा (विशेषकर रेशमी); संन्यासी । -कुमुद-पु० कुई । -कुष्ठ-पु० विसर्प रोग। -क्षय- रक्तांबु-पु० [सं०] (सीरम) रक्तका पतला, पारदशी भाग; पु० रुधिर बहना, रक्तस्राव । -क्षेपण-पु० (ब्लडट्रांस- वह रस जो अभी रक्त के रूपमें लाल न हुआ हो, चेप, फ्यूजन) एक व्यक्ति या प्राणीकी धमनियोंसे रक्त निकाल- | सौम्य । कर किसी अन्य व्यक्ति या प्राणीकी धमनियों में पहुँचाना। रक्तात-वि० [सं०] रक्तसे रंगा या चुपड़ा दुआ; लाल -ग्रीव-पु. कबूतर राक्षस । -चंचु-पु० तोता, सुआ। रंगका। -चंदन-पु. लाल चंदन । -चाप-पु० (ब्लडप्रेशर) | रक्ताक्ष-वि० [सं०] लाल नेत्रोंवाला, भयंकर । पु० कबूतर हृदय द्वारा प्रक्षेपित रक्तका धमनी आदिकी दीवारपर सारस चकोर; भैस साठमेंसे अट्ठावनवाँ संवत्सर । पड़नेवाला दबाव जो उचित मात्रासे कम या अधिक होने- रक्तातिसार-पु० [सं०] वह अतिसार, जिसमें खूनके दस्त पर रोग या विकृतिका सूचक होता है। -चूर्ण-पु० | आते हैं। सेंदुर; कमीला। -ज-वि० रक्तसे उत्पन्न; रक्तविकारसे रक्ताधरा-स्त्री० [सं०] किन्नरी । वि०स्त्री० लाल ओठवाली। होनेवाला। -जवा-स्त्री० देवीफूल, जवाकुसुम, अड़- रक्ताभ-पु० [सं०] बीरबहूटी। वि० रक्त जैसी आभाका । हुल । -जिह्व-पु० शेर, सिंह । वि० लाल जीभवाला। रक्तार्श (स्)-पु० [सं०] खूनी बवासीर; दे० 'बवासीर'। -तुंड-पु० तोता, सुआ। वि० जिसका मुँह लाल हो। रक्तिम-वि० [सं०] ललाई लिये हुए, लालिमायुक्त । -दान बैंक-पु० [हिं०] (ब्लडबैंक) युद्ध में घायल होने रक्तिमा (मन् )-स्त्री० [सं०] लाली, ललाई । या अन्य कारणोंसे जिनकी धमनियोंमें रक्तकी नितांत | रक्तोत्पल-पु० [सं०] लाल कमल; सेमल । कमी हो गयी हो उनके शरीर में रक्तका निक्षेपण करनेके रक्तोपल-पु० [सं०] गेरू, लाल नामक रत्न । लिए पहलेसे ही स्वस्थ व्यक्तियोंकी देहसे लिया गया रक्त | रक्ष-पु० [सं०] रक्षा करनेवाला, रक्षक; रक्षा । संचय करनेवाली संस्था । -दूषण-वि० रक्त दूषित करने रक्ष (सु)-पु० [सं०] राक्षस, असुर, दैत्य । वाला, खून खराब करनेवाला। -दृग(क)-वि० रक्षक-पु० [सं०] पहरा देनेवाला; पालन करनेवाला; लाल आँखोंवाला । पु० कोयल; कबूतर चकोर । -धातु- रक्षा करनेवाला; सुरक्षित रखनेवाला । -पोत-पु० स्त्री० गेरू, ताँबा ।-नयन-पु० कबूतर चकोर; कोयल।। (एस्कर्ट वेसल) व्यापारिक बेड़े आदिकी रक्षाके लिए उसके -नेत्र-पु० सारस, कोयल; चकोर, कबूतर । वि० लाल साथ-साथ चलनेवाला पोत । आँखोंवाला । -प-पु० राक्षस । वि० रक्तपायी, रक्त रक्षण-पु० [सं०] सुरक्षित रखना; रक्षा करना; रखवाली पीनेवाला । -पट-पु० श्रमण । वि० लाल कपड़े पहनने- करना; पालन-पोषण । कर्ता (त)-पु० रक्षा करनेवाला।
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